ताकि महफूज रहें महिलाएं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

नई दिल्ली। सरकार महिलाओं को कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान कराने वाले काफी समय से लंबित विधेयक को इसी महीने संसद से पारित कराने का प्रयास करेगी।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस विधेयक को नौ नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने का निर्णय लिया गया। इस विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों पर 50,000 रुपये तक का दंड शुल्क देना पड़ सकता है।

इस विधेयक में निजी, सार्वजनिक या असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने और कार्यस्थलों में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के कड़े प्रावधान किए गए हैं।

विधेयक में घरेलू नौकरानियों को इसके दायरे में नहीं लाया गया है। सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि यह विधेयक सभी कार्यस्थलों में लैंगिक भेदभाव दूर करने में कारगर साबित होगा। इससे महिलाएं नौकरी करने के लिए उत्साहित होंगी जिससे उनके आर्थिक सशक्तिकरण का विस्तार होगा।

विधेयक में यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया है जो विशाखा बनाम राजस्थान राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है। इस परिभाषा में किसी भी तरह के शारीरिक संपर्क या उसके प्रयास या यौनाचार की पेशकश, यौन टिप्पणियां, अश्लील चित्र दिखाना और अन्य किसी भी तरह के शारीरिक, मौखिक या अमौखिक यौन प्रकृति वाले कृत्य शामिल हैं।

इसमे न केवल किसी कार्यस्थल में कार्यरत महिलाओं को बल्कि वहां उपभोक्ता, प्रशिक्षु, दैनिक या अस्थाई कर्मचारियों के रूप में आने वाली महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करने के प्रावधान हैं। कालेजों और यूनिवर्सटियों में पढ़ने वाली छात्राओं और अस्पताल में जाने वाली मरीजों को भी इसके तहत सुरक्षा प्रदान की गई है।

विधेयक में कार्यस्थलों में महिलाओं के लिए प्रभावकारी शिकायत एवं निवारण तंत्र स्थापित करने की व्यवस्था है। प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत हर नियोक्ता को आंतरिक शिकायत समिति बनानी होगी।

देश में बड़ी संख्या में ऐसे कार्यस्थल हैं जहां दस से कम कर्मी होते हैं और उनके यहां आंतरिक शिकायत समिति बनाना संभव नहीं है। इस समस्या के निवारण के लिए विधेयक में व्यवस्था की गई है कि जिला अधिकारी उप जिला स्तर पर स्थानीय शिकायत समिति का गठन करेगा। इससे किसी भी कार्यस्थल, चाहे वह कितने भी कम कर्मचारियों वाला क्यों न हो, वहां महिलाओं को यौन उत्पीड़ने से बचाया जा सकेगा।

सेवा नियमों के अनुरूप ए समितियां दोषी व्यक्ति का दंड निर्धारित करेंगी। जो नियोक्ता प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करेगा उस पर पचास हजार रूपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जांच पूरी होने तक संबंधित महिला को धमकी या अन्य दबावों से बचाने के लिए उसे अंतरिम रूप से तबादला करवाले या अवकाश लेने का विकल्प दिया गया है। समिति को 90 दिन के भीतर जांच पूरी करनी होगी और उसकी सिफारिशों को नियोक्ता या जिला अधिकारी को 60 दिने के अंदर लागू करना होगा।

यौन उत्पीड़न की झूठी और दुर्भावनापूर्ण शिकायतों से बचाव के प्रावधान किए गए हैं। लेकिन शिकायतकर्ता द्वारा अपनी शिकायत के पक्ष में सुबूत नहीं दे पाने भर से वह दंडित नहीं किया जा सकेगा।

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