जमाना है हम से, जमाने से हम नहीं:हगामी देवी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

समाज की परम्पराओं को तोड़ते हुए बेटी पहुंच गयी श्‍मशान

उदयपुर की बेटी ने दिया पिता की अर्थी को कन्धा

पहली बार किसी बेटी ने दी है मुखाग्नि

उदयपुर की हगामी बाई ने आज यह साबि‍त कर ही दिया कि जमाना हम से है, हम जमाने से नहीं। जी हां, अपने पिता की म़त्‍यु पर परम्‍पराओं को धता बताते हुए उदयपुर की इस बालिका ने एक नया इतिहास रचने के लिए एक मजबूत कदम उठा लिया। हालांकि हगामी बाई के इस कदम की अब जमकर आलोचनाओं का दौर शुरू हो चुका है।

मृत्यु के बाद बेटा या कोई रिश्तेदार ही अंतिम संस्कार करने का अधिकारी होता है। सामान्‍य तौर पर तो यही मान्‍यता और प्रचलन है। इतना ही नहीं, महिलाओं को तो श्‍मशान घाट पर जाने तक से मनाही की जाती रही है। इसके पीछे मान्‍यता तो सम्‍भवत यह है कि महिलाएं श्‍मशान घाट का माहौल सम्‍भवत सहन नहीं कर सकेंगीं। लेकिन उदयपुर की हगामी देवी ने एक झटके में ही इन परम्‍पराओं को धता बता दिया। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को तोडा है इस बेटी ने जिसने सामाजिक परम्पराओं को तोड़ते हुए न केवल पिता की अर्थी को कन्धा दिया, बल्कि शमशान घाट जाकर पिता के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि भी दी। सामाजिक मान्यताओं को तोडती यह घटना घटी है शहर से सटे  बड़गांव में।

बडगांव में मावाराम की मृत्यु हो गयी थी।  मावाराम पिछले लम्‍बे समय से बीमार चल रहे थे।  उनका कोई बेटा नहीं था, सिर्फ तीन बेटियां हैं।  ऐसे में उनकी बड़ी बेटी हगामी बाई ने आलोचनाओं की चिंता किये बगैर साहसिक कदम उठाते हुए न केवल अपने पिता की अर्थी का कंधा दिया बल्कि श्मशान घाट पहुंच कर पिता के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि भी दी।

हालाँकि जानकारों का कहना है की भारतीय समाज में यह पहली बार हुआ है कि एक बेटी ने अपने पिता की चिता को अग्नि दिया हो। लेकिन कुछ भी हो हगामी बाई का यह कदम सराहनीय तो है ही। बस जरूरत है इसे बढ़ावा देने की जिससे भारतीय समाज में बेटियों को एक नयी दिशा मिल सके

 

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