जै सीताराम ठाकुर साहब। कुछ कम हुआ आपका गुस्‍सा ?

मेरा कोना

: परशुराम से अपनी तुलना मत कीजिए बाबू साहब, उन्‍होंने कोई भी काम ढंग से नहीं किया : आप वाकई दुर्दमनीय हैं, परशुराम में परफेक्‍शन अगर होता तो आज आप यहां कैसे होते : गुस्‍से को दिल से हटा कर दिमाग पर रखिये, फिर समझ में आयेगा कि मामला असल क्‍या है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पिछले दिनों एक खबर लिखी थी मैंने। इसके केंद्र में थे ठाकुर। लेकिन पूरी ठाकुर प्रजाति नहीं, बल्कि वे लोग जो बकलोली करते हैं, और इसके बावजूद वे खुद को क्षत्रिय, ठाकुर, राजपूत वगैरह-वगैरह कहते हैं। बस इस पर हंगामा खड़ा हो गया। हमारे कई पाठक मेरी इस खबर पर बहुत बिदके, भड़के, नाराज हुए। लेकिन ज्‍यादातर ने उस खबर को सहज भाव से लिया। उस नजरिये के तौर पर लिया, जो किसी भी संदर्भ-तथ्‍य पर आपको दूसरे पक्ष और पहलुओं से साक्षात्‍कार कराता है।

अब चूंकि मैं उन लोगों के बारे में कुछ भी नहीं कहूंगा, जिन्‍होंने मेरी बात को पूरी सार्थकता से लिया, उसे स्‍वस्‍थ आलोचना के तौर पर देखा। यह उनका बड़़प्‍पन है कि उन्‍होंने यथार्थ को यथार्थ के तराजू पर देखा और समझा। शुक्रिया मेरे दोस्‍तों।

लेकिन यहां बात तो मैं उन लोगों से कहना-करना चाहता हूं जिन्‍होंने उस खबर पर मेरी लानत भेजी, मेरी निन्‍दा की। मैं आपकी निन्‍दा का स्‍वागत करता हूं। कम से कम आपने अपने दिल का गुबार तो सामने रखा, यही तो आपका बडप्‍पन है। शुक्रिया मेरे विरोधी पाठकों।

पूर्वांचल और खासकर गोरखपुर से जुड़े पत्रकारों का एक समूह है जो खुद को पत्रकारों की एकता पर जोर देता है। नाम है पत्रकार एकता संघ। वेरी गुड। वहां के कई ठाकुरों ने मेरी खबर को जातिवादी करार दे दिया। वे लोग खुद को पत्रकार कहलाते हैं और चाहते हैं कि उनके ग्रुप से उन्‍हें तत्‍काल बर्खास्‍त कर दिया जाए। अब उस पर क्‍या चर्चा की जाए कि उनमें से कई पत्रकारों को खबर लिखने में अभी काफी समय लगेगा। एक अन्‍य ग्रुप जीतेंद्र सिंह गौतम ने अपनी धोती की लांग लपेट लिया कि इस दुनिया में अब पत्रकार रहेंगे या फिर कुमार सौवीर। एक अन्‍य पत्रकार ने बताया कि अगर ठाकुर न होते तो यह दुनिया ही न होती।

उधर गुडविल न्‍यूज नामक एक ग्रुप में भी गरम चर्चा हुई। लेकिन बेहद सौम्‍यता के साथ। उसमें कई पाठकों ने मेरी खबर में इस्‍तेमाल शब्‍दों पर कहा कि उनमें सौम्‍यता बहुत जरूरी है। सुश्री सीमा सिंह नामक एक पाठिका ने कोई खास आलोचना तो नहीं की, लेकिन इतना जरूर कहा कि मौजूदा राजनीतिक उठापटक के आधार पर राजपूतों का मूल्‍यांकन नहीं करना चाहिए। सुश्री सिंह का दावा है कि दुनिया की सारी बड़ी लड़ाइयां राजपूतों ने ही लड़ी हैं। और राजपूत इतना अदम्‍य होता है जिसे परशुराम ने 36 बार उन्‍हें समूल नाश किया, लेकिन वे अपनी जिजीविषा के बल पर आज भी अस्तित्‍व में हैं।

जो मुझे गालियां देते हैं, मैं उनकी बातों पर सिर्फ हंस कर टाल देता हूं, लेकिन आदरणीय सीमा सिंह जी ने बहुत शालीनता के साथ अपना पक्ष रखा है, इसलिए यह मेरा पुनीत दायित्‍व है कि मैं उनकी बातों का जवाब दे दूं। तो आदरणीय सीमा जी, आपकी बात से मैं सहमत हूं। इन सब शिकायतों को सिर-माथे लेता हूं। पूरी दुनिया की सारी महान लड़ाइयों की बात तो मैं नहीं कर सकता हूं, क्‍योंकि चूंकि मैं प्राचीन भारत के इतिहास का एक अदना सा छात्र हूं। इसलिए आर्यावर्त पर बातचीत जरूर करूंगा। मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने परशुराम पर बाकायदा एक उपन्‍यास लिखा है, जिसका नाम है खण्‍ड-परशु। आर्थिक संकटों के चलते यह उपन्‍यास प्रकाशित नहीं हो पाया है, लेकिन मैं उसे छपवाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा हूं। यकीन मानिये, कोई, किसी और कितने डर के चलते नहीं, केवल आर्थिक संकट के ही चलते।

फिलहाल तो बात को आगे बढाने के पहले आपको वह लिंक भेज रहा हूं जो खण्‍ड-परशु की प्रस्‍तावना में दर्ज है। उन्‍हें देख कर आपको आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा। इस उपन्यास की भूमिका की सारी कडि़यां पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- खण्ड-परशु

लेकिन इसके बावजूद तीन तथ्‍य आदरणीय सुश्री सीमा सिंह के कमेंट को लेकर उभरे हैं, वह आपसे शेयर करना चाहता हूं। फिलहाल तो अभी तीन सवाल नुमा जवाब हैं,  जो परशुराम को लेकर है। (क्रमश:)

यह लेख तीन अंकों में है। यह पहला अंक आपने पढ लिया,

अब दूसरा और तीसरा अंक पढने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए :- क्षत्रिय-संहार वाला मिशन-परशुराम

( मेरे इस उपन्‍यास का शीर्षक है:- खण्‍ड-पुरूष। मैं इस उपन्यास को प्रकाशित कराने का सतत प्रयास कर रहा हूं। जाहिर है कि भारी आर्थिक संकट है। लेकिन जब और जैसे भी मुमकिन हुआ, यह किताब प्रकाशित कराके आपके हाथों सौंप दूंगा। और हां, आप लोगों से भी अनुरोध है कि यदि आप इस संकट से मुझे उबारने के लिए सहायता करना चाहें तो मेरे ईमेल meribitiyakhabar@gmail.com या kumarsauvir@gmail.com अथवा फोन 09415302520 पर सम्पर्क कर लें। )

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