मेरी बेटी के साथ बलात्‍कार हुआ है

सैड सांग
इकलौती बेटी को न्‍याय दिला पाना बिहार में नामुमकिन: विकलांग पिता इंसाफ के लिए कर रहा है आर्तनाद: बिहार की साफ-सुथरी नितीश सरकार भी खामोश: 11 फरवरी को हुआ हादसा, कार्रवाई अब तक नहीं: सीएम और मानवाधिकार आयोग तक का खटखटाया दरवाजा: गांव के दबंगों ने जीना किया हराम, जान से मारने की धमकी: ट़यूशन पढाकर परिवार पाल रहे बिसाक चंद दरदर भटक रहे
बिहार के सीमावर्ती जिले बक्‍सर का एक विकलांग शिक्षक दरदर भटक रहा है। हर छोटे बडे अफसर के दरवाजे पर वह लाठी टेकते हुए पहुच जाता है। उसके हाथों में अर्जी होती है जिसमें लिखा होता है कि वह अपनी बेटी के साथ सामूहिक दुराचार करने वाले अपराधियों को सींखचों के पीछे देखना चाहता है। लेकिन पिछले एक साल से जारी उसकी यह कवायद अब तक तो बेकार ही साबित हुई है। थानेदार से लेकर एसपी, आईजी, डीजीपी तक अपनी अर्जी पहुंचा चुके इस लंगडे और दयनीय पारिवारिक हालत वाले शिक्षक की सुनवाई अब तक नहीं हो सकी है। अर्जी तो उसने मुख्‍यमंत्री और मानवाधिकार आयोग तक को भेज दी है।
बक्‍सर का यह शिक्षक अपनी बेटी के साथ सामूहिक दुराचार करने वालों को सींखचों के पीछे पहुंचा कर इंसाफ की इबारत लिखने के अपने दायित्‍व को हर हाल में पूरा करना चाहता है। लेकिन बिहार की साथ सुथरी नितीश कुमार सरकार और उसके कारिंदे नहीं चाहते कि इस शिक्षक को न्‍याय मिल सके। लेकिन यह शिक्षक है कि बिना न्‍याय लिए अपने कदम पीछे करने को तैयार ही नहीं है। अपनी विकलांगता और प्रतिकूल पारिवारिक हालातों के बावजूद वह अपनी इकलौती बेटी को इंसाफ दिलाना चाहता है। वह चाहता है कि अपराधियों को इतनी कडी सजा मिले कि आइंदा कोई भी शख्‍स ऐसी करतूत करने के बारे में सोच भी ना सके।
जी हां, बिहार में नीतिश सरकार भले ही भारी बहुमत से वापस आ गयी हो, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इंसाफ का एक सुनहरा दौर शुरू हो चुका है, जैसा कि सरकारी तौर पर दावे किये जा रहे हैं। हालात गवाह है कि नितीश सरकार में इंसाफ मिल पाना आज भी उतना ही कठिन है जितना पहले की सरकारों में था। और जब मामला दबंगों से जुडा हो तो आम आदकी के लिए सरकार क्‍या, इंसाफ तक पहुंच पाने के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। अकेली इसी घटना से बिहार की हालत का जायजा आसानी से लिया जा सकता है।
बक्‍सर में वीरता का प्रदर्शन करती प्रतिमाएं आपको खूब मिल जाएंगी। और तो और, सरकार की काबिलियत का सर्कसी प्रदर्शन करते लोग भी सायकिल पर मिल जाएंगे, लेकिन अगर नहीं मिलेगा तो वह है इंसाफ। यह इंसाफ तो वे माओवादी भी नहीं दिला पायेंगे जो आम आदमी के लिए जूझने की ताल ठोंकते हैं। कहना ना होगा कि इन्‍हीं माओवादियों ने सडक निर्माण में कमीशन यानी लेवी ना मिलने पर इसी बक्‍सर की सडक पर खडी कई मशीनों को आग लगा दी थी। मगर इस हादसे पर एक भी माओवादी सामने नहीं आया।
खैर, इसी बक्‍सर में डुमराव अनुमंडल की अटांव पंचायत में एक गांव है एकौनी। बिसूका चंद इसी गांव में रहते हैं। उम्र है करीब 45 साल। दो बेटे और एक बेटी है। बेटी दसवी की छात्रा है। बिसूका चंद बचपन से ही पोलियो के शिकार हैं और बैसाखी के सहारे चलते हैं। नौकरी कोई है नहीं, इसलिए चार पांच बच्‍चों को घर पर ही ट़यूशन पढाकर किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन दयनीय हालात के चलते पांच  साल  पहले ही उनकी पत्‍नी मानसिक रोगी हो गयीं और अब इलाज ना हो पाने के चलते असाध्‍य हो गयी हैं।
मेरी बिटिया डॉट काम से फोन पर हुई बातचीत में बुरी तरह बिलखते हुए बिसूका चंद ने बताया कि इसी साल 11 फरवरी को उनकी बेटी बबिता जब स्‍कूल से लौट रही थी, गांव के ही दबंग और मनबढ आनंद चंद और चंद्रमणि चंद ने उसे खेत में घसीट कर अपना मुंह काला किया। अचेतावस्‍था में बबिता खेत से बरामद हुई। बबिता ने उपरोक्‍त लोगों का नाम लिया, मगर उसकी रिपोर्ट लिखी ही नहीं गयी। हार कर वे सीधे जिले के पुलिस कप्‍तान उपेंद्र कुमार सिन्‍हा से मिले। सिन्‍हा के आदेश पर 14 अप्रैल को मुकदमा दर्ज हो गया। आनंद चंद को गिरफ़तार भी कर लिया गया। लेकिन दूसरा अभियुक्‍त अभी तक फरार है। उधर आनंद चंद भी जमानत पर छूट कर गांव आ गया है और वे बिसूका चंद को सरेआम बेइज्‍जत कर रहे हैं। साथ ही धमकियां भी दे रहे हैं कि अगर जुबान खोली गयी तो पूरे परिवार को तबाह कर दिया जाएगा।
जो भी पाठकगण बिसूका चंद से सम्‍पर्क करना चाहें वे श्री गोपाल गुप्‍ता, द्वारा बिसूका चंद, नया थाना, उमराव, जिला बक्‍सर पर पत्र-व्‍यवहार कर सकते हैं। आप चाहें तो बिसूका चंद से 09204566875 फोन पर भी सम्‍पर्क कर सकते हैं।

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