बड़ी दारोगा को लेडी सिंघम साबित किया पत्रकारों ने, तो वा‍ट्सापियों ने सत्‍यानाश

सैड सांग

: सिंघम-प्रेरित पत्रकारिता में किसी भी पुलिस अफसर को चने के झाड़ पर चढ़ा देते हैं पत्रकार : देशज या गंवारू भाषा में इस खुशमदी को तेल लगाना कहा जाता है : अफसरों को बचना  चाहिए कि कभी भी किसी फोन कॉल का ऑडियो-क्लिप बेच कर वायरल किया जा सकता है : पुलिस का तेल लगाती पत्रकारिता- दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पुलिस में सिंघम। घमाघम घमाघम। जय सिंघम, लै सिंघम, दै सिंघम, हनहनउव्‍वा सिंघम, हमलावर सिंघम। लाजवाब सिंघम। सिंघम दर सिंघम।

जी हां, यह नये दौर की पत्रकारिता है। इस सिंघम-प्रेरित पत्रकारिता में किसी भी पुलिसवाले को जमीन से आसमान पर चढ़ा दिया जा सकता है। सिंघम मतलब, पुलिस का क्रिश। आप उसे पुलिस का सुपरमैन भी कह सकते हैं। बशर्ते ऐसा पुलिसवाला सुपरमैन की तरह न तो कोई मास्‍क-मुखौटा पहनता है और न ही अपनी पैंट के ऊपर जौकी-टाइप कट-जांघिया पहनता है। लेकिन इसके बावजूद हमारे पत्रकार अपने ऐसे पसंदीदा पुलिसवाले को सिंघम जरूर कहना शुरू कर देते हैं। मकसद है कि उस पुलिस वाले की प्रशस्तिगीत करना और उसकी खुशामद की लाइनें रचना। देशज या गंवारू भाषा में इसे तेल लगाना कहा जाता है।

लेकिन इस लकीर पर आगे बढ़ने से पहले इतना जरूर समझ लीजिए कि यह खुराफात केवल पत्रकारों के दिमाग की ही उपज नहीं थी। उपज तो खुद पुलिसवालों की रही होगी, लेकिन उसे पनपा दिया पत्रकारों ने। भले ही वह उस यह सिंघम नाम दक्षिण और मुम्‍बई की फिल्‍मों से प्रेरित था, लेकिन इसमें पत्रकारों ने उसे मनचाहे मोड़ दे दिये। पहले तो कई इंस्‍पेक्‍टरों को सिंघम नाम से विभूषित किया गया। लेकिन जब पत्रकारों को लगा कि इंस्‍पेक्‍टरों को मक्‍खन लगाने के बजाय सीधे किसी आईपीएस अफसर को तेल लगा दिया जाना ज्‍यादा मुफीद होगा तो फिर पत्रकारों ने यह ओहदा सीधे एसपी-एसएसपी के ताज में टांक दिया। यानी जिले का सबसे बड़ा दारोगा ही अब सिंघम से सम्‍मानित किया जा सकेगा। लग गयी मोहर पत्रकार-संसद में, बिल पेश किया था चापलूस पुलिसवालों ने:- अरे हमें नहीं यार, साहब को सिंघम लिखा करो। तुम्‍हारे लिखने से साहब खुश, तो फिर हम भी खुश। सेवा-सुश्रुषा की चिन्‍ता नक्‍को।

इसी बीच इसमें एक महिला आईपीएस अफसर मंजिल सैनी को खुश करने के लिए पत्रकारों ने उसे लेडी-सिंघम का ताज पहना दिया। तो कोई बात नहीं। हो गया तो हो गया। मंजिल भी अपनी प्रतिष्‍ठा में कई मंजिल उप्‍पर चढ़ गयीं, और पत्रकारों को भी मलाई चाटने का मौका मिलने लगा। न जाने कितने पत्रकारों की दूकान चकाचक हो गयी।

कोई भी व्‍यक्ति एसएसपी मंजिल सैनी से मोबाइल पर बात कर सकता है, और फिर उसमें अपने क्‍लाइंट के पक्ष में और उस क्‍लाइंट के खिलाफ बातचीत भी कर सकता है। साधना टीवी नामक एक चैनल के क्राइम रिपोर्टर अभिषेक मिश्र ने इसी साजिश के तहत एसएसपी मंजिल सैनी से मोबाइल पर बातचीत की और जैसे ही वह बातचीत खत्‍म हुई, उस ऑडियो-फाइल को निकाल कर साधना टीवी नामक चैनल के उस पत्रकार अभिषेक मिश्र ने उस सम्‍बन्धित क्‍लाइंट को थमा दिया। लो, हो गयी ऑडियो क्लिप वायरल। क्‍लाइंट की वाह-वाह हो गयी, और जिसके खिलाफ वह बात की गयी वह बिना मुकदमे के ही अपराधी हो गया। (क्रमश:)

पुलिस और आम आदमी के बीच एक अटूट रिश्‍ता होना चहिए। लेकिन हैरत की बात है कि ओछे स्‍वार्थों ने इस रिश्‍ते को आज तक पनपने की कोशिश नहीं की। कभी नेताओं की ख्‍वाहिशें ने इस सपने को चकनाचूर किया, तो कभी पुलिस के बड़े-छोटे अफसरों ने इसका नाजायज लाभ उठा लिया। रही-सही कचूमर निकाल दिया पत्रकारों ने, और जो जरा-सा तनिक खुरचन बड़ी थी, उसे वाट्सापियों ने सत्‍यानाश कर दिया। आइये, निहारिये इस मसले पर तैयार रिपोर्ट-श्रंखला। इसकी सारी कडि़यों को पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- पुलिस को तेल लगाती पत्रकारिता

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