रक्षा-बंधन: स्‍त्री स्‍नेह-वर्षा करे तो महान, वरना चुड़ैल

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: बहन-भाई के रिश्‍ते में भी मनमर्जी और छल-कपट : अधिकांश लोगों में भीतर झांकिये, उबलती सचाई की गाथाएं हम तक फौरन भेज दीजिए : पुनीत रिश्‍तों में भी तोल-मोल की तादात अभी भी खासी है : तनिक भी अधिकार मांगने की कोशिश की, तो रिश्‍ते खत्‍म देने वालों को पहचानिये :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सबसे पहले तो आप सभी के लिए पुनीत रक्षा-बंधन के अवसर पर हार्दिक मंगल-कामना। पिछले दस-बारह दिनों से बाजारों में राखियों-रक्षासूत्रों की दूकानें सजी हुई थीं।

मिठाई की दूकानें लहलहा उठी थीं। कल से तो कमाल ही हो गया। गजब धमाल। देर रात तक सड़कें लहलहाती रहीं। सजी बहनें और कलाई पर एकाधिक राखियां बांधे भाई अपने एक-दूसरे के घर आने-जाने को तत्‍पर रहे। प्रेम की गंगा अचानक बढ़ गयी। स्‍नेह की हिलोरें उछलने लगीं। पूरा हिन्‍दुस्‍तान ही नहीं, पूरे विश्‍व में भी जमकर मनाया गया रक्षाबंधन।

सुबह-सुबह दैनिक हिन्‍दुस्‍तान के सम्‍पादकीय पृष्‍ठ पर मशहूर साहित्‍यकार चित्रा मुद्गल ने एक मार्मिक लेख लिखा है। उसमें केवल प्रशंसा ही नहीं की है चित्रा ने, बल्कि कुछ सच भी दर्ज किये हैं, जिन्‍हें पढ़ कर पुरूष-समुदाय के एक बड़े हिस्‍से को मिर्ची लग सकती है। उन्‍होंने कुछ कटु सवाल उठाये है। पुरानी रवायत-प्रथाओं और उस दौर की स्‍त्री-दशा पर रेखांकन किया है, साथ ही आज की औरत को पूंजी के बाजार में देखने-तौलने की कोशिश भी की है।

चित्रा जी ने एक मशहूर और महान सिनेमा निर्देशक के परिवार का हवाला दिया है, जिनका निधन हो चुका है। वे बताती हैं कि जब उस निर्देशक की विवाहित बेटी ने एक बार अपने भाइयों से अपने पिता की उस सम्‍पत्ति पर अपना भी अधिकार हिस्‍सा मांगा, तो बवाल हो गया। यह बेटी अपने पिता की पैत्रिक सम्‍पत्ति पर नहीं, बल्कि अपने पिता की अर्जित सम्‍पत्ति पर हिस्‍सा मांग रही थी। लेकिन यह मांग उठते ही उसके सारे भाई भड़क गये। हालांकि उन्‍होंने आखिरकार उसे उसका हिस्‍सा दे दिया, लेकिन आखिर में यह जरूर कह दिया कि तुम आइन्‍दा हमारे लिए हमेशा-हमेशा के लिए मर चुकी हो।

मैं चित्रा जी की बात से पूरी तरह सहमत हूं। दरअसल मैं यहां सबसे पहले यह साफ कर देना उचित समझता हूं कि यह सवाल सभी पुरूष जाति पर नहीं थोपे जा सकते हैं। कुछ लोग हैं जो ऐसे सवालों की जद में नहीं आते हैं। लेकिन इससे क्‍या फर्क पड़ता है। हकीकत यह भी तो है कि अधिकांश पुरूष उसी कटघरे में शामिल दीखते हैं, जहां बहन का भावनात्‍मक दोहन होता है। यहां बहन की हैसियत दोयम यानी दूसरे दर्जे की ही बनी रह जाती है। यहां भाई के रूप में पुरूष का तिलक करती है बहन बनी स्‍त्री। जब तक स्‍त्री समर्पण के घेरे में दुबकी रहती है, तब तक वहां पुरूष उसको आंख-पलकों तक उठाये रखता है। जो भी इच्‍छा होगी उस भाई वाले पुरूष की, वह उस बहन वाली स्‍त्री के हाथ पर उपहार सौंप देगा। स्‍त्री उसे अपनी किस्‍मत मान कर मुस्‍कुराती हुई राजी-खुशी ठुमकती हुई अपनी ससुराल चली जाएगी।

लेकिन जैसे ही स्‍त्री उस पुरूष से अपने स्‍नेह की वर्षा के साथ ही साथ अपने हक-अधिकारों पर बात करना शुरू करती है, पुरूष की त्‍योरियां बदल जाती हैं। भरत-नाट्यम और कथकली की जगह उसकी भंगिमा आक्रामक हो जाती है। शिव की तरह पुरूष अपना तीसरा नेत्र खोल देगा और ताण्‍डव शुरू हो जाएगा। स्‍नेह-वृक्ष पर अचानक ही अमर-बेल अपनी विनाशकारी प्रवृत्ति का प्रदर्शन कर हाहाकारी अंदाज में उस स्‍नेह-वृक्ष को चबा डालती है।

तो तय मान लीजिए कि रक्षा-बंधन को लेकर पुरूष की प्रवृत्ति बेहद आपत्तिजनक और दोहरेपन की है।

मुझे यकीन है कि इन सवालों का जवाब खोजने के लिए हर पुरूष अपने गिरहबान में झांकेगा। जरूर। और अगर हम लोग ऐसे सवालों पर जवाब खोजने की प्रक्रिया में जुट जाएंगे, मुझे यकीन है कि रक्षा-बंधन की वास्‍तविक भाव-उछाल अपनी ईमानदारी के साथ बहना शुरू हो जाएगी।

तो, आइये। हम लोग इस पुनीत और पवित्र अवसर पर एक नये अंदाज में बातचीत करना शुरू करें। आपके पास भी ऐसे खूब जीवन्‍त अनुभव और किस्‍से होंगे ही, जो इस खोखलेपन को साबित कर सकते हैं। ऐसे भी कई किस्‍से और अनुभव होंगे, जहां पुरूष ने अपनी भावनाओं को ही नहीं, अपने और अपनी बहन के साथ अधिकारों को भी साझा करेंगे। आपके अनुभवों को आपका प्रिय पोर्टल www.meribitiya.com पर प्रकाशित किया जाएगा।

हमारा न्‍यूज पोर्टल www.meribitiya.com आपके अनुभवों की प्रतीक्षा कर रहा है। आप अपने खट्टे-मीठे अनुभव हमें पर भेजिये। साथ में अपनी फोटो भी भेज दीजिए।

आप अपने लेख या तो हमारे मैसेंजर पर भेज सकते हैं या फिर हमारे ई-मेल पर। हमारा पता है meribitiyakhabar@gmail.com या फिर kumarsauvir@gmail.com पर। आपको कोई दिक्‍कत हो रही हो तो आप हमें हमारे मोबाइल नम्‍बर 09415302520 पर फोन कर सकते हैं।

यकीन मानिये, आपकी राय हमारे लिए बेहद महत्‍वपूर्ण है। तत्‍काल लिखिये, और हमें भेज दीजिए।

यह लेख-श्रंखला है। इसकी अगली कडि़यों को देखने के लिए कृपया क्लिक कीजिए : बातचीत स्‍त्री-पुरूष पर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *