संदर्भ शिक्षामित्र: सारे शिक्षामित्र कैसे हो सकते हैं सपा के अंधभक्‍त

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: असल अपराधी तो जनता है, जिसने ऐसी सरकारें पैदा कीं : सरकार अडिग रही, तो प्रदेश के हित में। झुकी तो शिक्षामित्रों के हक़ में होगा : कानून ने अपना काम कर लिया, अब सरकार की बारी है : माना कि शिक्षामित्र मूर्ख हैं, लेकिन मूर्खों को भी जीने का हक है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : खबर है कि शिक्षामित्रों का आंदोलन अब गहराता जा रहा है। पता चला है कि इस लफड़े में अब तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है, कई जगहों पर लाठीचार्ज हुआ है, बेकाबू शिक्षामित्रों को सम्‍भालने के लिए दमकल के लोग तेज धार पर पानी परोस रहे हैं, धरना-प्रदर्शन भड़कता जा रहा है। उधर योगी सरकार ने फैसला किया है कि अगर शिक्षामित्रों ने इस मामले में हिंसा का सहारा लिया, तो उसे कड़ाई से निपटा जाएगा।

करीब आठ घंटा पहले मैंने इस दुखद काण्‍ड पर लिखा, तो हर क्षेत्र में दबा-सड़ा मवाद फट कर बाहर निकलने लगा। होना भी था। जब हम किसी पुराने सड़ते घाव को दुरूस्‍त करने के लिए कोई बड़ा ऑपरेशन करने में जुटते हैं, तो यह स्‍वाभाविक ही होता है। हर ओर चिल्‍ल-पों मचती है, असंतोष और गुस्‍सा के साथ ही साथ विरोध स्‍वर भी बेहिसाब जगजाहिर होने लगते हैं। हर क्षेत्र अपनी-अपनी कहानी सुना रहा है, हर एक के पास अपने-अपने बवाल हैं, कोई विरोध पर आमादा है, तो कोई समर्थन पर। विपक्ष के लोग उसे हाथोंहाथ लोक लेने पर आमादा हैं, जबकि सरकार अपनी पर ही आमादा दिख रही है। लेकिन कोई यह भी इस मुकाम तक नहीं पहुंचने की कोशिश कर रहा है कि इस पूरे झगड़े की जड़ कहां हैं।

योगी ने ऐलान किया कि हिंसक शिक्षकों पर कड़ाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्‍यों। सच बात तो यही है कि यह पूरी आग लगायी है समाजवादी पार्टी ने। बल्कि उससे भी पहले देखा जाए, तो भाजपा ने इसकी शुरूआत की। सन-01 को। औचित्‍य क्‍या था शिक्षामित्रों की नियुक्ति का। और अगर हो गया तो उन्‍हें सपा सरकार ने सहायक शिक्षा के पद पर समायोजित करने का वायदा क्‍यों किया। यानी करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों को फुटबॉल की तरह इस्‍तेमाल किया सरकारों ने। जब चाहा तो दुलरा दिया, और जब मन किया तो कड़ाई कर लिया। राज्‍यधर्म की तो बात तक नहीं की किसी भी सरकार ने। अब कड़ाई की बात कर रही है सरकार। संदेश तो यही है कि वे सपाई हैं। तो सवाल यह है कि सारे के सारे शिक्षामित्र सपा के अंधभक्‍त कैसे हो सकते हैं। और अगर हैं भी, तो क्‍या सपा का अंधभक्‍त होना अपराध होता है।

सच बात यही है कि अधिकांश शिक्षामित्रों का शैक्षिक प्रमाणपत्र केवल नकल के चलते है। न लिखने की तमीज, न बोलने का शऊर। पढ़ना आता ही नहीं उन्‍हें। अपने गांव के दबंग लोगों और खास कर प्रधानों के खानदान की महिलाओं को ही शिक्षामित्र का नियुक्ति पत्र थमा दिया था सरकार ने। लेकिन इनमें से कई शिक्षामित्र ऐसे हैं, जिनमें योग्‍यता है। कई ने तो बाद में कड़ा परिश्रम किया और वे सहायक शिक्षक के पद के लिए अर्हता हासिल कर बैठे।

अदालत ने जो फैसला किया, वह तो कानूनी की पेंचीदगियों पर आधारित था। लेकिन कोर्ट और सरकार के न्‍याय बिलकुल अलग जमीनों पर होते हैं। यानी सरकार को सामाजिक पेंचीदगियों के आधार पर फैसला करना चाहिए। ताजा विवाद को निपटाना चाहिए। न कि यह भड़काऊ बयान देना, कि कड़ाई से पेश आयेगी सरकार। अरे समाधान की कोशिश तो कीजिए। पहले तो उन अर्हता रखने वालों के घावों पर मलहम लगाइये। कुछ कीजिए तो। क्‍यों कि जो भी हालत है, वह तो सरकारों का ही पैदा हुआ है। सच बात यही है कि यह हालत पैदा किया सरकार ने, लेकिन असल अपराध तो जनता ने किया है। सही वक्‍त पर न तो ऐसे शिक्षामित्रों की नियुक्ति के औचित्‍य पर कोई बात की, और न ही उसके बाद अब। जबकि होना तो यही चाहिए था कि सरकार के ऐसे टुच्‍चे फैसलों पर जनता तत्‍काल हस्‍तक्षेप कर अपनी सजगता का प्रदर्शन करती।

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