तब जूतों की माला पहनायी थी, अब बेईमान नेताओं का जयजयकारा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कानपुर नगर निगम में हुआ था सनसनीखेज हादसा, वोट बेचने वाले सभासद को सरेआम जूतों से नवाजा गया : वयोवृद्ध पत्रकार विष्‍णु त्रिपाठी बयान करते हैं तब बेईमान नेताओं पर जनता का आक्रोश : सोशलिस्‍ट पार्टी के दो सभासदों ने उद्योगपति की थैली कुबूल कर बेच दिया था अपना वोट :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इसे लोकतंत्र के पहलुओं की पराजय माना जाए या बेईमान नेताओं की जीत, लेकिन सच यही है कि पहले की जनता अपने नेताओं की बेईमानी का खुलासा करने पर उसकी जमकर  छीछालेदर सरेआम किया करती थी। आज वही जनता यह जानते हुए भी कि उनका नेता मूलतः भ्रष्ट, दगाबाज, पतित और बेईमान है, उसी नेता के जूतों पर अपनी नाक रगड़ती ही रहती है। आज से करीब साठ साल पहले कानपुर की ईमानदार जनता ने बेईमान नेताओं की खाल खींच कर उन्‍हें जूतों की माला पहना कर उनको सरेआम बेइज्‍जत किया था, लेकिन आज के भ्रष्‍ट नेताओं के आगे-पीछे वही जनता अब जयजय कारा लगाती नहीं थक रही है।

यह मामला है आज से करीब 7 साल पहले का, और स्थान है कानपुर का नगर पालिका का, जो अब नगर निगम की शक्‍ल तक आकार अख्तियार कर चुका है। इसी नगर पालिका के मुख्यालय में सरेआम, और मौजूद सारे सभासदों के सामने खुलेआम बेईमान साबित हो चुके अपने भ्रष्‍ट सभासद साथियों को बाकायदा जूतों की माला पहना दी गयी थी। इन सभासदों को शिकायत इस बात की थी कि वह क्यों उस मेयर प्रत्याशी के हाथ में अपना वोट बेच गए। इन गुस्साए सभासदों ने न केवल अपने ऐसे दोगले साथी सभासदों को जूतों की माला पहनाई, बल्कि उन पर सरेआम थूक कर अपने आक्रोश का प्रदर्शन भी किया

कानपुर के वयोवृद्ध पत्रकार और अपने जमाने के धाकड़ पत्रकार रह चुके विष्णु त्रिपाठी यह किस्सा सबके सामने सुनाते हैं। किस्‍सा सुनाते वक्त विष्णु त्रिपाठी के चेहरे पर उन सभासदों के प्रति गर्व का भाव साफ दिखाई पड़ता है जिन्होंने अपने बेईमान सभासदों पर जूतों की माला पहनाई थी। श्री त्रिपाठी की उम्र उस वक्‍त करीब 19 बरस रही होगी। दैनिक विश्‍वामित्र, दैनिक जागरण, आज, अमर उजाला समेत कई अखबारों में अपनी पत्रकारिता का परचम फहराने वाले पत्रकार विष्णु त्रिपाठी को आज भी खूब याद है किस तरह नगर पालिका यह हादसा हुआ था। उनका कहना है कि वह मामला था कानपुर नगर निगम का ही नहीं, बल्कि कानपुर की राजनीति में निर्वाचित नेताओं ने अपने निर्वाचित सभासद शब्दों की करतूतों का सरेआम खुलासा किया और उन्हें सरेआम बेइज्‍जत किया गया था।

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कानपुर

यह मामला है सन 59 का। यहां की लक्ष्मी रतन कॉटन मिल के मालिक हुआ करते थे प्रमुख उद्योगपति राम रतन गुप्त। कालपी रोड पर। राम रतन गुप्त कांग्रेस के की ओर से मेयर के उम्मीदवार थे। उनकी छवि येन केन प्रकारेण अपने लक्ष्य साधनों की रही थी। नोटों की थैली साथ थी, और केवल माल और उत्पादन ही नहीं, बल्कि लोगों और नेताओं को भी खरीद-फरोख्‍त में उन्हें खासी महारथी थी।  कानपुर का मेयर बनने के बाद रतन गुप्त ने अपने राजनीतिक ख्वाहिशों को पूरा कर उसे उद्योग में तब्दील करते हुए भारी भरकम आर्थिक निवेश किया था राजनीति में, और नतीजा यह हुआ कि गोंडा के मनकापुर के सांसद भी बन गए।

अब जरा सुनिए वहस अंकुश किस्सा जो नगर निगम में हुआ तब सभासदों का चुनाव जनता करती थी जबकि मेयर का चुनाव निर्वाचित सभासद ही किया करते थे कांग्रेस ने अपने मेयर सीट का टिकट राम रतन गुप्त को थमा दिया था नया जोश था इसलिए रामरतन गुप्ता ने इस जीत के लिए बेहिसाब रकम लुटानी शुरू कर दी। सभासदों की खरीद फरोख्त शुरू हो गई। अलग-अलग बैठकें हो रही थीं। खाने पीने और बिक सकने वाले सभासदों को चिन्हित कर उनकी जेब गर्म करने का अभियान छेड़ दिया था रामरतन गुप्ता ने। भागादौड़ी जबरदस्त चल रही थी, कि अचानक बवाल खड़ा हो गया

राजनीति में मूल्‍यों का जितना तेजी से स्‍खलन हुआ है, वह हैरतनाक है। हमने इस मसले को नगर निकाय यानी स्‍थानीय निकाय चुनावों पर जनता की बेशर्मी को आंकने की कोशिश की है। यह श्रंखलाबद्ध रिपोर्ट है। उसे बांचने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

बिक गयी जनता

दुनिया के महान महानगरी की सूची में दर्ज है कानपुर का नाम। आजकल इसी महानगरी के विभिन्‍न लोगों पर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरीबिटियाडॉटकॉम लम्‍बी बातचीत में जुटा है। उस वार्तालाप की विभिन्‍न कडि़यों के तौर पर हम विषयवार प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कीजिए:-

कानपुर-कनपुरिया

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