: काली पत्रकारिता के लिए भारत सबसे बड़ा अभयारण्य : सुधीर चौधरी जी-न्यूज में डीएनए खंगाल रहा है, जबकि थाईलैंड को बदनाम करने वाले पत्रकार को जेल :
दोलत्ती संवाददाता
नई दिल्ली : पत्रकारिता को अपनी काली करतूतों से गंदा करने वालों के लिए भारत सबसे बड़ा अभयारण्य है। किसी को भी बदनाम कर डालने में पूरी छूट होती है भारत में, जबकि भारत के अलावा बाकी किसी भी घटिया पत्रकार को कोई भी शरण नहीं मिल पाती। आपको याद होगा कि दिल्ली की उषा खुराना पर फर्जी स्टिंग खबर प्लांट कर दिया था एक पत्रकार ने। यह करीब 15 बरस पहले की बात है। इसी फर्जी खबर से भड़की भीड़ ने उषा खुराना को उसके कालेज से घसीट कर उसे पीटा था और सरेआम उसे नंगा कर दिया था। इतना ही नहीं, इस पत्रकार ने अपनी पूरी जिन्दगी फर्जी और झूठी खबरों पर ही खड़ी की। मसलन एक बड़े दिग्गज उद्योगपति से एक सौ करोड़ रूपयों की उगाही करना। इस मामले में भी पुलिस ने उस पत्रकार को जेल में बंद कर दिया था।
क्या आप जानना चाहेंगे कि वह पत्रकार कौन है। वह है जी-न्यूज समूह का दिग्गज पत्रकार, जो आजकल अपने चैनलों में मामलों का फर्जी डीएनए परीक्षण कर रहा है। इस पत्रकार का नाम है सुधीर चौधरी। इस चौधरी को जेड-प्लस सुरक्षा दे रखी है सरकार ने। बड़े मंत्रियों-अफसरों के साथ उसका उठना-बैठना है। सारे मामले फिलहाल तो अदालतों के ठण्डे बस्तों में बंद हो चुके हैं।
लेकिन दूसरी ओर थाईलैंड में झूठी खबर करने पर एक पत्रकार को दो साल जेल की सजा सुनाई गई है। इतना ही नहीं, इसी मामले में थाईलैंड मानवाधिकार आयोग के एक सदस्य के खिलाफ भी सुनवाई चल रही है. इन पर एक मुर्गी फार्म को बदनाम करने का आरोप है।
पता चला है कि थाईलैंड की एक अदालत ने एक रिपोर्टर को दो साल जेल की सजा सुनाई है. इस सजा का कारण मुर्गीपालन केंद्र पर हो रहे मजदूरों के शोषण के बारे में किया गया एक ट्वीट है. वॉइस टीवी में काम करने वाली सुचन्नी क्लिट्रे उन 20 पत्रकारों और कार्यकर्ताओं में से एक हैं जिन्हें थम्माकसेट कंपनी ने समन भेजा था. थम्माकसेट थाईलैंड में खेती और पशुपालन से जुड़ी बड़ी कंपनी बेटाग्रो को मुर्गी सप्लाई करती है. सुचन्नी ने 2016 में ट्वीट कर थाईलैंड के मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी कि थम्माकसेट के फार्म में पड़ोसी देश म्यांमार से लाए गए मजदूरों का शोषण हो रहा है. सुचन्नी ने कहा, “मैं सदमे में हूं. मैंने सोचा नहीं था कि मुझे इतनी कठोर सजा मिलेगी. अब मुझे चिंता है कि मेरे आठ महीने के बच्चे का क्या होगा.”
सजा सुनाए जाने के बाद लोपबुरी राज्य की अदालत ने सुचन्नी को 75000 भात (करीब पौने दो लाख रुपये) के मुचलके पर जमानत दे दी. सुचन्नी के वकील का कहना है कि वे इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगी. सुचन्नी ने कहा, “मैं पत्रकार होने के नाते सिर्फ अपना काम कर रही थी. मैं बस बता रही थी कि ये हो रहा है. मेरा किसी को नुकसान पहुंचाने का इरादा नहीं था. मुझे लगता है इस फैसले का असर थाईलैंड की प्रेस पर पड़ेगा. अब उन्हें कोई भी रिपोर्ट करते हुए सावधान रहना होगा.”
2016 में थम्माकसेट में काम करने वाले मजदूरों ने मीडिया को बताया था कि उन्हें दिन में 20 घंटे काम करने को मजबूर किया जा रहा है. उन्हें बिना किसी छुट्टी के 40 से ज्यादा दिन तक लगातार काम करवाया जा रहा है. मजदूरों ने आरोप लगाया कि उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल पा रहा है और ना ही उन्हें ओवरटाइम करने का कोई पैसा मिल रहा है. थम्माकसेट ने इन लोगों के दस्तावेज भी जब्त कर लिए हैं. इन लोगों के कहीं भी आने जाने पर पूरी तरह रोक है. मामले के सामने आते ही थम्माकसेट ने अपने कर्मचारियों पर मानहानि का मामला दर्ज करवाया. कंपनी के मैनेजमेंट का कहना था कि मानवाधिकार आयोग को दी गई इस शिकायत के चलते कंपनी की छवि खराब हुई है. बाद में कंपनी ने उन पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को भी नोटिस भेजा जिन्होंने इस मामले पर रिपोर्टिंग की थी.
थम्माकसेट कंपनी इन दोनों मुकदमों को हार गई. अगस्त 2016 में थाईलैंड के श्रमिक सुरक्षा और कल्याण विभाग ने थम्माकसेट को आदेश दिया कि इन मजदूरों को मुआवजे के रूप में 17 लाख भात देने का आदेश दिया. थम्माकसेट ने मजदूरों को पैसे भी दिए. सुचन्नी ने इस मामले को लेकर ट्वीट किए थे. विभाग के निर्णय के बाद थम्माकसेट ने सुचन्नी समेत कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर कई सारे मुकदमें दायर कर दिए थे.
अक्टूबर 2019 में थम्माकसेट ने मानवाधिकार आयोग के पूर्व सदस्य अंगखाना नीलापैजित के खिलाफ भी आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा दिया. कंपनी का कहना था कि अंगखाना ने भी कई ट्वीट किए जिससे कंपनी की छवि खराब हुई है. साथ ही अंगखाना ने उन लोगों के समर्थन में भी ट्वीट किए जो थम्माकसेट के मुकदमे का सामना कर रहे हैं. अगर इस मामले में अंगखाना को दोषी पाया गया तो उन्हें तीन साल की कैद हो सकती है. मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि ऐसे मुकदमों का उद्देश्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर दबाव डालना होता है जिससे वो शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना बंद कर दें. बड़ी कंपनियां अक्सर इस तरह के कदम उठाती हैं.
सर जी आप तो इस DNA वाला का असली DNA सबके सामने रख दिये हैं, अब इसका क्या होगा ?
वैसे जब BJP है तब तक इसकी मौज है, BJP के हटने के बाद इसको भी तो जाना ही पड़ेगा,तब जेल की कालकोठरी का DNA करता रहेगा,😆
सुधीर चौधरी सच बता रहा है उसकी पत्रकारिता बिल्कुल सही है वह देशद्रोहियों के बहत्तर साल पुराने मुखौटे उतार रहा है वह जनता को आने वाले समय की परेशानियों से आगाह कर रहा है तो इसमें गलत करता है
सुधीर चौधरी सच बता रहा है उसकी पत्रकारिता बिल्कुल सही है वह देशद्रोहियों के बहत्तर साल पुराने मुखौटे उतार रहा है वह जनता को आने वाले समय की परेशानियों से आगाह कर रहा है तो इसमें गलत करता है