साफ बात। निजी झगडे में मारा गया, तो मुआवजा क्यों

दोलत्ती

: धाकड था रतन, लेकिन खबरची नहीं : दो हफ्ता पहले कोषागार में एक पोर्टल-संचालक को सरेआम में पीटा था रतन और उसके साथी ने :
कुमार सौवीर
बलिया : मकतूल का नाम: रतन सिंह। आय का स्रोत: बहुआयामी धंधा। घोषित पहचान: पत्रकारिता। पहचान में विशेषज्ञता: बेहद कमजोर। पत्रकारिता का गुण: विशुद्ध जुगाड़। पत्रकारिता से आय: शून्य। व्यवहार: धाकड़। हत्या का कारण: संपत्ति व चुनावी विवाद। विवाद का इतिहास: चार वर्ष। दुश्मनी के इतिहास का कारण: आपराधिक मुकदमे। पुलिस से रिश्ता: पत्रकारिता के नाम पर मुकदमों से खुद को अलग करा देना। पत्रकारिता को लेकर हुआ कोई विवाद: शून्य।
यह इतिहास है बलिया में विगत 24 अगस्त-20 को गांव में कत्ल किये गये रतन सिंह का। अपने पुराने दुश्मनों के घर रात के वक्त जाने पर रतन को पट्टीदारों ने रतन सिंह को गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया। तीन गोलियां धड़ के ऊपर लगीं और मौके पर ही रतन ने दम तोड़ दिया।
हत्या पर दर्ज करायी गयी रिपोर्ट के मुताबिक सम्पत्ति के पुराने झगड़े के चलते​ घटना-स्थल पर दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और प्रतिवादी ने रतन को गोलियों से भून दिया। जबकि एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि रतन सिंह प्रधानी के चुनाव में हस्तक्षेप करने लगा था। इस पर दोनों ही पक्षों के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी थी। घटना के दो दिन पहले भी इन दोनों ने इसी मसले पर परस्पर चर्चा की थी। एक अन्य सूत्र ने बताया कि 60 लाख मूल्य की एक जमीन पर भी रतन हस्तक्षेप कर रहा था। इसको लेकर तनाव बढ़ रहा था। दरअसल, रतन प्रॉपर्टी डीलिंग भी करता था।
लेकिन उपरोक्त सभी प्रकरणों का पत्रकारिता से कोई भी लेना-देना नहीं था। ऐसी हालत में पत्रकार-उत्पीड़न या खबर को लेकर होने वाली हत्या को रंग क्यों दिया गया, यह समझ से परे है। बल्कि इससे तो मामला गलत दिशा की ओर बढ़ने लगता है।
यह सच है कि घटना के बाद फेफना थाने का प्रभारी मौके पर पहुंचा था, लेकिन कुछ ही देर बाद वह वापस चला गया था। लेकिन इसके बावजूद चूंकि पत्रकारों का सियार-रुदन तेज हो चुका था, इसलिए मामला निपटने के लिए इस हत्या की प्रवृत्ति को प्रशासन ने सम्पत्ति का झगड़ा करार दिया था। मगर हैरत की बात है कि सरकार ने इस तथ्य के बावजूद रतन के आश्रितों को दस लाख, किसान बीमा से पांच लाख और स्थानीय मंत्री उपेंद्र तिवारी ने एक लाख रुपयों का मुआवजा दे दिया। यह जानते हुए भी यह निजी झगडा था, जिसका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं था।
दरअसल इस घटना के बाद पत्रकारों ने अपनी गैर-जिम्मेदारी का प्रदर्शन किया, और श्वानों-श्रंगालों के झुण्ड की तरह मुंह उठा कर चिल्लाना शुरू कर दिया। बिना यह जाने-समझे कि असल मामला क्या है, प्रदेश और देश के पत्रकार संगठनों ने ही यह अनवरत विधवा-रुदन शुरू कर दिया। इनमें फर्जी, सर्जी, मर्जी और मनमर्जी वाले जायज-नाजायज संगठनों ने एकसाथ शोर मचाया। हालत यह हुई कि इस नाजायज दबाव को रचनात्मक तरीके से आगरा के इलेक्ट्रानिक चैनलों के पत्रकारों ने अपनी माइक-माइक को एक जगह रख कर बाकायदा मातम शुरू किया।
सरकार अपनी, अपनी बेलगाम नौकरशाही और पुलिस की अमानुषिक प्रवृत्ति, कोरोना और कोविड अस्पतालों की असफलता, निजी अस्पतालों में अराजकता और लूट के साथ ही साथ अपनी ही पार्टी के नेताओं और विधायको की नाराजगी से जूझ रही थी। ऐसे में जब पत्रकारों ने भी एक नया मोर्चा खोल किया, तो योगी सरकार भौंचक्की रह गयी। प्रशासन की रिपोर्ट कि रतन सिंह की हत्या में पत्रकारिता के विवाद की कोई भी भूमिका नहीं थी, बल्कि यह नितांत निजी झगडे में हुई हत्या है, योगी-सरकार ने बलिया की प्रशासनिक अफसरों की रिपोर्ट को इग्नोर किया, और रतन सिंह को पत्रकार उत्पीड़न का शिकार घोषित कर उस पर पत्रकार मृतक मुआवजा का ऐलान कर दिया।
किसी भी हत्या जैसी किसी घटना पर मानवीय तौर पर दुख, क्षोभ और आक्रोश व्यक्त करना तो समझ में आता है। लेकिन ऐसी घटना तो प्रशासनिक और पुलिस की लापरवाही और अराजक व्यवस्था पर बोलने का विषय तो बन सकती है। मगर किसी नितांत निजी झगड़े के फलस्वरूप हुई किसी हत्या जैसी घटना को पत्रकार-उत्पीडन के तौर पर पेश करने की बात न केवल समझ से परे है, बल्कि इसका प्रभाव पत्रकारिता में समर्पित लोगों की सुरक्षा और संरक्षा के साथ ही साथ पत्रकारिता पर भी भयावह पडेगा।
ऐसी हालत में अब समझ में नहीं आ रहा है कि किसी घटना को निपटाने के लिए अगर सरकार का तरीका यही है, तो फिर शर्मनाक क्या होता है?

रतन सिंह हत्याकांड की असलियत को खोजने के लिए दोलत्ती डॉट कॉम फिलहाल बलिया में डेरा डाले है। जिस भी शख्स को इस हत्याकांड या यहां की पत्रकारिता के बारे में कहना हो, तो वे 9453029126 पर फोन-वाट़सऐप के साथ ही साथ kumarsauvir@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। आप चाहेंगे, तो हम अपने सूत्र की गोपनीयता बनाये रखने के अपने संकल्प का सदैव की तरह सम्मान करते रहेंगे।
संपादक: कुमार सौवीर

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