नवजात को बना दिया रिपोर्टर। फील्‍ड पर खौखियाया, तो पिट गया

सैड सांग

: शिमला चुनाव पर पत्रकार की करतूत : शर्मनाक तो यह रहा कि मंगलेश डबराल जैसे महान पत्रकारों तक ने सच को जांचने की जरूरत तक नहीं समझी : आल-मोस्‍ट झूठी कहानी छाप कर हजारों शेयर-लाइक जुटा गया यह तथाकथित पत्रकार : शराब वितरण पर हंगामा, मेरे सवालों का जवाब नहीं उसके पास :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपको खूब याद होगा करीब एक 15 दिन पहले शिमला में एक पत्रकार को पीटे जाने की घटना वाली खबर। फेसबुक, ट्विटर, लिंगडेन, गूगल-प्‍लस समेत अधिकांश सोशल साइट्स में जमकर वायरल हुई थी। साथ में ही रिपोर्टर की फोटोज भी, जिसमें उसके गाल लाल हो गया था, और आंख के पास चोट का असर दिख रहा था।

मारपीट की इस घटना का कारण यह बताया गया कि शिमला में चुनाव के दौरान भाजपा के कार्यालय में बंट रही शराब को लेकर उसने कुछ खास शूटिंग कर ली थी, और उसके बाद जब वह भाजपा कार्यालय पहुंच कर उस फुटेज पर प्रतिक्रिया लेने पहुंचा था, तो वहां जुटे लोगों ने उसे बेवजह पीट दिया। इस रिपोर्टर ने अपनी पोस्‍ट में लिखा था कि उसके मन में उस घटना को लेकर इतना भय व्‍याप्‍त हो गया है कि भविष्‍य में वह कभी भी हिमाचल प्रदेश या शिमला नहीं जाएगा।

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सच बात तो यह है कि इस तरह की फोटोज और ऐसी दर्दनाक कहानी सुन कर किसी भी शख्‍स का मन पसीज सकता है, उसकी आंखें नम हो सकती हैं। भाजपा के प्रति उसका वितृष्‍णा भाव जागृत हो सकता है और एक साहसी पत्रकार के प्रति उसके मन में एक महान दयालुता, समर्पण और आस्‍था का भाव जागृत हो सकता है। किसी के भी मन में हिमाचल प्रदेश के प्रशासन, सरकार और वहां की हालातों के प्रति घृणा सा भाव जाग सकता है।

जाहिर है कि इस पोस्‍ट आते ही लोग उसके समर्थन में आ गये और भाजपा, हिमाचल प्रदेश सरकार और वहां के प्रशासन और पुलिस को लेकर पानी पी-पी कर गालियों से नवाजने लगे। देखते ही लाइक्‍स की संख्‍या लाखों तक पहुंच गयी, करीब ढाई हजार लोगों ने उसे शेयर किया। विरोध का एक जबर्दस्‍त तूफान भड़क गया। देश के बड़े-बड़े पत्रकार भी गुस्‍से में भर गये, उन्‍होंने कटुक्तियां लिखीं, शेयर किया और सभाएं कीं। शेयर करने वालों में मंगलेश डबराल भी आगे बढ़ कर सामने आये।

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सच कहूं तो मेरे मन में भी यही प्रतिक्रियाएं उमड़ीं थीं इस घटना को पढ़ कर। लेकिन मैंने केवल इस खबर को पढ़ कर दूसरों की तरह घटना की भर्त्‍सना-निंदा ही मात्र नहीं की, बल्कि सच जानने के लिए उस पत्रकार से सम्‍पर्क किया। उसे फेसबुक संदेश भेजा कि मैं उससे बात करना चाहता हूं। मैंने उसे फोन नम्‍बर भी दिये अपने, कि जब भी उसे फुरसत मिले, मुझे फोन कर ले। चंद घंटों बाद उसका संदेश के तौर पर उसका फोन नम्‍बर आया।

यह सटीक वक्‍त और मौका है, जब हम पत्रकारिता, पत्रकार और उसके कृत्‍य-कुकृत्‍यों पर चर्चा कर लें। केवल कही-सुनी पर ही विश्‍वास करने के बजाय, और उस पर सोशल-साइट्स पर अपनी जोरदार प्रतिक्रिया देने के बजाय अगर हम सच को खोजने-खंगालने की कोशिश करें, तो वह कहीं ज्‍यादा बेहतर होगा। अगले चंद अंकों को हम इस श्रंखला को जारी रखेंगे। जिसमें पत्रकार, उसकी सजगता, उसकी प्रवृत्ति और निजी आग्रह-दुराग्रहों का जायजा लिया जाएगा।

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