ऐसे संयम से बेहतर है, कि हम अपनी सीमा तोड़ दें

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पहले तो यह समझ लीजिए कि आप मेंढक नहीं हैं : पानी का तापमान बढ़ते समय मेंढक अपने शरीर को भी एडजस्ट करता रहता है : मेंढक की कहानी, उसकी अनुकूलनता और उसकी परिणति की गाथा आप अब खुद सीधे अजय कुमार सिंह से सुन लीजिए :

अजय कुमार सिंह

लखनऊ : जीवन में विभिन्‍न पहलुओं पर आने वाले चढ़ाव-उतार को लेकर समाज के विभिन्‍न लोगों का नजरिया अलग-अलग होता है। अपनी हालातों से बेहाल दीखते लोगों के प्रति सामान्‍य तौर पर लोग-बाग यही सुझाव देते दिख जाएंगे कि जरा हर चीज को माहौल के हिसाब से ही देखा-समझा और जीना चाहिए। इसके लिए तर्क विभिन्‍न तरीके से दिये जाते हैं। और कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे तरीकों के आयाम और उसके परिणाम हमेशा एक से ही नहीं होते हैं। जीवन के कोई भी हिस्‍से से होने वाली समस्‍याएं हमेशा एक सी नहीं होती हैं। केवल शुष्‍क गणित के कठिन समीकरण ही नहीं होते हैं जीवन के सवाल। एक ही समस्‍या की पहचान, उसके कारक-तत्‍व और उससे निपटने को अगर ठीक से समझ भी लें, तो भी ऐसा नहीं होता है कि उसका समाधान शर्तिया हो ही जाए। माहौल और परिस्थितियां भी एक बहुत बात होती है।

कुछ भी हो, किसी भी समस्‍या या खतरों को लेकर सामंजस्‍य-तालमेल बिठाना एक बेहतर तरीका होता है, लेकिन हर चीज की हद जरूर होनी चाहिए। जो पेड़ नहीं झुक पाते, वे झोंकों में ढह जाते हैं। लेकिन हर झुकाव जीवन को खत्‍म भी कर सकता है। जबलपुर हाईकोर्ट के अधिवक्‍ता अजय कुमार सिंह ने एक बेहद मार्मिक कथा सुनायी है। यह समस्‍याओं के प्रति प्राणी के अनुकूलन की प्रक्रिया को लेकर है। इस कहानी में केंद्र-नायक रखा पहचाना गया है मेंढक। अब इस मेंढक की कहानी, उसकी अनुकूलनता और उसकी परिणति की गाथा आप अब खुद सीधे अजय कुमार सिंह से सुन लीजिए। हालांकि हम आपको चेतावनी भी देना चाहते हैं कि अजय कुमार सिंह ने खुद ही इस कहानी में साफ लिख दिया है कि इस कहानी का मूल-संदेश हर चीज पर लागू नहीं हो सकता है।

खैर, अब आप अजय कुमार सिंह से मेंढक और उसकी अनुकूलनता का किस्‍सा सुन लीजिए। निष्‍कर्ष आपको खुद ही पता चल जाएगा।:-

क्या आप जानते है, अगर एक मेंढक को ठंडे पानी के बर्तन में डाला जाए और उसके बाद पानी को धीरे धीरे गर्म किया जाए तो मेंढक पानी के तापमान के अनुसार अपने शरीर के तापमान को समायोजित या एडजस्ट कर लेता है।

जैसे जैसे पानी का तापमान बढ़ता जाएगा वैसे वैसे मेंढक अपने शरीर के तापमान को भी पानी के तापमान के अनुसार एडजस्ट करता जाएगा।

लेकिन पानी के तापमान के एक तय सीमा से ऊपर हो जाने के बाद मेंढक अपने शरीर के तापमान को एडजस्ट करने में असमर्थ हो जाएगा। अब मेंढक स्वंय को पानी से बाहर निकालने की कोशिश करेगा लेकिन वह अपने आप को पानी से बाहर नहीं निकाल पाएगा।

वह पानी के बर्तन से एक छलांग में बाहर निकल सकता है लेकिन अब उसमें छलांग लगाने की शक्ति नहीं रहती क्योंकि उसने अपनी सारी शक्ति शरीर के तापमान को पानी के अनुसार एडजस्ट करने में लगा दी है। आखिर में वह तड़प तड़प मर जाता है।

मेंढक की मौत क्यों होती है ?

ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि मेंढक की मौत गर्म पानी के कारण होती है।

लेकिन सत्य यह है कि मेंढक की मौत सही समय पर पानी से बाहर न निकलने की वजह से होती है। अगर मेंढक शुरू में ही पानी से बाहर निकलने का प्रयास करता तो वह आसानी से बाहर निकल सकता था।

सामंजस्य बिठाने की मेरी अपनी लिमिट है, उस सीमा के बाहर सामंजस्य क्यों नहीं बिठाता इस प्रसंग को पढ़कर समझना चाहें तो समझ ले सकते हैं।)

( विभिन्‍न विषयों पर गहरी नजर रखने वाले लेखक अजय कुमार सिंह जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्‍ता हैं। )

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