: संपादक का कमरा मार्केटिंग सेक्शन में बरामदा की दूरी पर था : एक ही झटके में सपने बिखर गए : पूरे बैच ने पत्रकारिता को लात मारी, हम बेरोजगारी में पहाड़ खोदने निकले हैं :
योगेश मिश्र
लखनऊ : कॉलेज का तीसरा और आखिरी साल शुरू हुआ. अब वक़्त था करियर को शुरुआती आकार देने का. पूरे बैच में हम पांच का ग्रुप था. मैं, सुदीप, आदर्श श्रीवास्तव, अपरिमित और भावनी सिंह. वैसे तो हम सभी अच्छे बुरे फैसले साथ लेते थे. एक दूसरे के लिए भी पर्सनल लाइफ के फैसले लेने का हक था हमें लेकिन करियर को लेकर सबने अपने मन या घर की सलाह मानी.
सुदीप और अपरिमित ने गांव कनेक्शन में देवांशु भइया से बात करके इंटर्नशिप शुरू कर दी. भावनी को भी एक दो चक्कर काटने के बाद एनबीटी में इंटर्नशिप मिल गई. बचे दो लोग मैं और आदर्श. लालच कितनी बुरी चीज है ये उस दिन हम लोग की समझ आया.
हम लोग इंटर्नशिप के लिए ना गांव कनेक्शन गए, न एनबीटी बल्कि अपने कॉलेज सीनियर श्रीनिवास सर के बताए पर सीधे जॉब के लिए निकले. लगा दोनों अपने साथ के लोगों से चार कदम आगे से शुरू कर रहे हैं, ये हुई ना बात. क्या पता था आठ कदम पीछे जाने वाले हैं.
जॉब पता चली देश के सबसे बड़े अखबार दैनिक जागरण में. तब ये पता ही नहीं था कि प्रिंट में जाना है या इलेक्ट्रॉनिक में तब सिर्फ ब्रांड नेम का भौकाल दिखता था. दोनों जाते टाइम बहुत खुश कि नौकरी वो भी इतने बड़े संस्थान में. ठंड की सुबह दोनों चाय पीते पिलाते पहुंचे दैनिक जागरण.
देखा 3-4 लोग और आए हैं ज्वाइनिंग के लिए. हम लोग पहले से ही खुद को बेहतर मान रहे थे. लपक लपक के देख रहे थे कि संपादक का कमरा कहां है. थोड़ी देर बाद एक आदमी आया और बोला आप लोग इंटरव्यू के लिए आए हैं? हमने कहा, जी. वो हम दोनों को मार्केटिंग डिपार्टमेंट में ले गया. ये कमरा संपादक के कमरे से एक बरामदे की दूरी पर था पर सही मायने में ये कमरा हमारे लिए संपादक के कमरे कई किलोमीटरों दूर था.
अंदर दोनों का एक साथ इंटरव्यू शुरू हुआ. पूछा गया फील्ड वर्क में कोई दिक्कत तो नहीं?. रवीश की रिपोर्ट देखकर पहुंचे हम लोगों ने कहां कि, फील्ड वर्क अगर नहीं होगा तो दिक्कत होगी सर. सामने वाला बहुत खुश. बोला आप लोग को अगर लोगों के बीच भेजा जाएगा तो शर्म तो नहीं आएगी. हमने कहा कि पत्रकारिता में आने से पहले ही हम लोग शर्म छोड़ आए हैं. सामने वाले को इंप्रेस करने के लिए हम लोग दनादन डायलॉग मर रहे थे और मन ही मन अपने दोस्तों पर हंस रहे थे कि गांव कनेक्शन और एनबीटी में गए हैं डेस्क वर्क करने बेचारे.
बात आती है सैलरी पर तब हमें काम बताया जाता है. हमसे कहा गया कि आपको एरिया दिया जाएगा जिसमें आपको लोगों के घर जाकर उन्हें दैनिक जागरण की खासियत बताकर और कोई एक स्कीम जैसे, डिनर सेट या प्लास्टिक की बाल्टी के साथ अखबार का कस्टमर बनाना है. महीने में 35 कस्टमर बनाने पर 9 हजार सैलरी मिलेगी. 35 से ज़्यादा होते हैं तो उसी हिसाब से पैसे बढ़ जाएंगे.
पता नहीं कौन सा माल फूंककर बैठे हम लोग इसे भी पत्रकारिता समझ रहे थे क्योंकि किस्सा सुना था कि रवीश भी फैन मेल देखते थे. शून्य कमाई वाले लड़कों ने 9 हजार वेतन सुनकर हां कर दी और अगले दिन आने का वादा कर दिया. मेरे हमदम आदर्श ने अपने पापा सहित शायद ही कोई रिश्तेदार बचा हो जिसे अपनी नौकरी लगने की बात ना बताई हो. ‘जॉब लग गइल’ घर आते आते यही तीन शब्द. मैंने तो घर में बताने के लिए इसे सरप्राइज रखा.
हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था. महानगर में 1300 रुपए में हमने उस दिन लंच किया. इसे सेलिब्रेशन नाम दिया. दोस्तों, फैकल्टी सबको बता दिया. फिर रात को दोनों कथित पत्रकार मेरे घर आए. पापा से चर्चा की तो भक्क से बुद्धि खुली और अगले दिन हम ज्वाइनिंग करने नहीं गए. उसके बाद हम लोगों ने इंटर्नशिप के लिए सहारा के 8 से 10 चक्कर काटे, इस बार जीसी भी गए और एनबीटी भी. लखनऊ के लगभग सभी संस्थानों के चक्कर करीब 6 महीनों तक काटे, दोस्तों, सीनियर से लेकर रिश्तेदारों से बात की.
एक वक़्त तो ऐसा आया कि हम दोनों साथ जाते पर सीवी कोई एक ही देता इस भरोसे की कम से कम एक का तो लगे, तरुण मित्र में 6 से 8 हजार में 40 खबरे लगाने को भी तैयार हम लोगों को महीनों तक इंटर्नशिप नहीं मिली. इस दौरान हमारे दोस्त अपनी एक इंटर्नशिप पूरी कर दूसरी शुरू कर चुके थे जिसके लिए उन्हें कुछ पैसे भी मिलने लगे थे. ऐसा नहीं है कि संघर्ष सिर्फ हमारे हिस्से आया. किसी ने पहले तो किसी ने बाद में अपने अपने हिस्से का पहाड़ इस फील्ड में खोदा.
आज हमारे पूरे बैच ने पत्रकारिता छोड़ दी है. मैं और आदर्श अभी भी पहाड़ खोदने में लगे हुए हैं. देखते हैं कहां तक जाते हैं..
ये तस्वीर उसी दिन दैनिक जागरण चौराहे, लखनऊ की है
(योगेश मिश्र की यह कहानी है उन जोशीली पत्रकारिता में अपना भविष्य खोजने निकले सद्यस्तनपायी युवाओं की, जो अब लगातार तेजी के साथ लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। पिता वकील की पेशागत क्षमता से अलग अपना भविष्य खोजने निकले योगेश के हौसले ऐसे हादसों से तो हरगिज नहीं टूटे हैं, लेकिन इससे इतना तो अंदाजा लग ही जाता है कि साहसी-पत्रकारिता के बिना समाज का भविष्य कैसा होगा।)
अलखनिरंजन—नारायण नारायण–गुरूवर सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम्—इतनी शक्ति मे देना ओ दाता –मन का विश्वास कमजोर हो ना –@जय हो विजय हो की गूंज मे आज बृम्हलीन
हो गयी वो रूह की कलम जो –हम चले नेक रस्ते प भूलकर भी कोई भूल हो ना –लिखकर अमर हो गयी –यही गूंज हमारी ताकत रही –जब थके और मिली शिकन –उठ खड़े हुए गीत की गुनगुनाहट मे –पत्रकार कहलाना बहुत आसान है लेकिन पत्रकारिता निभाना मुश्किल—लटूरा पत्रकार कहे कोई या कहे घनचक्कर —@आंख शेर की मानिंद मिलती रहे यही फक्र काफी है इस फकीरी जिंदगी के लिये —चरामेति चरामेति —