: अयोध्या और मथुरा हत्याकाण्डों पर तुम नहीं बोले थे, क्योंकि इसलिए कि मारे गये हिन्दू थे : कश्मीर में निर्दोष हिन्दुओं को मारा गया, खदेड़ा गया पर तुम खामोश रहे : अब आप खामोश ही रहें, भोपाल काण्ड पर हम ही चिल्लाने में समर्थ हैं : मुखालिफत पर आपके नजरिये और मेरे नजरिये में जमीन-आसमान का फर्क है मेरे दोस्त :
कुमार सौवीर
लखनऊ : भोपाल में आतंकी संगठन सिमी के आठ सदस्य सेंटल जेल तोड़ कर भाग गये। बाद में पुलिस ने इन आठों की घेराबंदी की और एनकाउंटर में सभी को मौत के घाट उतार दिया। इन सभी सिमी आतंकियों पर आतंकवादी कार्रवाइयों में संलिप्त होने के आरोप हैं। इनमें दर्ज आरोपों में हत्या, आतंक फैलाना, विस्फोट कर देश में अशांति फैलाना, कई दलों के नेताओं की हत्याओं के साथ ही साथ देश के विरूद्ध युद्ध छेडने जैसे आरोप हैं। बाकी आरोप तो हैं ही, लेकिन पिछले 36 घंटे पहले सेंट्रल जेल तोड़ कर भागने और इस चक्कर में जेल के एक हेड कांस्टेबल का गला रेत कर हत्या करने का आरोप सबसे जघन्य और नृशंस है।
लेकिन हैरत की बात है कि हमारे देश में इस घटना को लेकर एक समुदाय ने बाकायदा पुलिस और मध्यप्रदेश सरकार पर जेहाद छेड़ दिया हे। खास कर एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री और खांटी कांग्रेसी दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा ने तो इन सभी मारे गये आतंकियों को मासूम, निर्दोष और दुधमुंहे बच्चे मान लिया है। उधर मुस्लिम समुदाय भी इस मामले में अपनी पूरी कमर कसे हुए है। उसका कहना है कि सरकार ने यह हत्याकांड साजिश के तहत किया। उनमें से एक का कहना है कि 36 फीट ऊंची फांद पाना मुमकिन ही नहीं होता। ऐसे में किसी राजनीतिक साजिश के तहत यह कार्रवाई पुलिस ने एमपी की भाजपा नीत सरकार ने किया है।
जाहिर है कि ऐसी चिल्ल-पों से मैं पूरी तरह असहमत हूं। साफ मानता हूं कि यह सभी आठों सिमी के आतंकी थे। यह भी मानता हूं कि इन लोगों ने साजिश कर जेल तोड़ी। यह भी कि हेड कांस्टेबल रामशंकर यादव का गला रेत कर उसे मार डाला इन सिमी हत्यारों ने। हमारे पास ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि पुलिस ने उनके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज करने के पहले कोर्इ साजिश की थी। यह प्रमाण तो खुद दिग्गी के पास भी नहीं है कि पुलिस ने यह फर्जी मुकदमे दर्ज कराये। और अगर ऐसा है तो फिर यह नींव तो खुद दिग्गी ने भी खोदी होगी, जो आज शिवराज सिंह सरकार को गालियां दे रहे हैं। दूसरों को गालियां देने के पहले दिग्गी को अपने चरित्र का देख लेना चाहिए।
लेकिन ऐसा भी नहीं कि सरकार या पुलिस पूरी तरह साफ-सुथरी है। साफ बात तो यही है कि पुलिस ने इस मामले में सीधे शातिर हत्यारों की भूमिका अदा की है। राज्य सत्ता के इशारे पर ऐसा जघन्य सामूहिक हत्याकाण्ड कर देने वाली पुलिस और शिवराज सरकार वाकई निन्दा और भर्त्सना की पात्र है। आज न कल, इन लोगों को इस हत्याकाण्ड का जवाब देना ही होगा।
लेकिन इससे पहले तो जवाब उन लोगों को देना होगा, जो अयोध्या में 30 अक्तूबर-90 और उसके दो दिन बाद 2 नवम्बर-90 को हुए हत्याकाण्ड पर खामोश रहे। मैं अयोध्या में 2 नवम्बर-90 को हुए नरसंहार का साक्षी-गवाह हूं, जिसमें निर्दोष कारसेवकों को अकारण ही सरकार ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। मैं गवाह हूं कि वह सारे कारसेवक बेगुनाह थे। उनका गुनाह केवल यह था कि भाजपा, आरएसएस, विहिप और बजरंग दल के नेताओं के आह्वान पर अपने अराध्य श्रीराम के जन्मस्थान के नाम पर अयोध्या में जुट गये थे। मैं खूब जानता हूं कि इस हादसे में ऐसा कुछ भी कोई अराजक कृत्य हुआ, जिसे आधार बना कर पुलिस उन पर ताबड़तोड़ गोलियां मारती और लाशों का ढ़ेर लगा देती। हमें आतंकियों और जनता की समझ के बीच अगर फर्क नहीं समझ में आता है तो शर्म की बात है, समझने वाली सरकार, पुलिस और खासकर उस समुदाय पर, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहलाती है और सच से मुंह मोड़ कर हालातों को बिगाड़ देती है। सच बात तो यह है कि मुलायम सिंह यादव ने इस मामले को वोट के तराजू पर रखा और यह हत्याकांड करा दिया। शर्म की बात है कि मुसलमानों ने भी सच को खंगालने के बजाय मुलायम व सपा की डुगडुगी बजाना शुरू कर दिया।
क्या यह देशवासियों और अपने दूसरों के प्रति स्नेह भाव का प्रदर्शन था। नहीं। हर्गिज नहीं। अगर होता तो मुसलमान और धर्म निरपेक्ष लोग विशाल हृदय से देखने, सोचने, बोलने और कुछ ठोस करने की कोशिश करे, जो कि नहीं किया इन लोगों ने।
मथुरा में क्या हुआ। समाजवादी पार्टी की सरकार से जुड़े कतिपय घटिया और ओछे स्वार्थी लोगों और प्रशासन में सत्ता के तलवे चाटने वाले घटिया सोच वाले सेवकों ने पहले तो जवाहर बाग में भीड़ जुटायी। जो इजाजत दो दिन के लिए थी, उसे तीन साल तक खींचे रखा। सरकार व प्रशासन ने उन अराजक तत्वों को इजाजत दे दी कि वे मुफ्त की बिजली जलायें, पानी खींचे, मौज करें, सरकार इमारतों पर कब्जा करें और इस तरह कुल 280 एकड़ से भी ज्यादा सरकारी जमीन पर कब्जा कर लें। ठीक उसी तरह जैसे जय गुरूदेव के आश्रम पर अवैध कब्जे हुए। उसके बाद जब हाईकोर्ट के आदेश पर कार्रवाई का नाटक हुआ तो उसमें बलवाइयों ने दो पुलिस अफसरों को गोली मार दी। नतीजा यह हुआ कि गुस्साये पुलिसवालों ने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां बरसायीं और कुल 33 निहत्थे व निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया।
उस वक्त किसी भी मुसलमान ने उस पर आवाज नहीं उठायी। कोई भी धर्मनिरपेक्ष सामने नहीं आया। जबकि होना यही था कि अगर मौके पर ही उसका विरोध होता तो पुलिस का चरित्र हत्यारी पुलिस-बल के तौर पर रोकने से कवायद शुरू हो जाती। लेकिन ऐसा नहीं किया। किसी ने भी आवाज नहीं उठायी कि आम आदमी पर हत्या करने वाली सपा सरकार और उसकी पुलिस ने यह हत्याएं केवल भड़ास के लिए और अपनी सरकार के आकाओं को पूजने के लिए किया।
क्यों नहीं बोलते हैं मुसलमान और धर्म निरपेक्ष लोग कश्मीर के बारे में, कि पूरे कश्मीर से अब एक भी कश्मीरी हिन्दू मौजूद नहीं है। उन्हें या तो आतंकियों ने मार दिया है या फिर वे खद ही डर कर भाग गये। लेकिन मुसलमानों ने अपना मुंह बंद रखा। हां, जब बोले जरूर, लेकिन तब जब आतंकियों के खिलाफ सेना और सुरक्षा बलों ने अपनी कार्रवाई शुरू की। ऐसे में यह सारे धर्मनिरपेक्ष ताकतें और मुसलमानों ने अपनी गुबार निकालना शुरू कर दिया। इन दोनों करवटें से साफ होता है कि आतंकियों के पक्ष में यह लोग जबकि आतंकियों के खिलाफ जेहाद कर रही सेना मुसलमानों के खिलाफ है।
खैर, अब भोपाल मामले में मुसलमान और धर्म निरपेक्ष लोग फिर एकजुट हैं। आखिर क्यों, क्यों अब बोल रहे हैं आप। क्या इसलिए कि यह मामला मुसलमानों पर हुए अत्याचार का है। नहीं जनाब, यह मुसलमानों की बात नहीं, यह पुलिस और राजसत्ता से होने वाली आम आदमी पर हमलों और जानलेवा की साजिश है, जिसका हम सभी विरोध कर रहे हैं।
जब कि आप केवल इसी आधार पर खिलाफ हैं क्योंकि आपको उसमें मुसलमान की पीड़ा दिख रही है। जबकि हमें उसमें मुसलमान नहीं, बल्कि आम आदमी के खून दिख रहा है। हमारी लड़ाई इसलिए है क्योंकि हम नहीं चाहते कि राज्य सत्ता के इशारे पर पुलिस आम आदमी पर ऐसा कोई नृश् ांशंस हत्याकांड करे, जबकि आप आम आदमी नहीं, केवल मुसलमान का हित देख रहे हैं।
ऐसे में, मेरे प्यारे दोस्त, मैं तुम्हारे खिलाफ हूं। ठीक उसी तरह, जैसे मैं भोपाल जेल में मारे गये सिमी आतंकियों के इस तरह हत्याकांड और उसकी सरकार की करतूतों की निंदा कर उसके खिलाफ हूं। मुखालिफत पर आपके नजरिये और मेरे नजरिये में जमीन-आसमान का फर्क है मेरे दोस्त।