डीआईजी मुंह बाये बैठा था, कप्‍तान एसओ को लेकर चला गया

मेरा कोना

: अपराधियों के बजाय अपने ही दारोगा को जेल भेजने पर आमादा था बड़ा दारोगा : बड़ा दारोगा कारसाज था, उसने एसओ पर आठ मुकदमे दर्ज करा दिये : छेड़ दीजिए ना कहने के अधिकार का आन्‍दोलन : शिवपाल अब एकांत में-दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपको बता दें कि मेरी यह रिपोर्ट देश के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र दैनिक तरूणमित्र में प्रकाशित हो चुकी है। इस बार उसे नये अंदाज में प्रकाशित किया जा रहा है। मकसद यह कि ताजा घटनाओं को पुरानी तस्‍वीर से जोड़ कर देखना और पाठकों तक परोसना। खैर,

सर्किट हाउस पहुंचते ही डीआईजी साहब ने जूतों समेत अपने पैरबिस्‍तर पर फैला दिया था। फिर चन्‍द लम्‍बी सांसे लेते हुए अपने कप्‍तान को बैठने इशारा करते हुए मौजूद थानाध्‍यक्ष से सख्‍त लहजों में हुक्‍मदिया:- बोल, क्‍या कहना है। स्‍स्‍स्‍स्‍स्‍स्‍साले तू बहुत काबिल बनता है ना। तुझे तो मैं आज जेल भेज कर ही मानूंगा मादर—–।

थरथर करते एसओ ने सहमे अंदाज में गिड़गिड़ाते हुए कहा:- सरकार, आप ही तो माई बाप हैं। मैं आपकी सरपरस्‍ती में ही एक सामान्‍य नागरिक की तरह रह रहा हूं।

यह सुनते ही डीआईजी का पारा भक्‍क से थार्मामीटर से बाहर छलक गया। बोले:- चल भोंस—–के। नागरिक है तू, तो चल दे इस्‍तीफा दे। और हां कप्‍तान साहब, आप इस हरामजादे से इस्‍तीफा लिखवा दो। यह कण्‍डीशनल भी इस्‍तीफा देगा, तो भी मैं उसे मंजूर कर दूंगा। और जेल तो आज मैं इस कमीने को भेज ही दूंगा। आप कप्‍तान साहब, फोर्स बुला कर इसे गिरफ्तार करा दीजिए।

डीआईजी की इस दहाड़ से दहल चुका एसओ अभी चक्‍कर खाकर जमीन पर गिरने ही वाला था कि अचानक उसका हाथ किन्‍हीं मजबूत बाहों ने थाम लिया। निहायत निरीह भाव में उसने देखा, तो पाया कप्‍तान साहब की बाहें उसे सम्‍भाले हुए हैं। अब सकपकाने की बारी थी डीजीआई की। अपने बॉस को देख कड़ी निगाह से घूरते हुए कप्‍तान ने साफ कह दिया कि यह मेरा स्‍टाफ है और मैं खूब जानता हूं कि इस दारोगा ने एक भी गलती नहीं की है। ऐसी हालत में अब जेल भेजने की बारी तो इन बदमाशों की होगी, जिन्‍होंने इस दारोगा को सरेआम पीटा है।

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शिवपाल सिंह यादव

पूरा कमरा सन्‍नाटे में रह गया। कप्‍तान ने उस दारोगा को अपने साथ गाड़ी में बिठाया और सीधे उस थाने पर पहुंच गये। थाने पर पहुंचते ही कप्‍तान ने जीडी मंगवायी और उस दारोगा को हुक्‍म दिया कि वह पूरे वाकये को सरकारी फाइल पर दर्ज करे। लेकिन इसके पहले ही डीआईजी के आदेश पर जीडी पर आठ मुकदमे दर्ज हो चुके थे, जिनमें उसी थाने के एसओ के खिलाफ बलवा, मारपीट, लूट समेत तमाम आरोप दर्ज हो चुके थे। मगर आश्‍चर्यजनक बात तो यह हुई कि नौवीं एफआईआर दर्ज करायी कप्‍तान ने। यह घटना है 9 अप्रैल-1988 की।

जी हां। आज सुनिये ना कहने के अधिकार का इस्‍तेमाल करने वाली एक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना। पश्चिम उप्र का वाकया था। आज से करीब 25 साल पहले। गुण्‍डागर्दी और राजनीतिक के पंचमेली-बवाल के चलते दबंग लोगों के नेतृत्‍व में भारी भीड़ ने थाने पर हंगामा कर दिया और थानाध्‍यक्ष को बुरी तरह पीट दिया। शुरूआत थी एक जमीन के कब्‍जे की। खबर मिलते के बाद डीआईजी ने आदेश दिया  कि मैं पहुंच रहा हूं, लेकिन मेरे आने तक जनरल डायरी में कोई भी इन्‍द्राज नहीं किया जाना चाहिए।

दरअसल, यह कहानी सुनाने का मकसद हमारा यह है कि हम किसी भी गैरकानूनी हरकतों को थोपे जाने वाली हरकतों पर स्‍पष्‍ट न बोलने का माद्दा दिखायें और साफ-साफ अपने ना कहने के अधिकार का इस्‍तेमाल कर लें। क्‍योंकि वरिष्‍ठतम आईपीएस अधिकारियों में से एक सुतापा सान्‍याल ने मोहनलालगंज में पिछली साल मिली एक नग्न युवती की लाश की जांच में अपने आकाओं के दबावों पर अपनी असहमति के अधिकार का इस्‍तेमाल नहीं किया था। जाहिर है कि उसके बाद जितनी भी छीछालेदर सुतापा सान्‍याल और पुलिस, प्रशासन, शासन और सरकार की हो गयी, वह बेहद शर्मनाक और कलंक से कम नहीं रहा।

कहने की जरूरत नहीं कि हम अगर ऐसे हालातों पर अपने ना कहने के अधिकार का प्रयोग करें तो इन हालातों को रोका जा सकता है। इसके बाद की बात तो मैं आपको बता ही चुका हूं। (क्रमश:)

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बड़ा दारोगा

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