: यौन चरम-सुख विषय स्त्री का नितांत निजी है :भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने अरबी महिलाओं पर टिप्पणी क्यों की : निजी सामुदायिक मामला होने के चलते तारिक की बात अलग है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सवाल है कि आपकी पत्नी ने ऑर्गेज्म यानी चरम यौन-संतुष्टि शब्द सुना है ? क्या आपकी पत्नी को आपके साथ ऑर्गेज्म अथवा चरम-सुख मिल पाता है ? क्या वे ऑर्गेज्म का अर्थ समझती हैं ? क्या आपकी पत्नी को ऑर्गेज्म की अनुभूति हमेशा होती है, अधिकांशत: मामलों में हो जाती है, कभी-कभी होती है अथवा वे हर-प्रत्येक मामलों में हमेशा इस दिशा में असफल भाव में ही तरसती-तड़पती रहती हैं ? क्या वे इस क्षेत्र में पूरी तरह और हर क्षेत्र में संतुष्ट अथवा असंतुष्ट हैं ? क्या आपकी पत्नी की यौन-संतुष्टि अथवा यौन-असंतुष्टि का कोई भी प्रभाव आपके परिवार अथवा आपके साथ साफ-साफ परिलक्षित होता अथवा नहीं होता है ? किन हालातों में आपकी पत्नी चरम यौन-संतुष्टि की दिशा में अग्रसर हो पाती अथवा नहीं हो पाती हैं ? उनके साथ अपनी चरम यौन-संतुष्टि में आपकी भूमिका क्या और कितनी होती है, अथवा उनके ऐसा होने या न हो पाने के मूल कारण कौन-कौन होते हैं ?
ऐसे चंद प्रश्न हैं, जिसे जानना जरूरी भी है। सच बात तो यही है कि ऐसे प्रश्न को पूछने का अधिकार किसी भी मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक अथवा मनोविज्ञान क्षेत्र के शोधार्थी को है। लेकिन यह अधिकार देने का अधिकार पहले तो उस महिला के पास सुरक्षित है कि वह ऐसे प्रश्न पूछने का अधिकार दे अथवा किसको यह प्रश्न देने का अधिकार दे। लेकिन ऐसे प्रश्न का जवाब देने या नहीं देने का अधिकार केवल उस महिला के पास ही सुरक्षित है।
इतना ही नहीं, किसी भी महिला को पूरा अधिकार है कि वह ऐसे हर प्रश्न का जवाब पूर्णत: दे अथवा नहीं, या फिर उसे आंशिक रूप से ही देना चाहे। किसी भी महिला को इस बारे में बाध्य नहीं किया जा सकता है। किसी भी कीमत पर, किसी भी परिस्थितियों में। वजह यह कि ऐसा अथवा ऐसे सवाल उस सम्बन्धित महिला की निजता के अधिकार से सम्बन्धित हैं। हां, ऐसे सवालों को विश्लेषित करने और उसको व्याख्यायित करने का अधिकार संबंधित मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक अथवा मनोविज्ञान क्षेत्र के शोधार्थी को जरूर है। लेकिन इस बारे में सम्बन्धित मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक अथवा मनोविज्ञान क्षेत्र के शोधार्थी पर यह बाध्यता भी है कि वह संबंधित महिला की निजता और पहचान का सार्वजनिक रूप से हरगिज भी खुलासा नहीं करेगा।
यह भी जरूर है कि ऐसे प्रश्नों को पूछने का अधिकार तो उसके पति को जरूर है, लेकिन यह अधिकार भी सशर्त है। पति भी इस बारे में महिला को बाध्य नहीं कर सकता है। जाहिर है कि इस मामले में स्त्री पूरी तरह सक्षम है कि वह इस बारे में पूर्णत: अथवा आंशिक जानकारी अपने पति को दे अथवा नहीं दे।
अब बताइये कि एक पति होने के बावजूद आपकी पत्नी से जुड़े सवालों पर आपके अधिकार सीमित हैं, तो फिर यह तेजस्वी सूर्या कौन हैं ? दक्षिण के प्रमुख राजनीतिक घराने के युवा, कर्णाटक हाईकोर्ट के वकील और भाजपा आईटी सेल के प्रमुख पदाधिकारी होते हुए भाजपा सांसद बने तेजस्वी सूर्या ने खाड़ी देशों की अरबी महिलाओं के यौन चरम असन्तुष्टि की रूदाली को लेकर अपनी छाती पीटना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि अरब की संस्कृति के चलते वहां महिलाओं की हालत भयावह है। उन्हें कोई भी नागरिक अधिकार ही नहीं दिये गये हैं। हालत इतनी भयावह है कि यह अरबी महिलाएं अपनी यौन-क्रियाओं के दौरान ऑर्गेज्म अर्थात यौन चरम-सुख तक नहीं हासिल कर पाती हैं। तेजस्वी सूर्या का आर्तनाद है कि इन दयनीय यौन चरम-असंतुष्टि का भयावह मंजर सिर्फ अचानक नहीं उभरा है, बल्कि सदियों-सदियों से यह अरबी महिलाएं ऑर्गेज्म से पूरी तरह वंचित होती रही हैं। उन्हें ऐसे ऑर्गेज्म न होने पर शिकायत तक नहीं करने का अधिकार नहीं दिया गया है और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ अरब की क्रूर पुरूषवादी संस्कृति ही जिम्मेदार है, जिसमें औरत का स्थान निहायत दर्दनाक, शर्मनाक और घटिया स्तर तक घसीटा गया है।
तेजस्वी सूर्या ने यह बात ट्विटर पर लगायी है। इतना ही नहीं, अपने इस ट्विटर पर उन्होंने तारिक़ फ़तह को भी टैग किया है। आपको बता दें कि तारिक फतह पाकिस्तानी के बलोचिस्तान क्षेत्र के मूल के कनाडाई लेखक और सेक्युलर चिंतक हैं। लेकिन मुसलमानी कट्टर समाजों-समुदायों में खासे लोकप्रिय माने जाते हैं।