वरना “बेसहा₹!” सुसाइड नहीं, मीडिया में पैसा झोंकता

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तिहाड़ जेल में आत्महत्या  करने वाले राम सिंह की शायद आखिरी ख्वाहिश

: गिरफ्तारी की याचिका से बौखलाए “बेसहा₹!” सुब्रत राय ने सेबी को खुली बहस की चुनौती दी : फिर क्या डर है “बेसहा₹!” सुब्रत राय को : मीडियाबाजी से और बिगड़ेगी “बेसहा₹!” की मुश्किलें : सुब्रत राय: पानी में फंसा मगरमच्छ (पांच) :

नई दिल्ली: देश के एक बड़े पत्रकार के शब्दों  में कहा जाए तो देश बलात्कारी राम सिंग का आभारी है जिसने “बेसहा₹!” होने के बाद भी अख़बारों में एड नहीं दिया कि चीफ जस्टिस या सेबी के आला अफसर सीधे आकर टीवी पर बहस कर लें……

देश बलात्कारी राम सिंह का आभारी है जिसने “बेसहा₹!” होने के बाद भी अख़बारों में एड नहीं दिया कि चीफ जस्टिस आकर टीवी पर बहस कर लें..

पटपटी बात, लेकिन हकीकत : लोगों को यह बात थोड़ी पटपटी लग सकती है, लेकिन क्या यह वास्तविकता नहीं है कि जो तथाकथित बेगुनाही सुब्रत राय और उनकी कम्पनी देश की सर्वोच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायाधीश और सेबी जैसे शीर्षस्थ पायदानों पर साबित नहीं कर पाये हैं और नतीजा उन्हें हर मोर्चे पर खुद मुंह की खानी पड़ी, उसे सुब्रत राय अब मीडिया के सामने रखने की अनर्थक कोशिश करना चाहते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि अब तक मीडिया संस्थानों के बल पर विज्ञापनों की मार्फत सुब्रत इस बार फिर अपनी शर्तिया मात को शह के तौर पर साबित करने की कवायद कर रहे हैं।

इस वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि सुब्रत राय के पैसा है, इसलिए वे कानूनी लड़ाई हारने के बावजूद मीडिया में पैसा फूंक कर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस संदर्भ में राम सिंह का वाकया दिलचस्प हो सकता है जिसने हाल ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। राम सिंह की गिरफ्तारी दिल्ली गैंग-रेप-मर्डर वाली हौलनाक घटना में हुई थी। इस पत्रकार की टिप्पणी है कि अगर राम सिंह के पास सहारा इंडिया और सुब्रत राय की तरह बेहिसाब पैसा होता, तो वह जेल में फांसी लगाने के बजाय अपने चेहरे पर पोती कालिख को साफ करने के लिए सीधे मीडिया में जनता के बीच ऐसे-ऐसे तर्क प्रचारित कर देता कि लोगों को यकीन हो जाता कि राम सिंह नृशंस हत्याकांड का प्रमुख नरपिशाच नहीं, बल्कि पूरी तरह निर्दोष और ईमानदार शख्स है।

आपको बताते चलें कि सेबी और सहारा इंडिया के बीच कानूनी जंग अब अखबरों के जरिए भी लड़ी जा रही है। सेबी ने सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय की गिरफ्तारी की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दी तो “बेसहा₹!” सहारा ने सहारा मीडिया के जरिए सेबी के इस कदम को चुनौती दी है। “बेसहा₹!” सहारा इस लड़ाई को सड़क पर भी लड़ने की तैयारी कर रहा है। लेकिन जानकार मानते हैं कि “बेसहा₹!” सहारा की इस अखबारबाजी का कोई असर नहीं होगा बल्कि उसकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।

मुश्किल में “बेसहा₹!” सहारा इंडिया भी फंसी है लेकिन अब वो अपना बचाव करने के बजाए रेगुलेटर पर ही तरह तरह के आरोप लगा रही है। सेबी पर हमला करने के लिए सहारा को सबसे धारदार हथियार है अखबारों अथवा चैनलों में विज्ञापन में पैसा फूंकना। लेकिन अब इससे “बेसहा₹!” सहारा क्या हासिल कर पाएगा ये देखने के लिए लोगों की धड़कनें जरूर बढ़ रही हैं।

बस बहुत हो गया ये विज्ञापन है और इसे सहारा ने छपवाया है। अपनी “बेसहा₹!” हालत पर खुद तरस करते हुए लेकिन गुर्राते हुए भी तर्ज अपनायी गयी है। इसमें सेबी को खुली चुनौती दी गई है। सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय सहारा और उनके दो डायरेक्टरों की गिरफ्तारी की सेबी ने जब से अर्जी सुप्रीम कोर्ट में लगाई है,  सहारा ने अखबारी जंग छेड़ दी है। “बेसहा₹!” सहारा का कहना है कि उसने निवेशकों को पूरा पैसा वापस कर दिया है और जो बचा है वो सेबी के पास जमा कर दिया है। सहारा का आरोप है कि सेबी उसे जानबूझकर परेशान कर रहा है। विज्ञापन में सुब्रत रॉय सहारा ने सेबी चीफ को टीवी चैनल पर खुली बहस की चुनौती दी है। लेकिन कानून के जानकार मानते हैं कि कानूनी मामले इस तरह अखबार के विज्ञापनों से नहीं लड़े जा सकते। सेबी ने जो भी मामला उठाया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना है। और अब ऐसे स्टंट से सहारा की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

“बेसहा₹!” सहारा की दो कंपनियों सहारा रियल एस्टेट और सहारा हाउसिंग के बैंक खाते पहले ही सील हो चुके हैं। सहारा ने बैंक खाते डीफ्रीज कराने के लिए लखनऊ हाईकोर्ट में अर्जी दे रखी है। लेकिन इस बार सेबी भी झुकने को तैयार नहीं है। सेबी के सामने भी निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपये वापस दिलाने की चुनौती है। और ये जिम्मेदारी उसे सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी है। गिरफ्तारी मामले में अप्रैल में सुनवाई होनी है। जानकारों को मानना है कि कानूनी लड़ाई हारने के बाद अब सहारा अपनी साख बचाने में लगा है। अखबारों के जरिए लागों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश हो रही है। बारबार सहारा ग्रुप के 10 लाख कर्मचारियों और करोड़ों निवेशकों की दुहाई दी जाती है। पर इस सब से क्या कोई फर्क पड़ेगा।

दिलचस्प बात यह है कि 2 करोड़ से ज्यादा निवेशकों को 24,000 करोड़ रुपये वापस मिलने हैं लेकिन “बेसहा₹!” के दफ्तरों के सामने ना कोई भीड़ है और ना ही निवेशकों में कोई गुस्सा। सूत्र बताते हैं सेबी इन्हीं उदार निवेशकों के बारे में जानने को बेचैन है। दूसरी तरफ सहारा इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल कर रहा है कि आखिर वो निवेशक कहां हैं जिन्हें पैसे वापस चाहिए। लड़ाई दिलचस्प है और इसे नतीजे का इंतजार है।

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(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)

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