ठाकुर साहब पों-पों: हर घर में लहलहाता है 52 एकड़ पुदीना

मेरा कोना

: ज्‍यादातर के पास 52 एकड़ पुदीना की खेती : प्रतापगढ़ समेत पूरे अवध क्षेत्र तो है ठाकुरों और राजाओं की थोक मंडी : रायबरेली, अमेठी, सुल्‍तानपुर, प्रतापगढ़ और जौनपुर में ऐसे राजाओं की मारामारी मची रहती है : पुरखों पर डींगें बेहिसाब और बात-बात पर, लेकिन खुद पर पूछिये तो बगलें झांकना शुरू कर देंगे : ठाकुर साहब पों-पों – चार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हमारे एक घनिष्‍ठ मित्र हैं पद्यनाभ पाण्‍डेय। दिल से भी और दिमाग से भी विद्वान। व्‍यवहार में भी, और तर्क में भी सहज। नाबार्ड में बड़े अफसर हैं, और फिलहाल रांची में झारखण्‍ड मुख्‍यालय में हैं। क्‍या पता, रिटायर भी हो चुके हैं, तो कोई अचरज की बात नहीं। उनका रांची वाला मोबाइल फोन नम्‍बर किसी दूसरे को अलाट हो चुका है। बहरहाल,

करीब 15 बरस पहले उन्‍होंने एक लम्‍बी बाचतीत के दौरान मुझे कई रोचक घटनाएं बतायीं, जो उनके निजी जीवन में हो चुकी थीं। सब की सब घटनाएं एक से बढ़ कर एक। लाजवाब, रोचक और प्रेरणास्‍पद भी। लेकिन जिक्र मैं करने जा रहा हूं, वह घटना प्रतापगढ़ की है, जब उनकी पोस्टिंग हुआ करती थी, या कुछ ऐसा ही कुछ और हुआ था। खैर, तो जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूं, वह कोई अनोखी नहीं है। बल्कि हमारे आसपास ऐसी ही तमाम घटनाएं पसरी ही पड़ी हैं, और खूब हैं। और खास तौर पर अवध क्षेत्र में ऐसी कहानियां खूब पसरी-पछोरी पड़ी हैं। अवध क्षेत्र, यानी जिसमें बहराइच से लेकर जौनपुर और बाराबंकी, गोंडा, श्रावस्‍ती, फैजाबाद, सुल्‍तानपुर, अम्‍बेदकरनगर, अमेठी, रायबरेली, प्रतापगढ़ जैसे इलाके भी शामिल हैं। हां, यह दीगर बात है कि चार जिलों की एक पट्टी खास तौर पर महत्‍वपूर्ण है, जिसमें रायबरेली, अमेठी, सुल्‍तानपुर, प्रतापगढ़ और जौनपुर जिला शामिल है।

अब यह कहने की जरूरत नहीं कि प्रतापगढ़ समेत पूरे अवध क्षेत्र ठाकुरों और राजाओं की मंडी माना जाता है। छोटा-मोटा जमींदार या हैसियतदार ठाकुर को यहां राजा साहब कहा जाता है। ठीक उसी तरह, जैसे राजस्‍थान में ठाकुरों-राजपूतों के बन्‍ना पुकारा जाता है। अब हमारे आसपास मंडराने वालों में से अधिकांश की आर्थिक-स्‍वार्थ, सामाजिक दशा-दुदर्शा, और परम्‍परागत सोच ऐसी ही है कि वे अमीर व समर्थवानों की चमचागिरी में अतिरंजना में गहरे उतर जाते हैं। ज्‍यादा तेल लगाने वालों में अव्‍वल आने की रेस-दौड़ में यह लोग ऐसे ठाकुरों को महराज या सम्राट तक कह अपना सम्‍मान थमा देते हैं।

जाहिर है कि वहां थोक भाव में राजे-रजवाड़े मौजूद हैं, थे और रहेंगे भी। मूंछ ताने रहते हैं, चाहे जमीन कब्‍जाने का मामला हो, या फिर तालाब का। बकैती तो प्रतापगढ़ का पुख्‍ता मायका माना जाता है। राज-पाट तो दक्क्षिण दिशा में प्रस्‍थान हो गया, लेकिन गाथाएं उनकी जुबानों में दर्ज हैं, जो अक्‍सर थूक से दूसरे के सीने या चेहरे पर पड़ ही जाती है, बशर्ते आप सतर्क न हों।

ऐसे राजा-महाराजा, सम्राटों के वंशजों से आप कहीं भी मिल सकते हैं। क्‍या देसी का ठेका या फिर सफारी-स्‍कॉर्पियो। बम्‍बई में उनका अक्‍सर आना-जाना रहता ही है। उनसे बातचीत कीजिए, तो वे यह कभी भी नहीं बतायेंगे कि वे खुद क्‍या करते हैं। हां, डींगें खूब हांकेंगे कि उनके दादा-परदादा की तूती बजती थी एक वक्‍त हुआ करता था। बहरहाल, ऐसे लोगों में ज्‍यादातर के पास 52 एकड़ की खेती सिर्फ पुदीना की होती है। जमीन का इंतखाब कहां दाखिल-खारिज हुआ, यह पूछते ही वे बगलें झांकना शुरू कर देंगे। वैसे अधिकांश ऐसे लोगों ने ने अपनी जमीन अपने शौक में बेच डाली, और उनके बच्‍चे दर-दर भटक रहे हैं। जबकि जो समझदार निकले, वे अपने शौक के साथ अपनी पुश्‍तैनी मकानों पर स्‍कूल-कॉलेज खोले नोट छाप रहे हैं।

खैर, ऊसर और आंवला भी वहां बहुतायत में मिलता है।

तो इस कहानी के अगले मोड़ तक आपको पहुंचाने के इस रास्‍ते में चलते-चलते हम आपको बता दें कि इन जिलों में पीसीएस परम्‍परा बेहिसाब, बेशुमार और परम्‍परागत व्‍यवहार में शामिल हो चुकी है। लेकिन यहां के लोगों में इस परम्‍परा पर न तो कोई गर्व है, और न कोई क्षोभ।

न शिकवा, न गिला।

न तो यहां के लोग इसकी वजह खोजने की जरूरत समझते हैं, और न ही इसके निदान की कोई जरूरत महसूस होती है इन लोगों को। ( क्रमश:)

यह सिर्फ एक कहानी भर ही नहीं, बल्कि हमारे समाज के सर्वाधिक प्रभावशाली समुदाय की असलियत भी है, जिसका नाम है क्षत्रिय। वंस अपॉन अ टाइम, जब देश को क्षत्र देने का जिम्‍मा इन्‍हीं ठाकुरों पर था। इस लेख या कहानी-श्रंखला में हम आपको इस समुदाय की वर्तमान परिस्थितियों का रेखांकन पेश करने की कोशिश करेंगे। दरअसल, बाबू-साहब समाज में आये बदलावों पर यह श्रंखलाबद्ध कहानी को उकेरने की कोशिश की है प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने। आप में से जो भी व्‍यक्ति इस कहानी को तार्किक मोड़ दे कर उसे विस्‍तार देना चाहें, तो हम आपका स्‍वागत करेंगे। आइये, जुड़ जाइये हमारी इस लेख-श्रंखला के सहयोगी लेखक के सहयोगी के तौर पर।

इसकी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

ठाकुर साहब पों-पों

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *