नन्हे पैरों के घुंघरू छनकाती फिरती नन्ही बिटिया आज कमाल कर रही

मेरा कोना

: लिक्खाड़ शख्सियतें के तौर पर एक श्रंखला तैयार करने में जुटे हैं चंदौसी के पत्रकार विनय समीर : छपरा से पटना तक का मुकम्‍मल सफरनामा हैं श्‍वेता मिनी : बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं श्‍वेता सिन्‍हा :

विनय समीर

लखनऊ : “घर आँगन में अपने नन्हे पैरों के घुंघरू छनकाती फिरती नन्ही बिटिया उस वक्त बहुत बड़ी और प्रतिभाशाली लगने लगी जब सन 1992 में आकाशवाणी पटना ने एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित उसके लेख को देख आमंत्रित किया और पापा की ऊँगली थामे पहुंची एक मासूम छात्रा को देख सब विस्मित हो गए” …जी हाँ ये वही बच्ची है जो आज अपनी कलम और घुंघरुओं के दम पर अपना एक अलग मुकाम बना लगातार अपने गंतव्य की ओर सधे क़दमों से बढ़ती ही जा रही है …

मित्रों, आज मैं अपनी परिचय श्रृंखला “लिक्खाड़ शख्शियतें” में जिक्र कर रहा हूँ अपनी छोटी बहननुमां सहेली “श्वेता मिनी” Shveta Shweta Mini की, जिसने अपने बचपन से ही लोकप्रियता के झंडे गाढ़ नृत्य/अभिनय/लेखन के क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है!

बिहार के छपरा नगर में एक मध्यमवर्गीय परन्तु साहित्यिक परिवेश वाले परिवार में जन्मी ‘श्वेता’ बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी, नृत्य अभिनय ओर लेखन तो मानो उसके रगरग में रमा था ..अपने शैशव से ही पापा ‘ब्रजेंद्र कुमार सिन्हा’ जो ‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य’ के अध्यक्ष भी हैं से प्रेरित हो, उनका वरदहस्त लिए नित नूतन कीर्तिमान स्थापित कर नन्ही ‘श्वेता’ अपने यौवन के आने तक आकाशवाणी ही नहीं देश की नामी गिरामी पत्र पत्रिकाओं सहित रंगमंच पर अपनी प्रतिभा के झंडे गाढ़ चुकी थी ..

विवाहपूर्व ‘श्वेता अशेष’ के नाम से कादम्बिनी,कांति ,रेडियो पटना ओर गोरखपुर से लेख,कहानी प्रसारित होने के साथ साथ कत्थक नृत्य में डिप्लोमाधारी श्वेता छपरा ,मोतिहारी ओर पंजाब के गुरदासपुर आदि के विख्यात रंगमंचों पर अपने नृत्य ओर अभिनय के वास्ते एक जाना पहचाना नाम बन चुकी थी, एमए,बीएड तक शिक्षित श्वेता हजारीबाग में अध्यापन से जुडी रहने के बाद विवाहोपरांत ‘श्वेता अशेष’ से ‘श्वेता मिनी’ बन, स्टेट बैंक में कार्यरत अपने पति संग पटना आ गईं ओर आज भी यहाँ एक उत्तम गृहणी धर्म निभाने के साथ लेखन धर्म से भी निरन्तर जुडी हुई हैं ..

लीजिये पढ़िए उनकी कुछ रचनाएँ ..

१ –

हमारा ‘मन’ जितना सोचता उसे शब्दों में अभिव्यक्त करना कभी कभी मुश्किल होता है न..??

…..कुछ ऐसी ही जद्दोजहद ‘मेरी अभिव्यक्ति’ के साथ

मेरी चाहत-मेरी अभिव्यक्ति नहीं कर पा रही। मेरी भावनाये,मेरी आकुलता, मेरी विह्वलता को शब्द नही मिल रहे।

आश्चर्य होता जितना अधिक प्रेम और अहोभाव से विह्वल होने का अनुभव करती,उतना ही कम उसे अभिव्यक्त कर पाती….शायद उथले अनुभवो को सरलता से अभिव्यक्त किया जा सकता है.. उनके लिये शब्द पर्याप्त हैं,आंतरिक मनोभावों की अभिव्यक्ति सरल नहीं, शब्द उनके लिये पर्याप्त नहीं…

शब्द बहुत हल्के हैं… जब अनुभव बहुत गहरे होते, वे शब्दों के पार चले जाते…इसे अनुभव कर सकती हूं, रोमांचित हो सकती हूं ,अपनी धड़कनो को अपने पूरे शरीर और अस्तित्व मे अनुभव कर सकती हूं ,लेकिन शब्द नही दे सकती..

जब भी महसूस करती ,शब्दों मे पिरोना चाहती..असफल हो जाती… मेंरा अनुभव इतना विराट और असीम होता उससे अभिभूत हो मेरे ही भाव मेरी बेचैनियां मुझसे परे हो जाते…जब भी कोशिश करती एक बूंद जितना ही अभिव्यक्त हो पाता जबकि अनुभव जो करती ,वह पूरा सागर होता…!!!

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