हाईकोर्ट में फिर गरमाने लगी है महाभियोग-कव्‍वाली

सैड सांग

: अनियमित सुनवाई के मामले में पिछले तीन महीना से जबरन अवकाश पर बैठे हैं जस्टिस एसएन शुक्‍ल : दीपक मिश्र ने शुक्‍ला पर महाभियोग चलाने की सिफारिश केंद्र सरकार को उसी वक्‍त कर दी थी : सर्वोच्‍च न्‍यायाधीश पर छिड़े हंगामे से लटक गया था शुक्‍ला वाला मामला, खबर कि शुक्‍ला ने छुट्टी की अर्जी दी है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : महाभियोग को लेकर पूरे देश में खूब जमकर हुई थी नौटंकी। देश के सर्वोच्च न्यायाधीश दीपक मिश्रा को येन-केन-प्रकारेण कुर्सी से खींच कर नीचे उतार देने वाली कव्वाली को लेकर भले ही अब चर्चाएं और विवाद खड़े हो गए हों लेकिन इस प्रक्रिया में एक जज पर महाभियोग चलाने का मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। अब तो यहां तक हालत हो गई है कि इस जज को कब तक नौकरी पर बनाए रखा जाएगा, यह सवाल फिर से सिर उठाने लगा है। हालत यह है कि इस जस्टिस के पास कोई काम-धाम भी नहीं रह गया है, और दूसरी ओर गौरतलब बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के ही निर्देशों के तहत इस जस्टिस को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया था।

इस जज का नाम है जस्टिस एसएन शुक्ला। शुक्‍ला जी पिछले कई दिनों से न्यायपालिका ही नहीं, बल्कि किसी भी गांव, कस्बे के मोहल्ले-नुक्कड़ पर भी खासे चटखारे की तरह इस्‍तेमाल किये जाने लगे हैं। जातिगत आधारों को लेकर भी जबर्दस्‍त उठापटक चल रही है। वकील तो सीधे-सीधे तौर पर दो-फाड़ हैं, या फिर वे लखनऊ के वकील हों, या फिर इलाहाबाद के। अन्‍य प्रदेशों में भी शुक्‍ल जी का नाम खासा गरमी दे देता है। फिलहाल हालत तो यह है कि देश के सर्वोच्‍च न्‍यायाधीश दीपक मिश्रा और एसएन शुक्ला के साथ ही साथ कुद्दूसी की चर्चाएं भी खूब चल रही हैं। बहुत दूर क्यों जाते हैं, यूपी में खनन माफिया के तौर पर अपनी ख्याति जमा चुके समाजवादी पार्टी के मंत्री और अकूत संपत्ति के मालिक बन चुके दो-कौड़ी के गायत्री प्रजापति को जमानत देने के मामले में लखनऊ के पाक्सो जज ओपी मिश्रा जैसे न्‍यायाधीश भी अपनी नौकरी और अपने नाम-प्रतिष्‍ठा तक को अदालत-परिसरों में पोंछा लगाने लायक बन चुके हैं।

आपको बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद जस्टिस एस एन शुक्ला ने जो फैसले सुना दिया वह अपने आप में बेहद आश्चर्यजनक और अदालतों में चल रहे गंभीर अराजकता का एक बड़ा नमूना है जहां न्याय की बिक्री ठीक इसी तरीके से हो जाती है जैसे मध्य युगीन समाज में मानव मंडी। जिसके पास पैसा है आज वह कुछ भी खरीद सकता है। कम से कम जस्टिस शुक्ला और ओपी मिश्रा जैसे जजों ने उसे चरितार्थ कर दिया था। अरूणाचल के पूर्व मुख्‍यमंत्री कलिखो पुल ने वहां के मुख्‍यमंत्री पद रहते हुए भी जिस तरह आत्‍महत्‍या कर ली थी, और उसके पहले 60 पन्‍ने का सुसाइड-नोट लिख कर देश की न्‍यायपालिका की चूलें हिला दी थी, वह बेशर्म न्‍यायपालिका की दिशा ही मजबूत कर रहा है।

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जस्टिस और न्‍यायपालिका

इस मामले में हंगामा और गंभीर चर्चाएं शुरु हो गई हैं। चर्चाओं के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के बड़े न्यायाधीश का प्रश्रय जस्टिस एसएन शुक्ला पर था। और जस्टिस शुक्ला द्वारा कुछ अभियुक्‍तों को जमानत देने का वह फैसला उस न्यायाधीश के संकेत पर ही किया गया था। कुछ भी हो, यह मामला खुला तो दीपक मिश्रा ने एसएन शुक्ला को न्यायकार्य से विरत करने का आदेश जारी कर दिया और उन्हें फोर्स-लीव यानी जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया। पिछले करीब 3 महीनों से ऐसे ही शुक्ला ऐसे जबरन अवकाश पर हैं। मतलब यह कि उन्हें वेतन और सुविधाएं तो दी जा रही हैं। मगर कोई भी फाइल उनके पास नहीं पहुंच रही है। सही शब्दों में कहें तो एक एस एन शुक्ला फिलहाल एक ढक्कन की तरह है बनकर रह गए, जिनकी कोई भी उपयोगिता हाईकोर्ट को नहीं बच पायी।

आश्चर्य की बात है कि ऐसे माहौल में कि जब अदालतों में मुकदमों का अंबार लगा हुआ है और उस के मुकाबले जजों की संख्या न्यूनतम है, ऐसी हालत में लंबे समय तक जज को खाली पर बैठाना बेहद दुखद हालातों का परिचायक होता है। अगर न्याय प्रशासन ने यह फैसला किया था कि किसी जज को जबरन छुट्टी पर भेजा जाएगा या उसे महाभियोग के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा तो फिर उस महाभियोग कार्रवाई को अब तक क्यों नहीं क्रियान्वित किया गया। क्या वजह है कि पिछले कई महीनों से ऐसे ही शुक्ला का मामला दिल्ली की सत्ता गलियारों में दबाए बैठा है और सरकार न तो नए जजों की भर्ती कर रही है और नहीं महाभियोग चलाने का कोई फैसला ही कर पा रही है।

इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ यह आया है कि एसएन शुक्ला ने अपनी छुट्टी की अर्जी और बढ़ा दी है। विश्‍वस्‍त सूत्र बताते हैं कि शुक्ला ने अपनी छुट्टी की अवधि और बढ़ाने की दरख्‍वास्त चीफ जस्टिस को भेज दी है। लेकिन न्याय प्रशासन से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि न्याय प्रशासन इस मामले में जस्टिस शुक्ला को अब अधिक छुट्टी देने के पक्ष में नहीं है।

कुछ भी हो यह हालत बेहद गंभीर और दयनीय भी है।

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लर्नेड वकील साहब

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