पुलिस में लैमारी व झपटमारी का चोखा धंधा 1090 वीमेन हेल्‍प लाइन

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: जोशीली अलंकृता सिंह के नायाब प्रोजेक्‍ट को झपट लिया पुलिस के मुंहलगे अफसरों ने : महिला सहायता सेल, यानी रंगमंच पर हवा में तलवार भांजते विदूषक की दिलचस्‍प अदायें :

कुमार सौवीर

लखनऊ: दोस्‍तों, यह हादसा उस एक खुशनुमा प्रयास की दुर्गति-परिणति है, जो आज 1090 वीमेन हेल्‍प लाइन के तौर पर कुख्‍यात होता जा रहा है। तीन दिन पहले एक मेडिकल छात्रा की आत्‍महत्‍या के बाद इस हेल्‍प लाइन का चेहरा काला हो चुका है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। शुरूआती तौर पर उसका जिम्‍मा बेहाल महिलाओं पर होने वाले उत्‍पीड़न आदि पर त्‍वरित हस्‍तक्षेप कर उन्‍हें मजबूत कराना था। लेकिन इस सुखद कल्पनाओं को दुर्भाग्य के झंडाबरदारों ने आज तबाह कर दिया है। यह जानते-समझते भी कि यह हेल्‍प लाइन मुख्‍यमंत्री का ड्रीम-प्रोजेक्‍ट है, इसलिए उस पर समय-समय पर मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव हस्‍तक्षेप करते ही रहते हैं। कभी समीक्षा और सुझाव, तो कभी शिकायतें। वगैरह-वगैरह।

आज इस हेल्‍प लाइन के बड़े दारोगा हैं आईजी नवनीत सिकेरा। सिकेरा का मुलायम सिंह यादव के परिवार से खासी करीबी बतायी जाती है। लेकिन हकीकत यह है कि इस यह हेल्‍प लाइन उनके प्रयासों से नहीं, बल्कि एक निहायत जोशीली और जहीन आईपीएस की सकारात्‍मक सोच का धरातली प्रयास है, जिसका नाम है अलंकृता सिंह। करीब 7-8 साल की नौकरी वाली आईपीएस अफसर अलंकृता सिंह ने ही इस योजना की रूपरेखा तैयार की थी, लेकिन इसके पहले कि वह उस पर कोई सटीक प्रयास कर सकती, वह योजना उसके हाथों से छीन ली गयी। साल बाद फिर याद आयी इस मसले को लिखने की।

करीब तीन साल पहले अलंकृता सिंह सुल्‍तानपुर की पुलिस अधीक्षक थी। यह कप्‍तान के तौर पर उसकी यह पहली पोस्टिंग थी। नई-नई नौकरी थी, कर कुछ कर डालने का जज्‍बा था, और कुछ नया सोचने का माद्दा भी। इसी बीच अमेठी में अपने दौरे के दौरान अलंकृता सिंह को स्‍कूली लड़कियों के साथ हो रही अभद्र हरकतों की खबर मिली। उसने तत्‍काल मौके पर हस्‍तक्षेप किया।

इसी दौरान उसे लगा कि पुलिस द्वारा समाज में महिलाओं पर होने वाले अपराध, छेड़खानी और उत्‍पीड़न जैसे काण्‍डों पर प्रभावी हस्‍तक्षेप किया जाना चाहिए। इसलिए लिए उसने बाकायदा एक गम्‍भीर स्‍टडी शुरू की, कई समाजविज्ञानियों, शिक्षकों और पत्रकारों व समाजसेवियों से बातचीत की। इसके लिए पीडि़त महिलाओं से भी उनकी दिक्‍कतें समझने की कोशिश की। और आखिरकार सुल्‍तानपुर को ऐसी पीडि़त महिलाओं के समर्थन एक अभियान छेड़ दिया।

यह प्रयास बिलकुल अनोखा था। मैंने इस पर बाकायदा एक बड़ा आलेख लिखा था। आपके सुलभ संदर्भ के लिए वह प्रकाशित लेख की प्रति अटैच कर रहा हूं।

अलंकृता के इस प्रयास की टंकार लखनऊ तक पहुंची और एक दिन तब के महानिदेशक देवराज नागर ने अलंकृता को इस प्रोजेक्‍ट को समझने के लिए लखनऊ को बुलाया। उस समय लखनऊ के आईजी सुभाष समेत अनेक वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारियों को भी बुलाया। बैठक बेहद सफल रही। नागर ने अलंकृता के प्रयास के लिए उसकी पीठ ठोंकी। उसी बैठक में तय हो गया कि यह प्रोजेक्‍ट को मुख्‍यमंत्री की शान के तौर पर टांका जाएगा और अलंकृता को ही इस प्रोजेक्‍ट का जिम्‍मा दिया जाएगा।

लेकिन लो भइया, हो गयी इसी बीच लैमारी और झपटमारी।

पुलिस के कुछ उच्‍चस्‍तरीय सूत्रों ने बताया है कि उसके दो-चार दिनों बाद ही यह प्रोजेक्‍ट अलंकृता के बजाय नवनीत सिकेरा के हाथों थमा दिया गया। और वे लखनऊ में ही अपना ठीहा बनाने में जुटे थे। इटावा से सिकेरा की करीबी थी ही। सो, गोटी फिट हो गयी।

जो एक महिला होने के चलते प्रोजेक्‍ट अलंकृता सिंह को महिलाओं की पीडा को देख-समझ कर उसे निपटाने की पहलकदमी के नसर्गिक प्रयास के चलते दिया जाना चाहिए, उसे अब नवनीत सिकेरा की वर्दी में टांक दिया गया। और जो प्रोजेक्‍ट सुल्‍तानपुर में पूरी सफलता के साथ संचालित किया था, उसकी सारी धज्जियां नवनीत सिकेरा आज भी बिखेर रहे हैं। तीन दिन पहले लखनऊ की एक मेडिकल छात्रा सरिता गुप्‍ता की आत्‍महत्‍या सिकेरा के इसी प्रोजेक्‍ट का एक अहम पहलू है।

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