पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय में 735 छात्रों का कैंपस सेलेक्शन का दावा, हकीकत में एक नहीं

बिटिया खबर
: रेत का किला बनकर रह गया है पूर्वांचल विश्वविद्यालय : बेलगाम हुए कुलपति के बोल, ताश के पत्तों की तरह हुआ कैम्पस के छात्रों का भविष्य : कैंपस सेलेक्शन तो पूरी तरह मजाक बन कर रह गया :

कैलाश सिंह

जौनपुर : जनपद को पूर्वी उत्तर प्रदेश का शैक्षणिक क्षेत्र मानते हुए पूर्वांचल विश्वविद्यालय नब्बे के दशक में दिया गया। जिस सोच पर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई उसे वर्तमान कुलपति ने दरकिनार करते हुए संस्थान को रेत का किला बना दिया है। इनके जैसे बोल उच्च शिक्षण संस्थान का कोई शिक्षक भी नहीं बोल सकता है। शायद यह खुद को कुलपति के बजाय राजनीतिज्ञ समझने लगे हैं।यह दीग़र है कि इनके दावे नेताओं से बढ़कर हैं। इसी का नतीजा है कि कैंपस के 735 छात्रों को कैंपस सेलेक्शन के नाम पर नौकरी देने का दावा करते हैं जबकि इनमें से अधिकतर बच्चे इसे अपने लिए भद्दा मजाक मान रहे हैं। उनका भविष्य ताश के पत्तों की तरह भरभरा रहा है।

पिछले दिनों वीर अब्दुल हमीद की धरती गाज़ीपुर के सत्यदेव डिग्री कॉलेज के एक समारोह में पीयू के कुलपति प्रो० राजाराम यादव शिक्षक की बजाय रक्षा मंत्री वाले अंदाज में भाषण देने लगे। शायद वीर अब्दुल हमीद उन्हें याद नहीं होंगे पर वह भूल गये कि इस सरजमीं से सर्वाधिक नौजवान आज भी सेना में हैं । तभी तो वह बोल गए कि यदि पूर्वांचल विश्वविद्यालय के छात्र हों तो रोते गिड़गिड़ाते हुए मेरे पास मत आना बल्कि पीड़ित करने वाले को पीट कर आना और संभव हो तो मर्डर भी करके आना,इसके बाद मैं देख लूंगा! अपनी इस भाषाई गलती का एहसास जब उन्हें हुआ तो नेताओं के अंदाज़ में बोल पड़े की मीडिया ने मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश कर दिया। वह भूल गए कि मीडिया से भी ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया वहां हर हाथ में मौजूद थी।अधिकतर लोगों ने उनके बयान को लाइव कवर कर लिया। उसी दौरान कुछ बुद्धिजीवी तबके की टिपण्णी थी कि सत्ताधारी दल के अनुसांगिक संगठन में शामिल कुलपति यह भूल गए कि वह पड़ोसी देशों की सीमा पर नहीं बल्कि अपने विवि के अधीन कॉलेज के समारोह में शिक्षकों और छात्रों को संबोधित कर रहे हैं।

जहां तक पूर्वांचल विवि के कैंपस का सवाल है तो यहां के भवन की तरह वित्तिय अनियमितता भी चरम पर है। इसके अलावा शिक्षकों की नियुक्तियां तो किसी कंपनी की तर्ज पर की जा रही हैं।यहां के तमाम विभागों में संबंधित विषयों के मास्टर डिग्री होल्डर दूसरे विषयों को पढ़ाते नज़र आ रहे हैं। उनकी नियुक्तियां भी दूसरे विषय के नाम पर हुई हैं। ऊपर से इसका जवाब अलबत्ता तो कोई मांगेगा नहीं,यदि मांगा तो उनके पास रेडीमेड जवाब तैयार रहता है। अब यहां छात्र अपने भविष्य को लेकर फंसा हुआ महसूस करते हैं। पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग को ही ले लिया जाये तो यहां के छात्र धरातल की जानकारी के लिए मीडिया के जानकार लोगों को खोजते फिरते हैं।

कैंपस सेलेक्शन तो पूरी तरह मजाक बन कर रह गया है। यही कारण है कि यहां के अधिकतर छात्रों को बाहर जाने पर नौकरी के साक्षत्कार के दौरान मुहँ की खानी पड़ती है।एडमिशन के लिए नियुक्त शिक्षकों को छात्रों की सीट भरने की जिम्मेदारी दी जाती है।पिछले दिनों इसी कुलपति ने दावा करते हुए ढिंढोरा पीटना शुरू किया कि रिकॉर्डतोड़ 735 छात्रों का कैंपस सेलेक्शन उनके कार्यकाल में हो चुका है जबकि ग्राउंड रिपोर्ट इसके विपरीत है। प्लेसमेंट सेल में उन्ही छात्रों ने कई बार अपनी शिकायत दर्ज करायी है। इनमें अधिकतर बच्चे घर से विवि का चक्कर काटते फिर रहे हैं। वित्तीय कमी की बात की जाए तो हाल ही में कैंपस से ही शोर मचा कि करोड़ों रुपये की एफ.डी इसलिए तोड़ दी गयी ताकि विभिन्न काम कराये जाएं। रेनोवेशन के नाम पर भी यहां गुणवत्ता को दरकिनार कर दिया जाता है।

कैलाश सिंह

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