असर जोश की पिनक का: पत्रकारों के मन में जो भी आया, झूठा-सच्‍चा लिख मारा

मेरा कोना

: अमर उजाला और दैनिक जागरण ने तो सारी सीमाएं ही तोड़ कर जमकर तेल लगाया : जब उल्‍टी दिशा पर ट्रैफिक भेजा गया था, फिर उसे रांग-साइड कैसे घोषित कर दिया : स्‍वर्ग में अब तक छटपटा रही है पत्रकारिता के पराड़कर की आत्‍मा : कमाल की है लखनऊ की पत्रकारिता- तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : 19 नवम्‍बर के अखबार में नवनीत सहगल के साथ हुई इस घटना को लेकर सारे अखबार रंगे हुए थे। चैनल भी पल-पल की खबरें चला रहे थे। हर अखबार ने कम से कम एक पन्‍ना इस हादसे पर समर्पित किया था। सभी समाचार संस्‍थानों ने इस हादसे के लिए अपनी कई-कई टीमें लगा रखी थीं, कि इस दुर्घटना का कोई भी पहलू किसी दूसरे समाचार संस्‍थान से कहीं पिछड़ न जाए। ऐसा न हो कि कोई चूक हो और हमारा संस्‍थान पीछे पायदान पर चला जाए।

गनीमत थी कि सभी संस्‍थानों ने इस मामले में यह तो पता कर लिया कि यह हादसा हुआ। लेकिन यह पता करने की जरूरत नहीं समझी कि इस हादसे में गलती किसकी थी। कहने को तो सभी समाचार संस्‍थानों ने इस हादसे के कवरेज के लिए बाकायदा पूरी टीमें लगायीं, लेकिन दिलचस्‍प बात यह रही कि यह पूरी की पूरी खबरें हियर ऐण्‍ड से यानी कही-सुनी तर्क पर ही रही।

अमर उजाला ने तो इस हादसे पर अपना पूरा ब्‍यूरो यानी पूरी मुकम्मिल टीम को ही जुटा दिया था। अमर उजाला ने ऐलान कर दिया कि लोगान कार रॉंग-साइट थी, और यह हादसा लोगान प्रशांत की गलती से हुआ। यह खबर इस अखबार ने अपने पहले पन्‍ने पर छापा। हालांकि गनीमत थी कि इस अखबार ने बाद के पन्‍नों पर यह लिख दिया कि इस सड़क का एक हिस्‍सा चूंकि निर्माणाधीन था, इसलिए निर्माण-कारी संस्‍थान के निर्देशानुसार मजबूरन उस लोगान कार को दूसरी पटरी पर लगाना पड़ा था। अमर उजाला ने पहले पन्‍ने पर जो खबर लिखी, उसमें हेडिंग में ही दर्ज है कि रांग-साइड से ड्राइव हो रही थी वह कार, जिसने नवनीत सहगल की कार को टक्‍कर दे दी। अमर उजाला का एक रिपोर्टर लखनऊ के डीएम सत्‍येंद्र सिंह यादव का नाम और उन्‍नाव की एसपी नेहा का नाम तो छाप गया, लेकिन जोश की पिनक में उन्‍नाव के डीएम का नाम ही भूल गया।

हिन्‍दुस्‍तान ने तो इस खबर को सतही के तौर पर लिया, हादसे की खबरें तो दीं, लेकिन तथ्‍य के बजाय फोटोज से पन्‍ने रंगना शुरू किया।

लेकिन दैनिक जागरण के रिपोर्टरों की टीम ने तो उछल-उछल कर ऐसे-ऐसे स्‍ट्रोक लगाये, कि पत्रकारिता के पूर्वज पुण्‍य-मना पराड़कर की स्‍वर्ग में छटपटा उठे। जागरण की खबर पर एक नजर डालिये, जिसमें दर्ज है कि एक पत्रकार की स्‍कार्पियो को रोका, जिसका ड्राइवर सहृदय निकला। इतना ही नहीं, सत्‍यता से कोसों दूर होकर इस रिपोर्टर ने लिख मारा कि:- जिस कार ने सहगल की कार को टक्‍कर मारी थी, उसमें दो लाग सवार थे ओर प्रत्‍यक्षदर्शी पत्रकार के अनुसार दोनों शराब पिये थे। वे भी काफी घायल थे। उन दोनों को स्‍कार्पियो में जबरन बिठा लिया गया और ट्रामा सेंटर पर पुलिस के हवाले कर दिया गया। (क्रमश:)

एक दौर था, जब यूपी के पत्रकारों की धाक हुआ करती थी। यूपी विधानमंडल द्वारा आयोजित एक शाहाना दावतनामा पर केंद्रित जयप्रकाश शाही की जनसत्‍ता में छपी एक खबर पर इतना असर पड़ा कि इसके बाद एक नया अधिनियम बना दिया गया। लेकिन अब माहौल बदल चुका है। अब पत्रकारिता सच का खुलासा नहीं करता, बल्कि सच को छिपाने के लिए धूल-गर्द तक फेंकने तक से गुरेज नहीं करती। ताजा मामला है आगरा एक्‍सप्रेस-वे पर हुआ हादसा, जिसकी कवरेज के लिए पत्रकारों ने अपनी कल्‍पनाओं के सारे घोड़े खोल डाले। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम(www.meribitiya.com) ने इस मामले पर श्रंखलाबद्ध समाचार देना शुरू किया है।

इस सच से जुड़ी खबरों को पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए: कमाल की है लखनऊ की पत्रकारिता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *