: ताजा नजीर है जालौन में तैनात हुए एक रिपोर्टर : कई चैनलों ने खनन के लिए कुख्यात जिलों में तैनात अपने रिपोर्टरों को या तो टारगेट थमा दिया है या फिर उन्हें हटा दिया जाता :
दोलत्ती रिपोर्टर
लखनऊ : अगर आपको यह गलतफहमी हो कि प्रादेशिक या राष्ट्रीय स्तर के न्यूज चैनलों में सिर्फ काबिलियत से ही घुसपैठ हो पाती है, तो फिर आप अपने कांधे पर किसी धूल की तरह अपनी यह गलतफहमी झाड़ लीजिए। सच बात तो यह है कि कई चैनलों में केवल नोटों की गड्डियां चलती हैं और यह रकम उगाहते हैं अपने-अपने चैनल के लखनऊ में बैठे ब्यूरो प्रमुख लोग। कई सम्पादकों के बारे में खबरें हैं कि वे लोग अपने राज्य प्रभारियों से नियमित उगाही करते हैं, और कुछ खास जिलों या मंडलों के प्रभारी लोग भी सम्पादक के साथ इसी रिश्ते में जुड़े होते हैं।
तो आइये, हम आपको समझाते हैं कि न्यूज चैनलों में जिलों की बागडोर कैसे मिलती है। हालांकि इसके पहले यह भी समझ लीजिए कि हर जिला प्रतिनिधि के साथ यह शर्त लागू नहीं होती है। और यह भी ऐसा नहीं है कि हर जिला ही उगाही के लिए उर्वर होता है। यह भी नहीं है कि हर चैनल यही और इसी तरह की उगाही करता ही है। लेकिन अधिकांश चैनलों में यही हो चल रहा है और खूब हो रहा है।
इसी नजीर है हरदोई में एक चैनल के पत्रकार की आत्मकथा। इस पत्रकार का नाम है आमिर किरमानी। कई चैनलों में काम कर चुके हैं आमिर किरमानी। हाल ही दोलत्ती डॉट कॉम ने जब कुछ चैनलों के प्रमुखों-सम्पादकों द्वारा की गयी उगाही से जुड़ी खबर छापी, तो हंगामा खड़ा हो गया। हुआ यह कि हमने ऐसे चैनलों पर एक करारी दोलत्ती मारते हुए खुलासा किया था कि कई चैनलों ने खनन के लिए कुख्यात जिलों में तैनात अपने रिपोर्टरों को या तो टारगेट थमा दिया था या फिर उन्हें हटा दिया गया था। उनकी जगह पर उन लोगों को लाये थे ऐसे सम्पादक लोग, जो ज्यादा रकम दे सकते थे या फिर अपने पूर्व परिचित थे।
इस खबर पर आमिर किरमानी ने एक खुलासा किया। उन्होंने उस खबर पर कमेंट दर्ज कराया था कि किस तरह कई चैनलों में यह गंदा धंधा चल रहा है। उन्होंने लिखा कि, बिल्कुल सही पकड़े हैं कुमार भाई, हमारे एक परिचित पत्रकार ने एक रीजनल चैनल के लखनऊ के ब्यूरो चीफ को डेढ़ लाख रुपए और एक आईफोन देकर अपनी नियुक्ति जालौन जिले में करवा ली।
आमिर के उस कमेंट और उसके लेख को देखने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-