पाखण्ड करना तो कोई यूपी की नौकरशाही से सीखे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

कलाबाजी, नौटंकी, दगाबाजी, लै-मारी, झपटमारी में पीएचडी कीजिए न
यूपी की ब्‍यूरोक्रेसी पर लेख श्रंखला- एक

कुमार सौवीर

लखनऊ : ताजा खबर है कि कई साल तक जेल में चक्की पीस कर जमानत पर छूटे वरिष्ठ आईएएस प्रदीप शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगायी है कि उन्हें अपनी रिहाई से बचने के लिए कोर्ट ने जो रकम जमानत के लिए तय की है, वह बहुत ज्यादा है। शुकुल जी ने ने गिड़गिड़ाते हुए अरज की है कि चूंकि पचास लाख रूपये की जमानत बेहद ज्यादा है, ऐसा यह रकम कम कर दी जाए। प्रदीप शुकुल ने आर्तनाद करते हुए कोर्ट से कहा है कि:- चूंकि मैं गरीब सरकारी नौकर हूं, इसलिए इतनी रकम की जमानत करा पाना नामुमकिन है।

हैरत की बात है ना?

प्रदीप शुक्ल पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्‍थ्‍य मिशन के अरबों की सरकारी रकम को दोनों हाथों लूटने-लुटवाने का आरोप है और वे इसी महा-घोटाले में सैकड़ों सरकारी अफसरों और नेताओं के साथ फंसे हुए हैं। बाबू सिंह कुशवाहा जैसे बड़े दिग्गज नेताओं के साथ प्रदीप शुक्ल ने गाजियाबाद की डासना जेल में लम्बा प्रवास निपटाया है। आरोपों के मुताबिक तब कुशवाहा घोटाली-नेताओं के सरपरस्त थे तो प्रदीप शुक्ल बेईमान अफसरों के आका। इन दोनों ने जमकर घोटाला किया। और अब प्रदीप शुक्ला को यह रकम उनकी हैसियत से ज्यादा दिख रही है।

अब कुछ सवाल है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाने जैसे छोटे कामों में भी लाख-दो लाख का खर्चा आसानी से सरक जाता है। आप याद कीजिए कि राम जेटमलानी जैसे वकीलों एक-एक पेशी पर पचीसों लाख की रकम फीस के तौर पर उगाह लेते हैं। ऐसे में प्रदीप शुक्ला को अपने मुकदमे पर कितनी रकम अपनी टेंट से निकालनी पड़ी होगी, आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं। फिर सवाल यह उठता है कि इतना खर्चा प्रदीप ने कैसे निपटाया।

प्रदीप शुक्ल एक मंजे हुए ब्यूरोक्रेट हैं। यह उन अफसरों में से एक हैं, जिन्हें तिकड़म की महारत है। गम्भीर आरोपों के बावजूद प्रदीप शुक्ल नियुक्ति विभाग जैसे महकमे के मुखिया बने रह चुके हैं। वह तो अदालत ने उन की तैनाती पर ऐतराज कर दिया था, वरना वे न जाने क्या–क्या कर चुके होते।

घिनौने आरापों में दागी अफसरों की लिस्ट यूपी में खासी लम्बी  है। प्रदीप शुक्ला जैसे मंझोले अफसर ही नहीं, यूपी के मुख्य सचिव जैसे सर्वोच्च ओहदे पर रह चुके अखण्ड प्रताप सिंह और नीरा यादव तक जेल के सींखचों तक बंद रह चुके हैं। उन दोनों दिग्गजों पर खिलाफ ऐतिहासिक बेईमानियों की नयी-नयी इबारतें लिखने का आरोप रह चुका है।

ताजा मामला राजीव कुमार का है। उनके मामले में सीबीसीआईडी जांच में गम्‍भीर आरोप लगे। जब लगा कि उस जांच में उनकी छीछालेदर हो सकती है, तो उन्हें नियुक्ति विभाग के संवेदनशील ओहदे से हटा कर प्रशिक्षण अकादमी के महत्वहीन महानिदेशक पद पर बिठा दिया। लेकिन अगले ही दिन सरकार को जैसे ही लगा कि इस काण्ड में उनकी गिरफ्तारी हो सकती है और फिर सरकार घिर सकती है, तो सरकार ने राजीव कुमार को इस पद से भी हटा कर उन्हें प्रतीक्षा में डाल दिया।

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