: यह किसी सामान्य को नहीं, सीधे सरकार के गाल पर मारा गया : कानूनी पेंच-ओ-खम की बारीकियां पहचानने का दावा करने वाले वकीलों को यह तक पता नहीं चल पा रहा कि उनका चरित्र बदल चुका : अब आप अभद्रता और अश्लीलताओं सारी सीमाएं को पार चुके हैं : हैरत की बात है कि कानूनी-खानदान के पुरखे-बुजुर्ग पीठासीन जजों को ऐसी हरकतों की गूंज नहीं सुन पा रही :
कुमार सौवीर
लखनऊ : इतिहास में यह पहला मौका है कि वकीलों ने सीधे सरकार के गाल पर तमाचा रसीद किया है। सरेआम, बेधड़क, निर्भीक, बेहिचक, पूरी दबंगई और बेहिसाब गुंडई के साथ। कल दिन पहले एक उप जिलाधिकारी को भरी अदालत में वकीलों ने जमकर कूटा। बवाल बढ़ा, तो कचेहरी में मौजूद कई अपर जिलाधिकारी भी भागे-भागे मौके पहुंचे। लेकिन इसके पहले कि यह अधिकारी कुछ समझ पाते, किसी सधे शातिर अपराधियों के गिरोह की तरह बेकाबू वकीलों का झुण्ड उन पर भी टूट पड़ा। इस बात को भी देखने-समझने की जरूरत नहीं समझी इन वकीलों ने कि इन अधिकारियों में एक महिला भी शामिल है। मौके पर मौजूद लोग बताते हैं कि इस पूरे दौरान जितनी भी गुण्डागर्दी हो सकती थी, इन वकीलों ने कर डाली।
ऐसा नहीं है कि यह पहला मौका है, जब वकीलों ने सरकारी अफसरों पर आपना आक्रोश हाथापाई से निकाला हो। इसके पहले भी कोई 25 साल पहले हाईकोर्ट की दो जजों की एक खचाखच भरी बेंच अदालत में सुनवाई ने सीधे वकीलों पर ही हमला बोल दिया था। बावले हो चुके इन वकीलों ने डायस पर चढ़ कर एक जज से अभद्रता की थी। बताते हैं कि इन वकीलों ने एक जज को उनका गिरहबान खींच कर पीट दिया था। था। और हैरत की बात है कि इस मामले में जिन वकीलों पर भी नाम शामिल पाये गये, उन पर कोई भी कार्रवाई कर पाने का साहस न तो बार कौंसिल, बार एसोसियेशन कर पाया, और न ही हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट।
आपसी मार-पीट में तो लखनऊ के वकील खासे शातिर और माहिर हैं। इनकी मारपीट और हिंसा कभी जाति को लेकर भड़कती है, तो कभी धर्म को लेकर। कभी मुअक्किल पर टूटती है तो कभी रोटी को लेकर। समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद बनवारी लाल कंछल की दो साल पहले अदालत की सड़क पर हुई जमकर पिटाई आज भी न्यायिक इतिहास के पन्नों पर दर्ज है, जब मुकदमा को बिना सुने-बिचारे, बिना गवाह-शहादत के और बिना किसी अदालत के हिंसक और अराजक वकीलों ने बनवारी लाल कंछल का फैसला जज के हाथों से छीन कर सीधे अपने हाथों और लातों से कर दिया। वापसी में कंछल पूरी तरह नंगे-नंगे ही दिखे। उनकी पिटाई का आलम यह था कि, प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कंछल के गुप्तांग तक से खून टपक रहा था।
लखनऊ में एक महिला जिलाधिकारी के साथ भी वकील एक बार कर चुके हैं, तब परिवर्तन चौक में वकीलों के प्रदर्शन के दौरान वकीलों ने उस समय आराधना शुक्ला के साथ अभद्रता कर दी थी, जब वे वकीलों को समझाने की कोशिश कर रही थीं। इलाहाबाद में इलाहाबाद विकास प्राधिकरण के सचिव को चंद महीनों पहले ही वकीलों ने जमकर बुरी तरह पीट दिया था। सरकारी कर्मचारियों और खासकर लेखपाल व कानूनगो जैसे कर्मचारियों पर तो वकीलों का कोप अक्सर टूट पड़ता है। इलाहाबाद और लखनऊ में दारोगा-इंस्पेक्टरों की पिटाई तो अक्सर हो ही हो जाती है।
लेकिन कल का यह हादसा तो सीधे प्रशासन के गाल पर किसी करारा तमाचा की तरह पड़ा है। एसडीएम सरकार का अंतिम पायदान पर खड़ा प्रशासक और नुमाइंदा होता है। लखनऊ के कलेक्ट्रेट में उसका भी मान खण्डित कर दिया इन वकीलों ने। एसडीएम की भरी अदालत में घुस कर जो तांडव किया इन वकीलों ने, उसकी नजीर मिल पाना तक नामुमकिन है। बीच-बचाव में आयी एक महिला एडीएम समेत तीन एडीएम को भी इन वकीलों ने नहीं बख्शा। हालांकि इसके बाद पता चला कि इस हादसे से दुखी होकर प्रदेश भर के पीसीएस वकीलों ने हड़ताल करने का फैसला किया है, लेकिन ऐसा शाम होते ही पीसीएस एसोसियेशन के अध्यक्ष का बयान आ गया कि यह हड़ताल केवल लखनऊ इकाई के अफसरों ने की है, आज बाकी पीसीएस अफसर इस मामले में बैठक करेंगे। उधर कई मिनिस्टीरियल क्लर्क एसोसियेशंस ने इस हादसे पर अफसरों की हिमायत करते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है।
हैरत की बात है कि यह तब हुआ जब लखनऊ में यूपी के बड़े बाबुओं यानी आईएएस अफसरों की एसोसियेशन के लोग अपना हफ्ता-समारोह मना रहे है। उनके सदस्य शाम को सांस्कृतिक समारोह और खेल-कबड्डी खेल रहे हैं और उनके समारोह में मुख्यमंत्री ऐलान कर रहे हैं कि अफसरों की मेहनत से ही सरकार की छवि निखरती है।
खैर, अब तो आपको इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए योर ऑनर। या फिर बाकी तरह इस बार भी लम्बा श्मशानी सन्नाटा रहेगा।
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