सुधा सिंह ने बजाया ग्‍वांग्‍झू में रायबरेली का डंका

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

स्‍वर्णपदक ही नहीं, एक स्‍वर्णिम ससुराल की भी कहानी है सुधा

क्‍या मायका, क्‍या ससुराल, हर जगह मनी दीवाली: ससुराल कभी भी नहीं बनी इस बिटिया की राह का रोडा: तीन हजार स्टीपलचेज में गोल्ड मेडल मिलते ही खुशी से झूमे जनपदवासी: जमकर बंटी मिठाई, फोड़े पटाखे, हर जगह बस जयजयकार
सात साल की लगन के बाद सुधा सिंह ने कार्तिक पूर्णिमा पर ऐसा तोहफा दिया कि समूचा जनपद खुशी से झूम उठा। चीन के ग्वांग्झू शहर में चल रहे 16वें एशियाई खेलों में जैसे ही तीन हजार स्टीपलचेज में सुधा ने गोल्ड मेडल पर कब्जा किया वैसे ही जनपद वासियों की खुशी का ठिकाना न रहा। मिठाइयां बँटी और पटाखों की तेज आवाज से ऐसा लगा मानों ही दीपावली आज हो।
ग्‍वांझू में सुधा सिंह ने केवल स्‍वर्णपदक ही नहीं जीता है, बल्कि उसकी इस सफलता ने मायके और ससुराल के बीच का फर्क भी पूरी तरह खत्‍म कर दिया। सुधा की सफलता ने बता दिया है कि ससुराल पहुंच कर भी बेटी बेटी ही रहती है और उसे आसमान चूमने की पूरी इजाजत रहती है। बशर्ते नीयत और सीरत साफ हो, लगन हो और कुछ कर गुजरने की क्षमता भी। ऐसा संयोग बनाने के लिए केवल मायके और ससुराल ही नहीं, बल्कि बेटी को भी हर एक को विश्‍वास में लेना होता है। साबित करना होता है कि वे वास्‍तव में कुछ करना चाहती है।
हर ओर बेटी के चर्चे, मां से लेकर पिता तक झूमे तो ससुर ने गांव में मिठाइयां बांटी। टूटे मैदान से शुरू हुआ सफर विश्व के जाने माने मैदान तक पहुंचा तो जिले के सपने साकार हो उठे और  देश के साथ साथ रायबरेली  का नाम भी रोशन हुआ। सुधा की इस जीत पर पूरा का पूरा इलाका ही मगन है। बधाइयों के तो तांते ही लगे हुए हैं।
मध्यम वर्गीय परिवार की सुधा सिंह ने अपने खेल पर कभी संसाधनों की कमी को आड़े नहीं आने दिया। उसने सात साल तक जीतोड़ मेहनत की और आज देश की धड़कन बन बैठी। सुधा कि इस सफलता में जितना योगदान उनके मायके का है उतना ही योगदान उनके ससुराल का रहा। उन्हें कभी भी खेल खेलने से नहीं रोका गया जिसका परिणाम आज सबके सामने है। सुधा के पति जीतेन्द्र सिंह भी एथलीट हैं। सुधा की सफलता से परिवार का हर सदस्य खुश है। पिता को जहाँ अपनी बेटी पर नाज़ है तो वहीँ ससुर  को अपनी बहू पर गर्व है। सुधा के ससुर बताते हैं कि उन्‍हें तो कभी लगा ही नहीं कि सुधा सिंह उनकी बहू है। सुधा ने हमेशा ही वहां खुद को एक बेटी की ही तरह पाया और वहां पर व्‍यवहार भी वैसा ही किया। वे बोले कि सुधा ही हमारी बेटी है और बहू भी। सुधा के पति की निगाह में भी सुधा एक बेहतरीन जीवन साथी है जो एक दूसरे के लक्ष्‍यों को हर कीमत पर हासिल करने में कोई कोर कसर नहीं छोडती।
बहरहाल अगर देश की बेटियों को इसी तरह मौके मिलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दुस्तान बेटियों की सफलता के लिए पूरे विश्‍व में जाना जायेगा। यह बात कम से कम सुधा सिंह ने तो साबित कर ही दी है।

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