उफ़ ये जाति! एक नाराज औरत की डायरी
रंजना जायसवाल
जाति का दंश बचपन में मैंने भी झेला है|वैसे मैं जन्म से वर्णिक[बनिया]हूँ ,जो दलित जाति नहीं |पहले यह पिछड़ी जाति में भी शामिल नहीं थी,पर ब्राह्मणों के मुहल्ले में पीठ पीछे हमें ‘छोट जतिया’ जैसा संबोधन जरूर सुनने को मिल जाता था |विशेषकर ब्राह्मणियों द्वारा ,जो जन्मजात श्रेष्ठता की भावना से भरी रहती थीं |उनके जैसे कपड़े हम नहीं पहन सकते थे|पहन लिया,तो उनकी नकल मानी जाती थी |उनके घर जाते समय हमें सावधान रहना पड़ता था कि उनकी पवित्र वस्तुएँ छू न जाएँ |मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं उनके घर कभी नहीं जाती थी |हाँ,एक बार एक घर में जरूर गयी थी ,जब उनके यहाँ पहली बार टीवी आया था |मेरे लिए वह अजूबा था ,पर उनकी झिड़की से आहत होकर मैंने अपने घर टीवी लाने के लिए माँ पर जोर डाला था |
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