अफसर तो अपने बाप के नहीं होते, पत्रकारों के क्या होंगे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: खलीलाबाद में पत्रकारों की एकता की सारी कोशिशों को नेस्‍तनाबूत कर दिया कि डीएम ने : एक रिपोर्टर को जिला बदर किया, तो किसी की बीवी की कोटे की दूकान पर छापा डलवा दिया : पत्रकार और पत्रकारिता का सम्‍मान चाहते हो तो लबरा बनना बंद करो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : खलीलाबाद के पत्रकारों के साथ पिछले दिनों जो सुलूक हुआ, उससे पत्रकार समाज को सबक लेना चाहिए लेना। समझना चाहिए कि अफसरों को तेल लगाना, मक्खन लगाना, उनकी चापलूसी करना और उनकी जी-हुजूरी के साथ ही साथ अपना चेहरा उनके आगे-पीछे लगाये रखना बहुत खतरनाक होता है। पत्रकार और पत्रकारिता की दुनिया बिलकुल अलहदा होती है, उसके तेवर अलग होते हैं, अंदाज अलग होता है, मूल्‍य और व्‍यवहार अलग होता है, और उसमें अफसरों के तेवरों में तालमेल करना मुश्किल होता है। आप साफ़-साफ़ समझ लीजिए कि अगर आप पत्रकार हैं, तो आपको अपने ही पायजामा और पायंचे में रहना चाहिए, किसी अफसर के पाजामा में नहीं घुसना चाहिए। अगर आप अफसरों के आगे पीछे घूम रहे हैं तो उसके एवज में वो अफसर को भले ही दो-चार लाभ दिला सके, लेकिन आखिरकार मामला जरा भी फंसने पर आप निर्दोष भी हुए, तो खुदा भी नहीं जानता कि अफसर आपको कब-कैसे-कितना कत्‍ल कर दिया जाएगा। बल्कि पूरे पत्रकार समुदाय की प्रतिष्ठा और उनके प्रति आस्था का कत्लेआम भी हो जाएगा।

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संतकबीर नगर

तो आइये, हम आप को घुमा ले जाते हैं खलीलाबाद, जहां पत्रकारों के साथ वहां के जिलाधिकारी ने जो हरकत की है, वह सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। यह जानकारी यहां के एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम को विस्‍तार से बतायी है, और गुजारिश की है कि उसका नाम जग-जाहिर नहीं किया जाए।

तो इस सूत्र के अनुसार यहां के एक बड़े पत्रकार हैं जो एक बड़े अखबार के ब्यूरो प्रमुख हैं। अपने छात्र जीवन में वह भारतीय मार्क्सवादी पार्टी यानी सीपीएम के निष्ठावान कामरेड थे, आज भी वामपंथ उनकी रग-रग में है। कॉलेज से लेकर कई अन्य चुनाव में उन्होंने अपनी खासी धाक जमाई थी। यह दीगर बात है कि वे कभी चुनाव जीत नहीं पाए लेकिन तेवर ऐसे थे कि पत्रकारिता में उनका चांद और सूरज चमकने लगा।उनका एक भाई बेरोजगार था। उन्होंने सोचा कि भाई को किसी धंधे में लगा दें। इसके लिए उन्होंने कोटेदार यानी सरकारी गल्ले की दुकान खुलवा दी।

एक अन्य पत्रकार हैं, जो एक अखबार में विकास और शिक्षा क्षेत्र की रिपोर्टिंग करते हैं। उनकी डीएम से काफी करीबी मानी जाती है। उनकी पत्नी उनके गांव में शिक्षिका है। मियां-बीवी की जिन्‍दगी आराम और सम्‍मान से चल रही है। लेकिन अचानक किसी राहु-केतु की भृकटि बिदक गयी। और नतीजा यह कि उनका जीना हराम हो गया। सम्‍मान-प्रतिष्‍ठा सब की सब दक्खिन हो गयी।

एक पत्रकार हैं, जो किसी इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष हैं।

और एक और पत्रकार हैं, जो शहर के पास के एक बाजार में एक बड़े अखबार के संवाद सूत्र हैं।

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पत्रकार पत्रकारिता

अब आइए असल कहानी पर। करीब 2 महीने पहले पत्रकारों की तनातनी यहां के जिलाधिकारी मारकंडे शाही से हो गयी। किसी दिन अचानक केंद्र सरकार से अफसरों की एक टीम संतकबीर नगर पहुंची जिसने जिले की चिकित्सा शिक्षा की समीक्षा करना शुरू किया। पत्रकारों ने इस दौरे की रिपोर्टिंग की जो डीएम मार्कंडेय शाही को काफी परेशान कर गई। अगले दिन मार्कंडेय शाही ने फरमान दे दिया कि अब इस जांच को लेकर की जाने वाली किसी भी बैठक में पत्रकारों को नहीं घुसने दिया जाए। जाहिर है कि इस फरमान से पत्रकार काफी आक्रोश में आ गए। यहां के पत्रकार के विभिन्न संगठनों ने मिलकर एक नया संयुक्त मोर्चा संघ बनाया और तय कर लिया गया कि जब तक जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक इस मामले पर अपने रवैये पर क्षमा याचना नहीं करेंगे उनका कवरेज पत्रकार नहीं करेंगे। इस संयुक्त मोर्चा संघ के अध्यक्ष बनाए गए थे पवन श्रीवास्तव जो राष्ट्रीय सहारा के ब्यूरो चीफ हैं। महामंत्री बनाए गए थे इंडियन जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष राहुल। आंदोलन शुरु हो गया। अखबार और चैनलों में जिलाधिकारी समेत सारे अफसरों की खबरें बंद हो गईं।

अब देखिए कैसे सेटिंग्स शुरू किया जिलाधिकारी मार्कंडेय शाही ने। सबसे पहले तो इस मोर्चा संघ के एक नेता का मेंहदावल के ब्रह्मचारी टोला में चल रही सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर प्रशासन ने छापा मारा। लगातार 5 घंटे तक न जाने क्या-क्या जांच कर डाली, अब यह तो पता नहीं चल पाया कि प्रशासन को इस छापे में क्या क्या जानकारी मिल पाई, क्या घोटाले मिले। लेकिन इस पूरे दौरान प्रशासन ने यह संदेश जरुर छोड़ दिया कि जो पत्रकार डीएम से भिड़ेगा, उसे बर्बाद कर छोडेंगे डीएम। छीछालेदर करेंगे, और कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेंगे।

अब आइए दूसरे पत्रकार के पास जो मोर्चा संघ का एक अन्‍य नेता था। इस पत्रकार की पत्नी का इस आंदोलन के शुरुआत होते ही तबादला कर दिया गया। अपने घर के पास बनी सरकारी विद्यालय में शिक्षिका थी वह, जबकि उन्हें कई किलोमीटर दूर ट्रांसफर कर दिया गया। तीसरी वारदात यहां सहारा, जागरण, हिंदुस्तान समेत कई अखबारों के तौर पर पत्रकारिता कर रहे एक पत्रकार पर करीब 20 साल पुराना एक मामला अदालत में चल रहा था। यह मामला है एक हत्या का था जिसमें उनके पिता अभियुक्‍त बनाये गए थे। चूंकि यह पत्रकार तब बहुत नन्हे थे इसलिए उन्हें किशोर जेल में बंद कर दिया गया था। लेकिन कुछ दिनों बाद बाहर छूट गया।

लेकिन सूत्र बताते हैं कि ताजा पत्रकारों का आंदोलन होते ही जिलाधिकारी मार्केंडेय शाही ने इस प्रकार की भी पत्रकार की फाइल तक के पन्ने खोलना शुरू कर दिया और उन्हें जिला बदर कर दिया गया।  मरता क्या न करता सभी लोगों पर एक संदेश पहुंच गया कि अगर प्रशासन से भिड़ोगे, तो बर्बाद हो जाओगे। तीन पत्रकारों का हश्र तो सभी पत्रकारों के सामने दिख रहा था। उधर लखनऊ और गोरखपुर में बैठे कई अखबारों के संपादक और चैनल वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ भी जिला अधिकारी मार्कंडेय शाही लगातार अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसे में पत्रकारों के सामने झुकने के अलावा कोई चारा नहीं था।

अचानक एक दिन जिलाधिकारी का फोन आया, पीए ने बताया कि डीएम साहब ने चाय पर बुलाया है। फिर क्‍या होता, मौका तलाश रहे सारे पत्रकार हनहना कर डीएम के दफ्तर पहुंच गए। चाय-पाय, जलपान किया, सेल्फी ली, फेसबुक पर लगाया, वाट्सऐप समूहों पर तूफान की तरह वायरल हो गया। संदेश चला गया कि पत्रकारों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया है।

अब चलते-चलते एक अन्‍य मामला भी सुनते जाइये। यहां एक बड़े अखबार में शिक्षा की रिपोर्टिंग कर रहे एक पत्रकार डीएम साहब के काफी मुंहलगे थे। डीएम साहब के आसपास ही मंडराया करते थे। अचानक डीएम ने उन्‍हें अपनी कार में ही बिठा लिया, और दौरे पर निकल गये। पत्रकार जी गदगद थे, कि आज बढि़या रंग जमेगा जिले भर में। डीएम ने कई स्‍कूलों का मुआयना किया और कई शिक्षकों को निलम्बित कर दिया। बस, पत्रकार का मुंह सूखा पपीता बन गया। अगले ही दिन शिक्षा में उनकी दूकान बंद हो गयी। डीएम की कार्रवाई से यह संदेश गया कि इस पत्रकार ने ही इन शिक्षकों को सस्‍पेंड कराया है।

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