: मंदिर में 10 वर्ष की उम्र से लेकर 50 वर्ष की उम्र तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित : केरल के पथनाथिटा जिले में पेरियार टाइगर रिज़र्व के पहाड़ पर स्थित भगवान अयप्पा को समर्पित मंदिर : क्या अल्लाह के दरबार में औरत और मर्द के बीच कोई फ़र्क होता है? :
त्रिभुवन
उदयपुर : वह 40 साल की एक नंबूदिरीपाद ब्राह्मण महिला थी। वह देश-देशांतर घूमती रहती थी। वह विवेकवादी सोच की थी, लेकिन फिर भी उसे धर्म और धार्मिकता में बेहद रुचि थी।
एक दिन वह केरल के पथनाथिटा जिले में पेरियार टाइगर रिज़र्व के पहाड़ पर स्थित भगवान अयप्पा को समर्पित सबरीमला मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाना चाहती थी। लेकिन उसे रास्ते में ही रोक लिया गया। उसने कारण पूछा तो बताया गया कि इस मंदिर में 10 वर्ष की उम्र से लेकर 50 वर्ष की उम्र तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। वह महिला रुआंसी और निराश होकर लौट आई।
वह महिला एक दिन देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों का दौरा करते हुए अजमेर शरीफ़ ख्वाज़ा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पहुंची। वह अभी शाहजहानी दरवाज़े के पास पहुंची ही थी कि अचानक एक खादिम ने उसका भावभीना स्वागत किया। वह भीतर बढ़ती गई और खादिम उसे सब जगह ले जाता रहा। वह उसे उस गुंबद वाली मस्जिद के भीतर तक भी लेकर गया, जहां सबकी चादरें स्वीकार की जाती हैं। अचानक उसे याद आया कि अभी तो वह विशेष दिनों से है। उसे वहां मौजूद एक बुज़ुर्ग मुस्लिम स्त्री से कुछ पूछा और जानना चाहा कि क्या यहां ऐसा प्रतिबंध नहीं है? उस मुस्लिम स्त्री ने प्रतिप्रश्न किया : क्या अल्लाह के दरबार में औरत और मर्द के बीच कोई फ़र्क होता है?
वह दरगाह और मंदिर के भेद पर अभी सोच ही रही थी कि उसे लगा उसकी देह के मंदिर से अज़ान की आवाज़ आ रही है!
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अब आप कहेंगे, ये सब झूठ है। ये छद्म बुद्धिजीविता है। निष्कर्ष ये कि इस दुनिया में प्रत्यक्ष देखा हुआ यथार्थ घटनाक्रम सत्य नहीं हो सकता, आप अपने मनों में जिन काल्पनिक सत्यों को जीते हैं, वही सच होता है।