: पुलिस वालों को हलकान कर रखा है प्रमोशन में तीस फीसदी अडंगा : एक खिन्न दारोगा ने व्यथा बतायी कि इस धंधे में प्रति प्रोन्नति 14 लाख तक की वसूली चल रही है : आखिर इन्हीं तीन बैचों से क्यों सारा रिफार्म कर लेना चाहती है सरकार और सरकारी फरमान : प्रोन्नति के मायने ही बर्बाद कर दिये हैं डीजीपी जावीद अहमद के आदेश ने :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आइये, जरा यूपी के डीजीपी और यूपी सरकार से एक सवाल किया जाए। उनसे पूछा जाए कि जिन दारोगाओं के बल में यूपी पुलिस का ढांचा खड़ा है, उसके साथ ऐसी ज्यादती क्यों की जा रही है। पिछले 17-18 साल से प्रमोशन के इंतजार की घडि़यां गिन रहे पुलिसवालों को सरकार ने किस आधार पर उनके भविष्य पर अड़ंगा लगा दिया है। वह भी तब, जब इसी तरह की एक कवायद को हाईकोर्ट पहले ही सुनवाई कर रही थी। इन दारोगाओं का कहना था कि प्रोन्नति में इस तरह की अड़ंगाबाजी निराधार और अन्यायपूर्ण है। बहरहाल, सन-13 में सरकार ने इन दारोगाओं की याचिका को मंजूर कर कर प्रोन्नति का प्रस्ताव खारिज कर दिया था।
अभी यह चल ही रहा था कि अचानक सरकार मार्च-16 को आदेश दिया कि प्रदेश में पांच हजार निरीक्षक बनाये जाएंगे। जाहिर है कि इस आदेश से दारोगा-संवर्ग प्रसन्न हो गया। लेकिन यह खुशी पुलिस मुख्यालय को पसंद नहीं आयी, और डीजीपी यह व्यवस्था दे दी कि भर्ती में 70 और 30 का अनुपात रखा जाएगा। आपको बता दें कि पुलिस में अराजपत्रित पदों पर प्रमोशन के लिए सरकार ने वरीयता-क्रम की व्यवस्था कर रखी थी।
लेकिन अचानक ही पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने इन अराजपत्रित पदों की प्रोन्नति को लेकर एक नया शिगूफा छेड़ दिया। इस शिगूफा के तहत अब प्रमोशन के लिए कुल अर्ह लोगों को प्रमोट करने के लिए दो खांचे बना दिये गये। अब 70 फीसदी को वरीयता-वरिष्ठता क्रम से प्रोन्नत, जबकि 30 फीसदी को सीधी भर्ती से।
लेकिन इसी नयी व्यवस्था ने ही तो बखेड़ा खड़ा कर दिया है। अब इस बात पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या अनुभवी लोगों को प्रमोशन से वंचित कर दिया जाएगा, और हां तो उसका औचित्य क्या होगा। जाहिर है कि डीजीपी के इस आदेश से दारोगाओं के भविष्य पर कालिख पुत गयी है। मतलब यह कि अब इन 30 फीसदी दारोगाओं को एक भी प्रमोशन नहीं दिया जा सकेगा। वे अब जीवन भर इंस्पेक्टर बनने की तमन्ना अपने सीने में ही दफ्न रखेंगे। कहने की जरूरत नहीं कि अगर यह नयी व्यवस्था से प्रमोशन-नियुक्ति होगी, तो सन-98, सन-2000, सन-01 और सन-05 बैच के अनेक दारोगाओं के भविष्य का कत्ल हो जाएगा।
खैर, पुलिस विभाग में यह खुसफुस अब तेज हो चुकी है कि पुलिसवालों की प्रोन्नति में 14 लाख रूपयों की बोली लग चुकी है। एक उप निरीक्षक ने बताया कि कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में दारोगाओं की भर्ती में एक भी धेला की रिश्वत नहीं चली थी। केवल 150 रूपयों का ही फार्म आदि का सामान्य शुल्क दिया गया था। एक अन्य दारोगा ने अपना नाम न बताने का अनुरोध करते हुए बताया कि इस समय दारोगा की भर्ती में 14 लाख रूपयों तक की वसूली चल रही है।