एकजुट संघ, अफसर और पत्रकार चाकू लाये, और पत्रकारिता की नाक काट ली

सैड सांग

: प्रशासन ने तो बस्‍ती-काण्‍ड के मुख्‍य अभियुक्‍त से अपनी दोस्‍ती निभा ली, पत्रकारों ने अपनी पूंछें पेट में रख लीं : सरेआम हुई गुण्‍डागर्दी को अखबार अब लीपने-पोतने जुटे : दरबारगिरी में लिप्‍त हैं बस्‍ती के पत्रकार :

संवाददाता

बस्ती : शहर के भीड़-भड़क्‍के वाले बाजार में चंद गुण्‍डों ने एक पत्रकार को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, पुलिस चौकी के सामने हुए इस हादसे के सामने पुलिसवाले भी चुपचाप खड़े रहे। लेकिन बस्‍ती के इस हादसे को अपनी बिरादरी की इज्‍जत का मसला मानने के बजाय अब यहां के पत्रकार इस मामले को पचाने में जुट गये हैं। बड़े पत्रकारों ने तो इस मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली है, उधर बड़े अखबारों ने भी इस खबर के फालोअप से किनारा कर लिया।

आपको बता दें कि जिले के फोटो पत्रकार अजय श्रीवास्तव के प्रकरण में 10 जून को चुप्पी साधे पड़ा पीडि़त पत्रकार का संस्थान अजय के साथ आया था, जब विरोध का दौर शुरु हो गया। थोड़ी देरी से साथ आये संस्थान ने कुछ पत्रकारों को साथ लेकर पत्रकारिता के बल पर मुकदमा दर्ज कराया। मुकदमा दर्ज हुआ उसके बाद लगातार डी आई जी, डी एम, एस पी, आदि से सिफारिशों का दौर चलता रहा। पत्रकारों को इन अधिकारियों द्वारा एक गिलास पानी और आश्वासन के सिवा कुछ नही मिल रहा था। दो दिन बीत जाने के बाद पुलिस ने कार्यवाही के नाम पर दबंग व्यापारी पवन तुलस्यान के 2 आदमियों को 151 में चालान कर एस डी एम के यहाँ भेज दिया जहाँ एस डीएम के बाबू ने उन्हें जमानत दे कर घर भेज दिया बाद में पत्रकारों द्वारा बवाल किये जाने के बाद एस डीएम ने उन्हें एक दिन के लिये जेल भेजा।

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पत्रकार पत्रकारिता

उस दिन भी पत्रकारों के आक्रोश को शांत कराने आई पुलिस के कोतवाल और सी ओ सिटी का दोहरा चरित्र साफ दिख रहा था, पत्रकार असुरक्षित महसूस कर रहे थे क्योंकि पुलिस सुरक्षा कर्मी की भूमिका में नही बल्कि तुलस्यान के आदमियों की तरह काम कर रही थी। खैर फिर भी पत्रकारों ने लड़ाई जारी रखी। अफसरों के दफ्तरों में दरबारगिरी करने वाले कुछ पत्रकारों के साथ ही दैनिक जागरण जैसे अख़बार ने भी इस केस से अपना हाथ खींच लिया। कारण उस व्यापारी का रशूख या कोई दबाव वो जाने। लेकिन अन्य समाचार पत्र और संगठन साथ रहे।

घटना के 5 दिन बाद जिले के सबसे प्रभावशाली संगठन ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की नींद खुली। देर से मैदान में आये ग्रामीण पत्रकारों ने धरने का एलान उस समय किया जब कोई संगठन नेतृत्व के लिये आगे नही आ रहा था, तमाम पत्रकारों के मुँह पर तमाचा मार ग्रामीण पत्रकार आगे बढे और जैसे ही इसकी सूचना पुलिस विभाग के गोपनीय विभाग को हुई वो लग गया सामंजस्य बनाने में। एल आई यू इंस्पेक्टर के द्वारा पुलिस अधीक्षक ने ग्रामीण पत्रकारों के मुखिया को बुलवाया और वार्ता करना चाहा, वार्ता में सभी संगठनों के पत्रकार शामिल हुये और पुलिस अधीक्षक के बार बार अनुरोध करने पर पत्रकारों ने दो दिन का समय दिया।

इधर संघ के जिला के प्रचारक राम मनोहर और भाजपा के नेता अजय सिंह गौतम जैसे लोग अजय के घर तक सिफारिश में लगे रहे। व्यापार मण्डल के सुभाष शुक्ल,सुनील मिश्र, प्रमोद गाड़िया तुलस्यान के पक्ष से प्रशासन और पत्रकारों दोनो इस प्रकरण को समाप्त करने की अपील करते रहे लेकिन उन्हें कोई कामयाबी हासिल नही हुई। संस्थान और पत्रकार संगठनों की एक जुटता को देख घबराये प्रशासन ने उस समय पवन तुलस्यान को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया जब पत्रकार धरने की नोटिस देने मण्डलायुक्त कार्यालय गये थे। सत्ता और संघ के दबाव में प्रशासन ने कुछ गम्भीर धारायें तो हटा ली लेकिन पत्रकारों के दबाव के चलते  तुलस्यान की गिरफ्तारी नही टाल पाये।

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बस्‍ती, इज्‍जत बहुत सस्‍ती

अब सवाल उठता है कि क्या पत्रकार इस प्रकरण को यहीं समाप्त करेंगे या तुलस्यान और धोखेबाज पुलिस प्रशासन के खिलाफ कलम की लड़ाई जारी रहेंगे….?

बस्‍ती के एक पत्रकार के पत्र के अनुसार

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