जो लिबरल मुसलमान तो वही, जो शराब पीकर हराम-हलाल पर प्रवचन दे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: 3 तलाक को लेकर औरतों से टीवी चैनल पर गाली खाने का शौक़ है मुसलमानों में : दिल्‍ली के एक मौलाना को गुस्‍सा है कि ऐयाशी-हलाला के आरोप लगवाना इस्‍लाम की सेवा नहीं, जग-हंसाई का सबब है :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

दिल्‍ली : तीन तलाक, हराम और हलाला को लेकर पिछले कुछ वक्‍त से खासा हंगामा चल रहा है। समर्थन और विरोध में जुटे विभिन्‍न तबके इस मसले पर अपनी-अपनी लंगोट कसे बैठे हैं। ऐसे वक्‍त में लखनऊ के एक अनजान से एक मुसलमान संगठन अध्यक्ष, अंजुमन मिनहाज रसूल (स) ने इस मसले पर अपनी राय रखी है। इस संगठन के अध्‍यक्ष सैयद अतहर हुसैन देहलवी इस बारे में खासी ताव खाये हुए लगते हैं। वे औरतों पर भी हमला बोलते हैं, जो टीवी पर तीन तलाक के विरोध में चर्चा करने जाती हैं, वहीं वे प्रगतिशील और लिबरल मुसलमानों को भी आड़े हाथों लेते हैं और बताते हैं कि ऐसे लोग खुद ही हराम का जीवन व्‍यतीत कर रहे हैं।

देहलवी की फेसबुक ऐसे ही जहर-बुझी बातों पर लबरेज है। मेरी बिटिया डॉट कॉम ने उनकी तीन फेसबुक पोस्‍ट को जस का तस बटोर कर आप सब के सामने पेश करने की कोशिश की है। आप भी मुलाहिजा फरमाइये:-

कुछ संजीदा लोगों व दोस्तों की सलाह पर मैं ने तलाक पर किसी भी अवामी बहस से अपने आप को अलग कर रखा है आश्चर्य यह कि कुछ लोग तलाक़ पर लगातार टीवी डिबेट में जाकर न केवल एंकर और तथाकथित उदारवादी महिलाओं से अपमानित हो रहे हैं बल्कि इस्लाम की छवि को भी बिगाड़ रहे हैं जबकी तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चर्चा जारी है और सबकी ऐक ही राय है तो रोज-रोज टीवी पर जाकर अपमानित होना महिलाओं से गालीयां खाना अपने ऊपर अय्याशी और हलाले का आरोप लगवाना कौन सी समझदारी है यह इस्लाम की सेवा नहीं बल्कि जग हँसाई का सबब है

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हैरानी की बात है कि विभिन्न धर्मों के जितने भी कट्टरपंथी या दक्षिणपंथी हैं उन सब को उदारवादी लिब्रल मुसलमान पसंद हैं

और इसी तरह जितने भी वामपंथी या नास्तिक गिरोह हैं

उन्हें भी उदारवादी लिब्रल मुसलमान पसंद हैं

सवाल यह है कि उदारवादी प्रगतिशील लिब्रल मुसलमान कौन है?

वह तथाकथित मुसलमान जो शराब के जाम और सिगरेट के कश के साथ हराम और हलाल पर प्रवचन देते हैं

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अल्लाह

“ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड”

यह एक स्वाभाविक बात है कि किसी भी व्यक्ति या संस्था से अपके वैचारिक मतभेद हो सकते और बोर्ड में मौजूद कुछ लोगों से मेरा भी सैद्धांतिक मतभेद है, जबकि मेरा यह भी मानना ​​है कि बोर्ड में तुरंत कुछ सुधार की जरूरत है, लेकिन इस सब के बाद भी यह एक सिद्ध सत्य या हक़ीक़त है कि सारी कमजोरियों के बावजूद “ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड” भारतीय मसमानों के सभी मकातीब मसलकों का एक संयुक्त और केंद्रीय और प्रभावी मंच व संगठन है

पर अफसोस की बात यह है कि इन उथली परिस्थितियों जिनमें मुस्लिम पर्सनल लॉ और शरीयत को लगातार निशाना बनाया जा रहा है एवं जबकि सुप्रीम कोर्ट में भी तलाक पर सुनवाई और जारी है ऐसे नाजुक मौके पर कुछ बे-क़ीमत राजनीतिक प्यादे और स्वयंभू मुस्लिम धर्मगुरु और व नेता अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर पर्सनल लॉ बोर्ड की सार्वजनिक रूप से आलोचना और उसपर बयानबाजी करके बोर्ड के वज़न कम करने की नापाक साज़िश कर रहे हैं

जो अत्यंत निंदनीय और अभिशापी पाप है

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