दीगर नेताओं के मुकाबले सुशीला सरोज को बिलकुल खतरा नहीं लगता
अगर आपको सुरक्षा चाहिए तो जेलों से ज्यादा सुरक्षा कहां है नेताजी ?
कुमार सौवीर
लखनऊ : सुशीला सरोज लखनऊ-मोहनलालगंज से सांसद हैं। अभी कुछ ही दिन पहले उन्हें देखा, सड़क पर लोगों की भीड़ से बतियाते हुए। तनाव का एक भी शिकन उनके चेहरे पर नहीं था। अगर था तो सिर्फ मुस्कुराहट। एक भी सुरक्षाकर्मी उनके साथ नहीं था।
इसके पहले भी करीब तीन साल पहले जुग्गौर के आगे इंदिरा नहर में एक मैटाडोर हादसे में सात लोगों की डूब कर मौत हो गयी थी। खबर मिलते ही हम लोग मौके पर पहुंच गये थे। वहां पहुंचने के बमुश्किलन दस मिनट बाद सुशीला सरोज मौके पर पहुंच गयीं और अपने लोगों को बुलाकर राहत का काम शुरू कर दिया। उस दिन भी वे बिना सुरक्षा के ही थीं। हां, क्षेत्रीय विधायक नदारत थे और कई घंटों बाद अफसर ही मौके पर पहुंचे थे। सुशीला सरोज समाजवादी पार्टी से जुड़ी हैं। वे एक बार विधायक, एक बार मंत्री और दो बार लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं। वे तीसरी बार सांसदी के लिए कोशिश कर रही हैं।
लेकिन इसके अलावा एक भी कथित या तथाकथित सरकारी नुमाइंदा मुझे ऐसा नहीं दीखता है जो भारी सुरक्षा के घेरे में आम आदमियों का जीना हराम न कर रहा हो। हैरत की बात है कि आम आदमी एक झांपड़-थप्पड़ तक जिन लोगों पर नहीं मारना चाहता, खंखार कर थूकना तक नहीं चाहता, आज वे हम लोगों में दम कर रहे हैं।
और अगर आप ऐसे लोगों की औकात देखना चाहते हों तो आपका तीन दिन पहले का एक नजारा महानगर चौराहे पर रिप्ले-बयान कर दूं।
एक सांसद की कार के आगे-पीछे चल रही दो-दो गाडि़यों में सवार केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान लगातार इस सांसद के काफिले का रास्ता साफ करने के लिए गुजरने वालों के साथ बेइंतिहा बदतमीजी पर आमादा थे। मेरी गाड़ी के पीछे पहुंचते हुए इन जवानों ने मुझे भयंकर सायरन बजाया। मैंने पलट कर देखा तो वे अभद्रता से मुझे हटाने का इशारा कर रहे थे।
सहन नहीं हो पाया, मैंने भी उनकी ही शैली अपनायी और तय किया कि अपनी गाड़ी नहीं हटाऊंगा। नतीजा यह कि वे लगातार सायरन बजाते रहे और मैं शांत भाव से अपनी गाड़ी चलाता रहा। तब तक उस काफिले ने अपना रास्ता न बदल दिया।
यह मेरे साथ अनोखी घटना नहीं हुई है। दिन भर में तीन-चार बार मैं इसी खीज-भरी उलझन से दो-चार होता रहता हूं। अरे नेता, तुम सड़क पर इतना हल्ला क्या करते हो। हैरत है कि तुम्हारी गाड़ी का सायरन सड़क को बौखला कर देता है और हैरत है कि तुम्हारे कानों तक कोई खबर तक नहीं पहुंचती। अरे, जनता के बल पर सांसद हो और फिर से सांसदी हासिल करने के लिए जनता के सामने घुटने टेकने जा रहे हो। फिर किस मुंह से वोट मांगने निकलोगे। थोड़ा शर्म तो करो।
मेरा तो मानना है कि जिन लोगों को अपनी जिन्दगी पर खतरा लगे और नतीजन उन्हें सुरक्षा की जरूरत महसूस हो, उन्हें सामूहिक सुरक्षा दे दी जानी चाहिए। मोहनलालगंज में हाल ही मायावती ने एक ऐसा ही सुरक्षा-गृह बनवा ही दिया है। वहीं पर ऐसे सारे असुरक्षित नेताओं-लोगों को टिका दिया जाना चाहिए। और जिन्हें कोई खतरा नहीं है, वे आयें, सीधे जनता के पास जाएं।
कुमार सौवीर पत्रकार और लेखक हैं।
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