नर्गिस के नाम पर मालामाल एनजीओ-अफसर

सैड सांग

दुनिया की सात अरबवीं नर्गिस

एनजीओ-अफसर गंठजोड़ ने तोड़ीं सारी मर्यादाएं

केवल झूठ पर टिके आयोजनों से उठे विवाद

किया कुछ नहीं, बस खुद बनते रहे मियां-मिट्ठू

आप कह सकते हैं कि विवादों में रहना इंसान की फितरत और अनिवार्य शर्त होती है। अपनी जिन्‍दगी में एक औसत कद हासिल कर लेने के बाद लोग किसी न किसी विवाद में फंस ही जाते हैं। लेकिन तब क्‍या कहा जाए कि कोई शख्‍स जन्‍म लेने के साथ ही भारी विवादों में फंस जाए। खासकर तब जब वह दुनिया का सात अरबवां बच्‍चा हो।

लखनऊ में यही हुआ। यहां एक बच्‍ची तो पैदा होते ही विवादों में घिर गयी। यह दीगर बात है कि इस विवाद में बच्‍ची पर तो ज्‍यादा छींटे नहीं पड़े, लेकिन उसके चलते उन सभी लोगों के सामाजिक सरोकार जरूर बेपर्दा हो गये, जिनसे ऐसा करने की उम्‍मीद तक नहीं थी।

तो आखिरकार नर्गिस ने जैसे ही मां की कोख से बाहर की सांस ली, विवादों के वायरस ने अपना असर दिखलाना शुरू कर दिया। इस असर का बदबूदार मैला और गाद उन लोगों का चेहरा बदरंग कर गया जो उसकी पैदाइश को लेकर अपने स्‍वार्थों के चलते अतिसक्रिय थे। इनमें शामिल रहे देशी-विदेशी एनजीओ के कांवडिये, जो बेटी बचाओ मुहिम की वकालत करते नहीं थकते। लखनऊ के डीएम सरीखे अफसर, जो केवल वाहवाही लूटने के लिए किसी भी सीमा तक सपरिवार जा सकते हैं। सीएमओ जैसे गैर-जिम्‍मेदार डॉक्‍टर जो सेहत के कायदे-कानूनों की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं।

राजधानी लखनऊ के उत्‍तरी छोर पर बसे माल कस्‍बा स्थित सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र पर सोमवार की सुबह जन्‍मी है नर्गिस। वक्‍त था सात बजकर बीस मिनट। नर्गिस की माता विनीता यादव और पिता अजय पास के ही दन्‍नौर गांव के रहने वाले छोटे-मोटे किसान हैं। नर्गिस की पैदा‍इश को लेकर लंदन के एनजीओ प्‍लान इंडिया और उसके फण्‍ड पर पल रही वात्‍सल्‍य नामक एनजीओ ने लखनऊ के अफसरों के सहारे सारा क्रेडिट ले लिया। बस, यहीं से शुरू हो गयी विवादों की झड़ी जिसने सारी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया।

जरा कल्‍पना कीजिए कि एक ओर तो संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव बान की मून दुनिया के सात अरब लोगों को एकजुट करने की अपील कर रहे हों, वहीं दूसरी ओर लखनऊ के माल इलाके में क्षुद्र स्‍वार्थों के चलते मर्यादाओं का गला घोंटने की साजिशें रची जा रही हों। खबरों के मुताबिक माल के इस सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र को इन एनजीओ के लोगों ने बाकायदा कैप्‍चर कर रखा था। यहां आने-जाने वालों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ज्‍यादातर को तो बाहर से टरका दिया गया। मकसद यह बताया गया कि सात अरबवें बच्‍चे का जन्‍म सुरक्षित तरीके से कराये जाने की कवायदें चल रही हैं। खबरें तो यहां तक आयीं कि इस केंद्र के स्‍टाफ तक को इनकी हरकतें नागवार गुजरीं, लेकिन बड़े अफसरों को जेब में लेकर घूमते इन एनजीओ की हरकतों का विरोध कर पाने का साहस कोई नहीं दिखा सका। अपने पक्ष में माहौल खड़ा करने के लिए वात्‍सल्‍य ने लखनऊ के डीएम अनिल सागर की बीवी किस्‍मत सागर तक का मुआयना यहां करा दिया। अपने कार्यक्रम की हैसियत बताने के लिए मल्लिका साराभाई, सुनीता नारायण, आरती किर्लोस्‍कर, गायत्री सिंह, आभा नारायण, अनुष्‍का शंकर और नानालाल किवदई जैसों का नाम इस अभियान में जोड़ लिया। लेकिन व्‍यवहार में ईमानदारी की गैरमौजूदगी ने आखिरकार सारा कुछ गुड़-गोबर कर ही दिया।

वात्‍सल्‍य की संचालिका डॉक्‍टर नीलम सिंह समेत कोई भी इस बात का जवाब नहीं दे पाया कि सात अरबवें बच्‍चे की पुष्टि का आधार क्‍या है। हैरत की बात तो यह रही कि इस क्षेत्र में काम करने वाली एनजीओ ने प्रसव के लिए इसी केंद्र को मनमाने तरीके से क्‍यों चुना। सवाल यह भी उठा कि नर्गिस से पहले भी यहां जब छह बच्‍चों ने जन्‍म ले लिया, फिर आखिर नर्गिस को ही क्‍यों सात अरबवां बच्‍चा माना गया। इस पर हंगामा भी हुआ। एक बच्‍ची के पिता ठाकुर प्रसाद तो मंच पर तब आकर बिफर उठे जब अफसरों ने नर्गिस के पिता को जन्‍म-प्रमाण पत्र देना शुरू किया। ठाकुर प्रसाद का कहना था कि उनकी पत्‍नी ने भी ठीक उसी समय इसी केंद्र पर एक बच्‍ची को जन्‍म दिया जब नर्गिस जन्‍मी, फिर उनकी बच्‍ची को सात अरबवां का दर्जा क्‍यों नहीं दिया गया। वैसे भी इसी के आसपास वंशिका, संगीता, रेनू, प्रीति, फूलमली और बेबी गुड्डी ने इस दुनिया में आंखें इसी केंद्र पर खोलीं थीं।

बच्‍ची के जन्‍म के पहले ही वात्‍सल्‍य की ओर से कहा गया था कि यहां जन्‍म लेने वाली बच्‍ची को ही सात अरबवां शिशु माना जाएगा। जानकारों के मुताबिक यह मनमानी थी। सात अरबवीं शिशु का लिंग निर्धारित करने का अधिकार वात्‍सल्‍य को आखिर किसने दिया। उन्‍हें पता कैसे चला कि सात अरबवां नागरिक बालिका ही होगी। खासकर तब, जबकि इस एनजीओ की कर्ताधर्ता डॉक्‍टर नीलम सिंह खुद ही कन्‍याभ्रूण संरक्षण के लिए बनी केंद्रीय कमेटी में हैं। केवल मीडिया तक तीरंदाजी में माहिर वात्‍सल्‍य का यह दावा भी हवाई साबित हुआ कि सात साल की उम्र तक इन बच्चियों के स्‍वास्‍थ्‍य और पढ़ाई आदि का खर्च प्रायोजित कराया जाएगा। अब तक यह तय ही नहीं हुआ है कि यह अदनी सी रकम कब से वहन की जाएगी। और सब तो फिर ठीक है, लेकिन शिशु के जन्‍म के दो दिनों तक उसे अस्‍पताल की निगरानी में रखे जाने के नियम को ठेंगा दिखाते हुए नर्गिस को नौ घंटों के भीतर ही विदा कर कन्‍या संरक्षण के दावों पर धूल फेंक दी गयी। अब चाहे वह बरेली के डॉक्‍टर एजाज हसन खान हों, गोंडा के डॉक्‍टर अशोक कुमार यादव या जौनपुर की डॉक्‍टर मधु शारदा, सात अरबवें बच्‍चे के दावे के तौर-तरीकों पर ऐतराज सभी को है। ऐतराज इस बात पर भी है कि कन्‍या अथवा कन्‍याभ्रूण संरक्षण पर जमीनी काम करने के बजाय इन एनजीओ ने अपना सारा ध्‍यान केवल माल क्षेत्र पर ही क्‍यों केंद्रित किये रखा। क्‍या केवल इसलिए कि इनका कार्यक्षेत्र माल ही है। कुछ भी हो, इस बेगानी शादी में बेचारी नर्गिस जरूर बेगुनाह और बेलज्‍जत पिस गयी।

लेखक कुमार सौवीर एसटीवी ग्रुप के यूपीन्‍यूज चैनल में यूपी ब्‍यूरो चीफ हैं।

 

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