गधात्‍मानम् सृजाम्‍यहम्: गधे ने खबर लिखी, खंडन कर दिया गधों ने

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: इंडिया टुडे समूह में छपी है गधों को जेल में ठूंस दिये जाने की सनसनीखेज खबर :  यूपी पुलिस ने इस पर जो खंडन जारी किया, वह अपने आप में बड़ा मूर्खतापूर्ण मजाक बन गया : चार दिनों तक जेल में बंद रहे गधे, और गधों की टोली ने पूरे देश में हंगामा खड़ा कर दिया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : रोहित सरदाना वाले काण्‍ड के बाद से ही इंडिया-टुडे और आजतक की हवा टाइट हो चुकी है। वक्‍त-बे-वक्‍त वहां हवा कब, कैसे, कितना सटक जाए, किसी को पता ही नहीं चलता। इसलिए यहां के सारे पत्रकारों ने खबरों को लेकर अपने हाथ सिकोड़ रखे हैं। बताया जाता है कि इस बाबत बवाल टाइप खबरों से परहेज ही रखा जाए, ताकि किसी नयी किसी आफत का निमन्‍त्रण-पत्र की आमद को रोका जा सके। लेकिन खबर की दुनिया में बिना खबर के कैसे काम चलता है, वह भी तब जबकि उस समूह के पास अपना खुद का न्‍यूज चैनल हो। सनसनीखेज खबरों की सख्‍त दरकार बनी रहती है।

ऐसे में रिपोर्टर कुछ करे भी तो क्‍या करे। इंडिया-टुडे प्रबंधन के पास आजकल खबर तो बची नहीं, चुनांचे अब वहां गधों पर गहन शोध में जुट गये हैं पत्रकारिता के महान पेड-गधे। न ओर, न छोर। न राय, और न ही उसकी पुष्टि। ऐसे में एक रिपोर्टर ने एक ऐसी खबर छाप दी, कि हंगामा हो गया। अब तक गम्‍भीर छवि के लिए मशहूर रहे इस समाचार संस्‍थान के आजतक चैनल के वेब पोर्टल का माखौल बन गया है। जहां भी देखो, इंडिया-टूड का नाम सुनते ही हंसी के बगूले छूट जाते हैं।

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खैर, यह पूरी खबर पढ़ने की जहमत फरमाइये। खबर लिखी है राहुल विश्‍वकर्मा ने, लेकिन हैरत की बात है कि यह खबर पूरी तरह अधकचरी ही नहीं, बल्कि मूर्खतापूर्ण ही बना डाली गयी है। खबर का मूल स्रोत रहा है एएनआईयूपी का संदेश, जिसमें केवल इस का प्राथमिक संकेत मात्र ही दिया गया है। लेकिन इस सूचना को मनमर्जी तरीके से रोहित ने खबर-धर्म-कर्म की सारी टांगें तोड़ कर बिखेर दी हैं।

राहुल लिखते हैं कि:- उत्तर प्रदेश की पुलिस कानून-व्यवस्था के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं कर रही है. जुर्म करने पर सजा निश्चित मिलेगी, वो चाहें इंसान हो या जानवर. जी हां…बिल्कुल सही पढ़ा आपने, सजा जानवर को भी मिलेगी.  दरअसल, जालौन जिले में योगी जी की पुलिस ने कुछ गधों को उनके किए की सजा दी है. इन गधों ने जेल के बाहर लगे पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाने का दुस्साहस किया था। बताया जाता है कि कुछ दिन पहले जेल में हरियाली के लिए पौधे मंगाए गए थे. इसे जेल के अंदर लगाना था. बाहर टहल रहे इन गधों ने सारे पौधे खराब कर दिए. इस पर जेलर ने इन गधों को उरई जिला जेल में डाल दिया. खबरों के मुताबिक गधों के जेल जाने पर उसके मालिक ने जेलर से रिहाई की गुहार लगाई, जो काम न आई. बाद में एक स्थानीय नेता के कहने पर चार दिन के बाद इन गधों को छोड़ा गया. गधों के जेल से बाहर आते देख वहां मौजूद लोग भी हैरान हो गए.

अब जरा देखिये कि इस खबर पर आजतक ने जेलर से उसका पक्ष जानने की कोशिश तक नहीं की है। खबर में जेल से बाहर निकलते गधों की तस्‍वीरें तो हैं, लेकिन यह स्‍पष्‍ट नहीं हो रहा है कि यह गधे रिहाई के बाद निकले थे, या फिर जेल में निर्माण-कार्यों में प्रयुक्‍त होने वाले सामान को ढोने के लिए जेल से आवागमन के लिए आये थे। इतना ही नहीं, खबर है जालौन की, जबकि उरई जेल में उन गधों को ठूंसने की बात लिखी गयी है। सच बात तो यही है कि एएनआईयूपी की रिलीज को केवल दिल्‍ली में बैठ कर लिख मारा राहुल ने, उस पर तनिक भी भेजा लगाने की जरूरत नहीं समझी। यानी, एक मनगढ़त न्‍यूज डिस्‍पैच तैयार कर दिया गया आजतक न्‍यूज चैनल ने।

अब जरा देखिये इस पर यूपी पुलिस की काबिलियत। आव देखा न ताव, यूपी पुलिस ने अपने ट्विटर पर इस खबर पर से अपना पल्‍ला बेहद मूर्खतापूर्ण तरीके से कर दिया। जरा निहारिये तो उस खंडन को जो यूपी पुलिस ने जारी किया है कि इस खबर का यूपी पुलिस से कोई सरोकार नहीं है।

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बड़ा दारोगा

कहने की जरूरत नहीं कि उप्र के कारागार यानी जेल महकमे का मुखिया यूपी पुलिस विभाग में कार्यरत महानिदेशक अथवा महानिरीक्षक स्‍तर का आईपीएस अधिकारी होता है। ऐसी हालत में इस मामले में यूपी पुलिस का अपना पल्‍ला झाड़ना बेहद अराजकतापूर्ण ही है। खंडन करने वाले पुलिस महकमे ने यह तक नहीं सोचा कि किसी धोबी या मजदूर के कुछ गधे गैरकानूनी ढंग से पकड़ लिये गये, ऐसी हालत में तो अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन पुलिस इस मामले पर अपना पल्‍ला झाड़ रही है।

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