शिवपाल सिंह यादव तो हैं मुलायम का सिर्फ एक प्रतीक बहाना। किसी को मनाना, किसी को बहलाना

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी


: बेटे अखिलेश को फैसले बदलने पर मजबूर करने वाले नेता जी ने दांव पर लगा दी सपा : क्‍या वाकई मुलायम सिंह खुद चाहते हैं कि सपा सत्ता में न आए, ताकि उनका बुढ़ापा चैन से कटे : प्रतीक की फडफ़ड़ाती महात्वाकांक्षाओं से सकते में हैं नेता जी :

kamlesh srivastav

लखनऊ : अखिलेश को फैसले बदलने पर मजबूर करने वाले व गायत्री प्रजापति को फिर से लालबत्ती देने का दबाव बना कर मुलायम सिंह सपा को खत्म कर देने पर आमादा हैं।

मुलायम सिंह दूर की सोचते हैं। सही सोचा है। न रहेगी सत्ता और न होगी लड़ाई। बुढ़ापा चैन से कटेगा। शिवपाल को मना लेंगे और अखिलेश को इमोशनल ब्लैकमेल कर लेंगे लेकिन प्रतीक की फडफ़ड़ाती महत्वाकांक्षाएं आने वाले दिनों सिर उठाएंगी तब क्या होगा?

धनबल व बाहुबल तो बेशुमार है प्रतीक के पास लेकिन सत्ता की चकाचौंध से अब उनकी आंखें भी चुंधियाने लगी हैं। ताकतवर आदमी भी अपनी ही औलाद से ही हारता है। शिवपाल तो बस एक बहाना है असल में प्रतीक को बहलाना है। शिवपाल की आड़ में जोर आजमाइश जारी है। अखिलेश यादव का अपने पिता के आगे झुक जाना शिवपाल की जीत नहीं, बल्कि किसी और के लिए सत्ता की राह खोलना है। अखिलेश के युवा चेहरे को मात देने के लिए सपा परिवार में शह व मात का खेल चल रहा है।

बदलते घटनाक्रम में सपा कमजोर हुई है लेकिन बीते तीन दिनों में लिए गए फैसले ने अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में पहले से कहीं अधिक मजबूत कर दिया है। यह अलग बात है कि गायत्री प्रजापति तांत्रिक चन्द्रास्वामी के चेले हैं और उनसे आशीर्वाद ले कर आए हैं। हो सकता है कि कुछ महीने सत्ता का सुख और भोग लें लेकिन उत्तर प्रदेश की प्रजा न तो प्रजापति को माफ करेगी और न ही सिंघल जैसे अफसरों के सरपरस्तों को।

Rakesh Mishra Kumar

लखनऊ : जहाँ तक मुझे याद आता है,शायद यह पहली बार हुआ है कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा बर्खास्त किए गए किसी मंत्री की बहाली का ऐलान पार्टी अध्यक्ष द्वारा किया गया हो।सपा ने न्यूनतम संवैधानिक मर्यादा का भी पालन करना जरूरी नहीं समझा।

यह दोनों ही पोस्‍ट फेसबुक वाल से साभार ली गयी हैं।

कमलेश श्रीवास्‍तव एक पत्रकार हैं, जबकि राकेश कुमार मिश्र सेवानिवृत्‍त आईएएस अफसर हैं।

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