अश्लील साइट्स रोकने की कवायद जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

सैड सांग

बच्चों पर बुरा असर प़ड़ रहा है, रोकना अब अनिवार्य

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार को अश्लील साइट्स विशेषकर बच्चों की पोर्नोग्राफी दिखाने वाली साइट्स अवरुद्ध करने के लिए कदम उठाने होंगे. न्यायालय ने इस मामले में कार्रवाई योजना तैयार करने के लिए सरकार को चार सप्ताह का वक्त दिया है. न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इन्दौर निवासी अधिवक्ता कमलेश वासवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, नहीं, आपको यह करना ही होगा.

इससे पहले, अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल केवी विश्वनाथन ने देश में ऐसी साइट्स को अवरुद्ध करने की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय देने का अनुरोध किया. शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को ऐसी साइट्स अवरुद्ध करने के उपाय करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का वक्त दिया था.इस याचिका में कहा गया है कि हालांकि अश्लील वीडियो देखना अपराध नहीं है, लेकिन पोर्नोग्राफी साइट्स अवरुद्ध की जानी चाहिए क्योंकि यह महिलाओं के प्रति अपराध का एक बड़ा कारण है.

कमलेश वासवानी के वकील विजय पंजवानी का कहना था कि इस तरह की इंटरनेट साइट्स को अवरुद्ध करने के उपाय खोजने में केंद्र सरकार विफल रही है. इस संबंध में इंटरनेट कानून नहीं होने के कारण लोग अश्लील वीडियो देखने के लिए प्रेरित होते हैं, क्योंकि यह अपराध नहीं है.याचिका में आरोप लगाया गया है कि 20 करोड़ से अधिक अश्लील वीडियो या क्लिपिंग बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं. इन्हें इंटरनेट या दूसरी वीडियो सीडी के जरिए इन्हें डाउनलोड किया जा सकता है.

याचिका में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता में अश्लीलता, अपहरण और इससे संबंधित दूसरे अपराधों का ही जिक्र है, जो पोर्नोग्राफी और ऐसी वीडियो से जुड़ी समस्या से निबटने के लिए पर्याप्त नहीं है. याचिका में अश्लील वीडियो देखना या उन्हें दूसरों के साथ साझा करने को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध बनाने का अनुरोध किया गया है.

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