: मायावती, मुलायम सिंह यादव और राजनाथ सिंह समेत आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों का बज गया बाजा : जैसे पार्थिव शरीर से आत्मा निकलती है, ठीक उसी तरह खाली करना पड़ेगा सरकारी बंगला : जनता को हक है कि उसकी सम्पत्ति को चंद लोग न लूट सकें : लोकप्रहरी की याचिका पर 12 साल तक चली सुनवाई : मुलायम और मायावती ने तो जबर्दस्त काम करा रखा था इन बंगलों पर :
लखनऊ : अच्छा बात जरूर है कि कभी-कभार ही सही, लेकिन अदालतें ऐसा कुछ कर ही देती हैं जिससे आम आदमी को तनिक यकीन का आभास हो जाए कि इस देश में कहीं किसी न किसी बिल में सही, लेकिन आम आदमी की भावनाओं का सम्मान हो जाता है।
ताजा खबर यह है कि सुप्रीम ने एक फैसले में सभी पूर्व मुख्यमंत्री अब सरकारी मकान में आजीवन नहीं रह सकते। चाहे वह झोंपड़ी नुमा विशाल बंगला हो या कोई महल नुमा झोंपड़ी। पद गया तो बंगला जैसी सारी सुविधाएं भी नश्वर भाव में छोड़नी पड़ेंगी। जैसे पार्थिव शरीर से आत्मा निकलती है, अकेली-पकेली।
यह नहीं चलेगा कि जिन्दगी भर वे सरकार पर भार बने घूमते रहें। मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति—-
आज यह ऐतिहासिक फैसला दिया है सर्वोच्च न्यायालय ने। अदालत ने कहा है कि ज्यादा से ज्यादा दो महीनों के भीतर ही सारे पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपने उन सरकारी मकानों को छोड़ना पड़ेगा, जिसे वे अपनी बपौती माने सीना ताने घूमा करते थे। अदालत का कहना है कि ऐसे मकान सरकार के होते हैं और जाहिर है कि जनता को यह हक होता है कि वे अपनी सरकार पर ऐसी मनमर्जी करने पर रोक लगायें।
जाहिर है कि इस आदेश का सबसे बड़ा असर मुलायम सिंह यादव और मायावती पर पडेगा। क्योंकि इन दोनों ही नेताओं ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही अपने लिए अलग-अलग विशालतम बंगलों को खुद के लिए अलाट करा लिया था और उसकी मरम्मत, निर्माण, रंगरोगन वगैरह पर सैकड़ों करोड़ रूपयों का खर्चा कर दिया था। यह खर्चा भी सरकारी खजाने से किया गया था। इस फैसले का सीधा असर मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामनरेश यादव और एन डी तिवारी पर पड़ेगा। सभी को 2 महीने में लखनऊ का बंगला खाली करना पड़ेगा।
आपको बता दें कि लोक प्रहरी नामक एक स्वैच्छिक संगठन ने 1997 में जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी थी कि सारे पूर्व मुख्यमंत्रियों को हमेशा-हमेशा के लिए सरकारी बंगला दिया जाएगा। सन 2004 में दायर इस याचिका पर नवंबर 2014 में सुनवाई पूरी हुई। लगभग डेढ़ साल बाद दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर के लिए सरकारी आवास नहीं दिया जा सकता है। लोकप्रहरी ने अपनी याचिका में “उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज़, अलाउंस एंड अदर फैसिलिटीज एक्ट 1981” का हवाला दिया था. इस एक्ट के सेक्शन 4 में कहा गया है कि मंत्री और मुख्यमंत्री, पद पर रहते हुए एक निशुल्क सरकारी आवास के हकदार हैं. पद छोड़ने के 15 दिन के भीतर उन्हें सरकारी मकान खाली करना होगा।
आपको बता दें कि इसके पहले तक उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री लोग खुद ही अपने आप को दूसरा बंगला आवंटित कर रहे थे। पद से हटने के बाद वो उस बंगले में रहना शुरू कर देते थे। यानी एक समय में न सिर्फ एक से ज़्यादा बंगले ले रहे थे, बल्कि बिना कानूनी प्रावधान के पद छोड़ने के बाद भी सरकारी बंगले में रह रहे थे। 1996 में इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. तब यूपी सरकार ने 1997 में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला देने का एक सरकारी आदेश जारी कर दिया। इस आदेश को एक्ट का सीधा उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. अब याचिकाकर्ता की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है।
इस फैसले का असर मध्य प्रदेश और बिहार समेत उन तमाम राज्यों पर पड़ेगा जिन्होंने बिना ज़रूरी कानूनी प्रावधान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला देने की व्यवस्था बनाए रखी है।