पुलिस-वार्ता ही चरणामृत, लखनऊ के पत्रकारों की बुद्धि चर चुकी

दोलत्ती

: बड़े अखबारों के दो बड़े पत्रकार को लखनऊ की तमीज तक नहीं : क्‍वीनमेरी अस्‍पताल में बच्‍चा चोरी को डीपीसी ने विस्‍मयादि चिह्न लगा दिया : झोंपड़पट्टी को रिवर बैंक कालोनी लिख मारा :
संजोग वाल्‍टर
लखनऊ : सय्यद नबीउल्लाह बैरिस्टर हुआ करते थे। लखनऊ म्युनिस्पल बोर्ड के पहले हिंदुस्तानी चेयर मेन 1916 से 1923 में बने। उनकी याद में गोमती नदी के किनारे ठंडी सड़क के बाद जो रोड थी जिसे तब बुलंद बाग़ रोड के नाम से जाना जाता था. इस रोड को नबीउल्लाह रोड का नाम दिया गया।
ख़ैर यह तो था इस रोड का इतिहास जिसका जिक्र अब होने जा रहा है। साल 2003 में यहाँ पुलिस ऑफिस बना और यही से यह रोड अपनी पहचान खोती चली गयी। लखनऊ के लगभग सभी अपराध संवाददाता इस जगह को डालीगंज कहने लगे और लिखने लगे। पुलिस अफ़सरान भी पुलिस ऑफिस को डालीगंज कहते है ,उनकी ओर से प्रेस नोट जारी होता है उसमें पुलिस ऑफिस की जगह का तस्करा डालीगंज ही होता है।
गौरतलब है की यह इलाका वज़ीरगंज कोतवाली में आता है। जबकि डालीगंज हसनगंज कोतवाली में आता है।
13 मई को लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल से नवज़ात बच्चा चोरी हुआ था। इस बच्चे को पुलिस ने बरामद के के अस्पताल के सामने स्थित झोपड़ पट्टी से ,यह अस्पताल नबीउल्लाह पर स्थित है। २ जून को लखनऊ के लगभग सभी अख़बारों ने इसे इलाके को नया नाम दिया “रिवर बैंक कॉलोनी” और यहाँ से बच्चा बरामद करा दिया।
बेचारी नबीउल्लाह रोड अख़बारों के मुताबिक के के अस्पताल “रिवर बैंक कॉलोनी” में । के के अस्पताल के बराबर स्थित विज्ञान भवन और इन्दिरा गाँधी नक्षत्र शाला नबीउल्लाह पर। विज्ञान भवन के सामने स्थित पुलिस ऑफिस “डालीगंज” में । नबीउल्लाह रोड पर स्थित सूरज कुण्ड पार्क के सामने “रिवर बैंक कॉलोनी”।
पाठक तो समाचार पत्र भरोसा करते हैं। ऐसे में सम्वाददाता कॉपी पेस्ट के भरोसे रहेंगे तो पाठकों के भरोसे का खून तो होता ही रहेगा। यह सिर्फ यहाँ का इकलौता मामला नहीं है। हज़रत गंज चौराहे का नाम अब अटल चौराहा तो भाई लोग अभी भी उसे हज़रत गंज चौराहा लिख रहे हैं

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