मलाला अवार्ड मिला, मगर अमेरिका न जा पायी रजिया

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

वक्त पर न पासपोर्ट मिल पाया और न वीजा

मेरठ : विश्व का पहला मलाला अवार्ड पाकर भी रजिया को मलाल है। वह इस अवार्ड को लेने के लिए वह न्यूयार्क नहीं जा पाईं। उसकी राह में पासपोर्ट और वीजा रोड़े बन गए, जिससे वह संयुक्त राष्ट्र संघ के सभागार में जाकर अवार्ड लेने से महरूम रह गईं।

मेरठ के छोटे से गांव नगला कुंभा की रहने वाली 16 साल की रजिया सुल्ताना की उपलब्धियां आसमान की ऊंचाइयों से कम नहीं। मलाला अवार्ड पाकर वैश्विक फलक पर चमकी रजिया सुल्ताना बचपन बचाओ बाल पंचायत की सरपंच की राष्ट्रीय सचिव हैं। शुक्रवार को न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ सभागार में विशेष राजदूत ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ने रजिया की संघर्ष गाथा को पूरी दुनिया के सामने रखते हुए उसे सम्मान दिया। उस समय रजिया अपने गांव में थीं।

गरीब परिवार की रजिया के पास पासपोर्ट और वीजा नहीं था, जिसकी वजह से वह इस सम्मान को लेने के न्यूयार्क नहीं जा सकी। शनिवार को दैनिक जागरण से बातचीत में रजिया ने कहा कि उसे दस जुलाई को सूचना मिली कि उसे मलाला अवार्ड के लिए चुना गया है। बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक ने उसे बताया। पर हमारे घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि जिससे पासपोर्ट और वीजा बनवा सके । ऊपर से इतनी देर से सूचना मिली कि प्रयास करके भी पासपोर्ट और वीजा बनवाना संभव नहीं था। मुझे सम्मान पाकर खुशी हो रही है, लेकिन मैं भी न्यूयार्क में जाकर अवार्ड लेती तो कुछ और ही बात होती। अब मैं यहीं से अवार्ड पाकर खुश हूं।

चिकित्सक बनकर करेगी सेवा

अपने गांव के पास एलटीआर पब्लिक स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली रजिया ने कहा कि वह पास होकर मेडिकल की तैयारी करेगी। तीन दिन पहले तक उसकी इच्छा पत्रकार बनने की थी, लेकिन अब वह लोगों के दर्द को दूर करने के लिए डॉक्टर बनेगी। वह मदर टेरेसा की तरह लोगों की सेवा करना चाहती है। रजिया पहले हिंदी मीडियम से पढ़ती थी, लेकिन बाद में जिद कर इंग्लिश मीडियम के स्कूल में दाखिला लिया। रजिया के पिता फरमान और मां जाहिदा ने भी बेटी के हर सपने को पूरा करने में जी-जान लगाने की बात कही है।

गांव की लाडली बिटिया बनी

रजिया की छोटी बहन इलमा आठवीं कक्षा में पढ़ती है। दो भाइयों में एक सात साल का सुहेल व दूसरा पांच साल का जुबैर हैं। पिता फरमान ईट सप्लाई का काम करते हैं। अवार्ड मिलने के बाद रजिया गांव की दुलारी बिटिया बन गई है। रजिया ने बताया कि वह मलाला के विषय में उस समय से जानती है, जब तालिबान ने उसे गोली मारी थी। उसके बारे में अखबारों में पढ़ा, उससे प्रेरणा भी मिली। मुझे अवार्ड मिलने के बाद अन्य लोग भी मलाला के विषय में जानने लगे हैं।

उम्र से बड़ी रजिया की उपलब्धियां

सोलह साल की रजिया सुल्तान की उपलब्धियां आज उसकी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ी हो गई हैं। कभी नाजुक अंगुलियों से फुटबाल की सिलाई करने वाली रजिया के पिता फरमान बताते हैं कि रजिया ने पांच साल की उम्र में परिवार को सहारा देने के लिए यह काम करना शुरू कर दिया था। कई साल पहले दिल्ली से एक गैर सरकारी संगठन के लोग आए। उनसे जुड़कर रजिया बाल मजदूरी कर रहे बच्चों को शिक्षा दिलाने की कोशिश में जुट गई। इलाके के तमाम बच्चों की जिंदगी संवारने में उसने सहयोग दिया है। जागरण डॉट कॉम

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *