: तस्वीरों से अलहदा भी है बाहुबली पूर्व सांसद का भावुक चेहरा : हम समाज को जोड़ने के लिए तन्तुओं को जोड़ते हैं, बोले धनंजय सिंह : धमकी, सलाह और आत्मीयता का मिला-जुला मिश्रण रही है धनंजय सिंह की फोन-कॉल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : वजहें मत टटोलिये, मसले का समाधान खोजने की कोशिश कीजिए, तो हम आपका एक नयी दुनिया दिखाने ले चलें। हुज्जत बढ़ी तो फिर हुज्जत ही बढ़ेगी, समाधान नहीं, और न ही तत्सम्बन्धी दिग्दर्शन भी।
तो अब जरा कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है। मतलब राजनीति। सांसद रह चुका है, विधायकी भी कर चुका है, चौबीसों घण्टों की व्यस्तता रहती है। जाहिर है कि भागादौड़ी भी बेहिसाब है। तुर्रा यह कि कई मुकदमे और किस्से पसरे हैं, जिसके चलते, और राजनीतिक हठों-आग्रहों के चलते नकचढ़ी मुख्यमंत्री मायावती तक से भिड़ंत हो चुकी है। सत्ता से टकराने से माथा-चेहरा तक लहू-लुहान हो चुका है, जेल यात्रा इसी क्रम में हो चुकी है। अब कोर्ट-कचेहरी की भागा-दौड़ी भी बेहिसाब है। छवि बन चुकी है बाहुबली की, इसलिए अब सुरक्षा भी एक सर्वोच्च प्राथमिकता बन गयी। सुरक्षा-कवच भी जरूरी है और जीवन-यापन करने के लिए धन जुटाने की आपाधापा और चिंता भी है।
अचानक उस शख्स की पत्नी का निधन हो गया। अब यहां चर्चा बेमानी होगी कि यह मौत किन कारणों से हुई। लेकिन इसके पहले ही उसका एक बेटा पैदा हो गया है, जो इस वक्त करीब छह बरस का है। उनका लानन-पालन अपने आप में एक सुखद दायित्व तो है, लेकिन राजनीतिक झंझावातों में फंसे ऐसे शख्स के लिए परेशानी का सबब भी है। बवाल यह कि अब वह अपने बच्चे के लिए पूरा ध्यान दे, या फिर अपनी राजनीति को। हालत यह है कि ऐसी हालत में किसी एक को भी छोड़ पाना मुमकिन नहीं होगा। यहां गौरतलब है कि अपराध और पुलिस के रिकार्ड में भले ही इस शख्स का नाम भरपूर हो, लेकिन दैहिक-आकर्षण से जुड़े एक भी आरोप-छींटे उस शख्स पर कभी नहीं पड़े।
ऐसे में इस शख्स ने तय किया कि वह शादी कर ले। अब चूंकि वह शख्स उम्र में पचास की फेटे में है, इसलिए ऐसे में दैहिक-आवश्यकताओं से जुड़े सवाल अनर्गल होंगे। जाहिर है कि बच्चे का लालन-पालन ही सर्वोच्च है। इसलिए उसने शादी करने का फैसला कर ही लिया।
लेकिन इसी को लेकर हंगामा खड़ा हो गया। तर्क-वितर्क, वितण्डा और आरोप-प्रत्यारोप।
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आज सुबह धनन्जय सिंह ने मुझे फोन पर पुकारा। सफेद और सर्द-बर्फीली आवाज धनंजय सिंह की खासियत है। अब इतना ध्यान तो है नहीं कि कितनी देर तक बातचीत चली, लेकिन अंदाज लगाया जा सकता हूं कि करीब पौन घंटा तक यह शख्स मुझसे बतियाता रहा। कभी धमकी, तो कभी सलाह और कभी आत्मीयता का मिला-जुला मिश्रण रही है धनंजय सिंह की यह बातचीत। मैं उचित नहीं मानता हूं कि इस फोन-कॉल या उसके किसी पक्ष का खुलासा करूं। खैर, इसके पहले भी एक बार धनंजयसिंह ने मुझे फोन किया था। शायद 10 सितम्बर सन-03 या आसपास की ही कोई तारीख रही होगी। मुझे जौनपुर में हिन्दुस्तान का प्रभारी बनाया गया था और 10 सितंबर को मैंने अपने सारे संवाद-सूत्रों के साथ पहली बैठक की थी। बस, उसी बैठक में धनंजय सिंह का जिक्र हुआ, वहां सिकरारा का संवादसूत्र भी था। और शायद शाम को या फिर सुबह ही धनंजय का फोन आ गया। खैर
लेकिन आज इस फोन पर मैं इस बाहुबली और उसकी सर्द आवाज से नहीं, बल्कि उसके भीतर उमड़ती आत्मीयता और भावनाओं का भारी ज्वर-लहरें से बेहद प्रभावित हुआ। धनंजयसिंह बोले:- हम उस समाज में हैं, जो स्नेह और प्रेम पर टिका है। और इसलिए, क्योंकि हम समाज को जोड़े रखने की पुख्ता वकालत और पुरजोर कोशिश करते हैं। मौत हमारे परिवार-समाज को बुरी तरह झकझोरती है। बिखराव और तबाही तक के मोड़ तक। लेकिन उसे जोड़ने के लिए हमारा समाज किसी भी विधवा भाभी को उसके देवर से विवाह करने की इजाजत दे देता है। वह इसलिए, क्योंकि हम नहीं चाहते कि कोई विधवा किसी संकट में पड़े, और इसलिए भी, क्योंकि हम पीडि़त परिवार के अविवाहित व्यक्ति को उसका दायित्व-बोध भी कराये। ऐसे प्रयासों का संदेश दूर तलक जाता है, और जाहिर है कि यही रोड़े हमारे समाज की मजबूती के लिए एक मजबूत ईंट-सीमेंट के तौर पर स्तम्भ बनते हैं।
और हां, धनंजय सिंह जी। शादी की दिली मुबारकबाद। काश, मुझे भी शादी में बुला लेते तो मैं भी डांस करता। जम कर। भोजन भी करता। ठांस कर।