: क्या आप जानते हैं कि रंगा-बिल्ला, गावरी शंकर या धनन्जय चटर्जी कौन था, उसने क्या किया था : दिल्ली में मारी गयी बच्ची को मैं मेरी बिटिया मानता-पुकारता हूं, हर देशवासी में भी यही भाव है : ताजा हालातों में गुंजाइश नहीं है कि राष्ट्रपति उसकी दया-याचिका पर हस्तेक्षप कर पायेंगे : बच्चों की सुरक्षा और उन्हें खिलने-फूलने का माहौल देने में फांसी अड़चन बनेगी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : दिल्ली के रोंगटे खड़े कर देने वाले निहायत अमानुषिक बलात्कार काण्ड के पांचों अपराधियों को फांसी देने का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने दे दिया है। चूंकि अपनी प्रवृत्ति में बेहद घृणित और नृशंस कांड था, जिस पर पूरे देश की रगों में गुस्सा अब तक भरा पड़ा हुआ है। ऐसे में इस बात की कत्तई गुंजाइश नहीं दीखती है कि राष्ट्रपति भवन से इस मामले में किसी भी दया-क्षमा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इस बच्ची या ऐसी किसी भी बच्ची को मैं मेरी बिटिया मानता, कहता और पुकारता हूं। मेरा मानना है कि हर देशवासी उस या ऐसी किसी भी बच्ची के साथ भी यही भाव रखता होगा।
लेकिन अब एक सवाल है।
पांच हत्यारों को फांसी देने के बाद क्या बात खत्म हो जाएगी।
क्या उसके बाद से किसी भी बच्ची के साथ ऐसी अमानवीय हरकतों पर अंकुश लग जाएगा।
फांसी देने से तो वह सारे घृणित प्रतीक-चिन्ह भी खत्म हो जाएंगे, जो ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए मानक बन सकते हैं। वह प्रतीक होते हैं, उदाहरण और नजीरें होते हैं। फांसी का फैसला दिया, जेल में सुरक्षा बढ़ा दी गयी, पत्रकारों के लिए खबर बन गयी कि फांसी पाये गये लोगों को किस बैरक में बंद किया गया है। उसकी सुरक्षा के लिए क्या तैयारियां हैं। तारीख-वक्त क्या होगा। फांसी देने की पूर्व-सन्ध्या पर उसके क्रिया-कलाप क्या रहे। उसने क्या और कितना खाया। भगवान को याद किया या नहीं। चेहरे पर क्या बदलाव आये।
उन पांचों को फांसी देने वाला फंदा बस्तर की जेल में बनेगा, और उसका नाम है मनाली-फंदा। जेल में अब तक कितने अपराधियों को फांसी दी चुकी है। किस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं फांसी देने में, कब, कैसे और किस तरह फांसी देने में कोई दिक्कत आयी थी और उससे कैसे जेल प्रशासन ने सफलता पायी थी।
यह भी चर्चाएं चलेंगी कि फांसी देने वाला जल्लाद कहां का रहने वाला है, उसका परिवार कहां रहता है, कौन-कौन है उसके घर। इसके पहले उसने कभी कोई फांसी दी थी या नहीं। फांसी देने का उसका पहला अनुभव क्या रहा। अब तक कितनी फांसी को दे चुका है। इतनी फांसियां देने बाद उसे अब कैसा लगता है। फांसी देने के लिए जल्लाद को कैसे तिहाड़ ले जाया जाएगा। कौन-कौन होगा उसके साथ। उसके भोजन की व्यवस्था होगी, जल्लाद को क्या-क्या पसंद है। वह शराब पीकर फांसी देगा, या फिर फांसी देने के बाद शराब पियेगा, अथवा पियेगा ही नहीं।
लाशों को उसके घरवाले कुबूल करेंगे या नहीं, अथवा सरकार ही उनका क्रिया-कर्म निपटा देगा।
बस।
यही इतिश्री होगी उन पांचों की फांसी के बाद।
मेरा दावा है कि फांसी के बाद चंद दिनों तक पूरा देश जश्न मनायेगा, और अगले कुछ बरस तक उसकी मौत के दिन मोमबत्ती जलाने की परम्परा चलेगी। उसके बाद फिर सब खत्म हो जाएगा।
आप-हम में से कितने लोग ऐसे हैं, जो रंगा-बिल्ला की करतूतों के बारे में जानते हैं। गावरी शंकर ने क्या किया। धनन्जय चटर्जी कौन है।
अमरमणि त्रिपाठी को हमने जिन्दा रखा है। उसकी नजीर आज हम सब देते और समझाते हैं। माना कि उसकी राजनीतिक करतूतें आज भी हमारे समाज को उथल-पुथल कर देती हैं, लेकिन कम से कम हमारे पास एक नजीर तो है कि अमरमणि त्रिपाठी जैसा कमीना-दुर्दांत हत्यारा आज जेल में बंद है।
खास बात यह कि मेरी नजर से कोई भी अपराधी उसके पीडि़त व्यक्ति या उसके जुड़े लोगों का ही अपराधी नहीं होता है। वह तो समाज या देश के प्रति अपराध करता है।
हालांकि लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे, लेकिन सच तो यही है कि अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सर्वोच्च न्यायालय में जो बयान दिया कि कोई भी व्यक्ति पर सबसे हले सरकार या देश का अधिकार होता है। सच कहा है रोहतगी ने। इसीलिए जब हम किसी को दंडित करते हैं तो यह बताना चाहते हैं कि उससे समाज सीख ले। लेकिन जब आप उसे मार डालेंगे तो फिर वह नजीर ही खत्म हो जाएगी
और रही अमर मणि की बात, तो वह भी जब भी जिन्दा रहेगा, लोगों की जेहन में ताजा रहेगा। नजीर खत्म होने से ज्यादा बड़ी बात यह है कि जीवन भर की बिना पैरोल की सश्रम जेल ज्यादा बड़ी सजा है। वह मधुमिता जैसी लड़कियों के साथ हुए न्याय का प्रतीक रहेगा।
मैं तो समाज को नजीर देने का हिमायती हूं
दोस्तों। फांसी के बाद तो साक्ष्य भी समाप्त हो जाते हैं। आइये, हम साक्ष्यों को सुरक्षित रखें और हमारे-अपने जेहन में अपने बच्चों की सुरक्षा और उन्हें खिलने-फूलने का माहौल मुहैया करायें।
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