: परस्पर आस्था और निष्ठाओं का नाम था टाटा का विशालतम उद्योग-समूह, अब किर्च-किर्च बिखरने जा रहा : हाईकोर्ट में अब तक चार कैवियट अर्जियां दायर कर चुका है टाटा नेतृत्व : डोकोमो और जागुआर लैंडरोवर्स समेत कई प्रमुख निवेशों में भारी गड़बडि़यों पर बवाल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अभी तीस साल पहले तक पूरे देश में एक कहावत की तर्ज पर एक नारा गूंजा करता था, जो इस देश में उद्योगों की साख और उसके प्रभुत्व का मजबूत प्रतीक माना जाता था। और इस नारे-नुमा कहावत में शीर्ष पर था टाटा। कहावत थी:- टाटा, बाटा, बिड़ला, बांगड़। पिछले डेढ़ सौ बरसों में केवल टाटा समूह ही ऐसा था जो देश का सर्वोच्च उद्योग समूह था। खास बात यह कि इस समूह के स्थापना जमशेदजी टाटा से लेकर आज तक सभी प्रबंधकों में पारसी जाति के अल्पसंख्यक ही लगाम थामे हुए रहते थे। एक खास बात और भी, कि अकेला यही टाटा समूह था जिसने उद्योग में विशेषज्ञता के साथ ही एक ऐसी नायाब पहचान बनायी जो आज भी अप्रतिम है। वह है जमशेद नगर और बोकारो। यकीनन यह सारे तक इस समूह की विश्वसनीयता के सर्वोच्च प्रतीक थे, जिसमें बेईमानी या रिश्वत का कोई स्थान ही नहीं था।
लेकिन अब ऐसा नहीं है। मीडिया में दलाली की प्रतिमूर्ति रही राडिया के साथ रतन टाटा के रिश्तों के खुलासे के बाद से रतन टाटा के रास्ते टाटा समूह की प्रतिष्ठा लगातार गंधली होती रही। फिर खबरें आने लगीं कि टाटा समूह ने राडिया के माध्यम से घूस वगैरह का धंधा भी सम्भाल लिया। हालांकि इसके बाद रतन टाटा ने खुद को इस समूह से किनारा करके अपनी गद्दी सायरस मिस्त्री को थमा किया, इसके बाद आम आदमी को यकीन होने लगा कि टाटा की धूमिल प्रतिष्ठा अब फिर वापस आ लौट सकती है। लेकिन कल सायरस मिस्त्री की बर्खास्तगी के बाद देश को फिर एक जोरदार धक्का लगा कि टाटा में दरअसल संड़ाध लगातार बढ़ती ही जा रही है।
रतन टाटा की खुसूसियत है कि वे आज भी लोगों के आकर्षण का प्रतीक है। मसलन, उनका चिर-कुंवारापन। 67 बरस की उम्र के बावजूद उनका मिग और जगुआर वगैरह उड़ाना। वगैरह-वगैरह। लेकिन ताजा खबर है कि रतन टाटा फिर ने टाटा समूह पर फिर से कब्जा कर लिया है। हालांकि यह खबर तो कल ही आ गयी थी, कि सायरस की जगह अब रतन टाटा दोबारा टाटा समूह की लगाम सम्भाल चुके हैं। लेकिन आज जिस तरह मुम्बई हाईकोर्ट में टाटा समूह ने एक के बाद एक चार कैवियट दायर की हैं, उससे साबित हो गया कि रतन का यह फैसला यह उतना शांत नहीं है, जितना दिखाया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि यह समूह में धोखाधड़ी, कामचोरी, उपेक्षा, और अकर्मण्यता के साथ ही परस्पर उठा-पटक के चलते टाटा समूह के सतह पर यह खबरें पिघल कर निकल रही हैं।
सूत्र बताते हैं कि रतन टाटा को सबसे बड़ा झटका तो केवल इसी सूचना से मिला था कि डोकोमो को एक सौ बीस अरब डॉलर की मालकियत से अलग कर दिया गया। न्यूयार्क और आदि कई स्थानों पर टाटा के आलीशान होटलों के संचालनों और निवेशों में मनमर्जी हुई। आरोप तो यह भी लगाया जा रहा है कि रतन की ख्वाहिशों के खिलाफ होकर सायरस मिस्त्री ने उदासीनता दिखायी और जगुआर लैंडरोवर के निवेश को पिछाड़ दिया। इसके अलावा भी कई मामले-आरोप रतन टाटा के खेमे की ओर से सायरस मिस्त्री पर फेंके जा रहे हैं। लेकिन हैरत की बात है कि रतन खेमा आक्रामक होकर आरोप उछाल रहा है, जबकि सायरस मित्री बिलकुल खामोश, शांत और प्रतिक्रियाहीन ही बने हैं। हालांकि रतन टाटा की ओर से चार कैवियट दायर हो चुकी हैं, लेकिन अब तक सायरस मिस्त्री ने एक भी कानूनी कवायद छेड़ने की कोशिश नहीं की है।
लेकिन ऐसा भी नहीं कि अपनी इस पराजय और अपमान को सायरस यूं ही बर्दाश्त कर पायेंगे। लेकिन तब तक सभी लोग दम-साधे प्रतीक्षा में अपनी धड़कनों को गिनते ही रहेंगे।