मां का दूध बिकाऊ है!

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

 

आइये, खाइये, मां के दूध की आइसक्रीम: लंदन के कोर्वेत गोर्डेन में बिक रही है आइसक्रीम : फिलहाल एक स्टिक का दाम रखा गया है 1022 रूपया : मां की कोख की बिक्री के बाद अब दूध का नंबर : तो क्‍या अब मासूमों के लिए आयात होगा मां का दूध : 15 माताएं राजी हो चुकी हैं दूधने बेचने के लिए:

मां, एक ऐसा शब्द जिसमें संसार का हर गूढ़ सार निहित है. मां, जिसने भगवान को भी जन्म दिया है. मां की ममता अपार है. वेद-पुराणों में भी मां की महिमा का बखान किया गया है. कहा जाता है कि पूत-कपूत भले ही हो जाए, माता कभी कुमाता नहीं होती. मां के दूध पान करने के बाद बच्चा स्वस्थ तो रहता ही है, साथ ही मां के दिल से भी जुड़ जाता है. मुझे एक फिल्म याद आती है दूध का क़र्ज़. जिसमें एक मां सांप के बच्चे को अपना दूध पिलाकर पालती है. वो सपोला भी बड़ा होकर मां के दूध का क़र्ज़ चुकाता है, लेकिन वर्तमान में जैसी स्थिति देखने में आ रही है. उसे देखकर लगता है शायद ही बच्चे अपनी मां का स्तनपान कर पाएं. मां की कोख तो पहले ही बिक चुकी थी. अब मां का दूध भी बिकेगा. यानी मां के दूध की बनेगी आइसक्रीम.

लन्दन में पिछले शुक्रवार से बेबिगागा नाम से ये आइसक्रीम मिलने लगी है. लन्दन के कोंवेंत गार्डेन में ये आइसक्रीम मिल रही है. इस सोच को ईजाद किया मैट ओ कूनीर नाम के एक सज्जन ने. इसकी कीमत14 पौंड रखी गई है. यानी १०२२ रुपये. इसके लिए ऑनलाइन फोरम मम्सनेट के ज़रिये विज्ञापन से दूध माँगा गया था. जिसमें 15 मांताओं ने अपना दूध बेचा. यदि इसकी बिक्री ने जोर पकड़ा तो शायद दूसरे देशों से भी दूध मंगाया जाएगा. सवाल ये नहीं कि मां का दूध बिक रहा है. सवाल है कि जब मां का दूध बिकेगा तो बच्चे क्या पियेंगे और जब मां का दूध नहीं मिलेगा उन्हें तो उनके भविष्य की दशा और दिशा क्या होगी? क्या वे उतनी ही आत्मीयता से अपनी मां को मां कहकर पुकारेंगे या केवल शर्तों पर आधारित रह जाएगा ये रिश्ता भी? सवाल कई ज़ेहन में हैं. दिमाग को कीड़े की भांति खा रही है ये घटना लेकिन ये उन साहिबानों के लिए ज़रूर उपयोगी होगी, जिन्होंने मां की ममता जानी ही नहीं. मां का प्यार उनको मिला ही नहीं. मां का दूध कभी हलक के नीचे गया ही नहीं. इसी बहाने कम से कम मां के दूध का पान तो कर ही लेंगे.

एक सवाल हिंदुस्तान के सन्दर्भ में. इतनी मंहगी आइसक्रीम को खरीदेगा कौन? वही लोग जिनके पास अनाप-शनाप पैसा है. शोहरत है. हर ऐशो आराम है लेकिन मां का आँचल का सुख कभी नहीं ले पाए. क्या होगा इस आइसक्रीम का? जो भी इस आइसक्रीम का स्वाद लेगा निश्चित रूप से वो उस मां का बेटा अप्रत्यक्ष तौर पर हो जाएगा, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो शायद भगवान कृष्ण माता यशोदा को मैया नहीं कहते. निश्चित रूप से व्यावसायिक दिमाग रचनात्मक होता है. अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक सोच सकता है और उसी का नतीजा है यह. पता नहीं क्यों मेरे मस्तिष्क में रह-रह कर एक विचार आ रहा है कि ये हमारे कर्मों का नतीजा है. हमने ज्यादा दूध निकालने के फेर में गायों के बछड़ों को दूध नहीं पीने दिया और शायद उसका प्रतिफल अब देखने को मिलेगा कि समाज के बच्चे मां के दूध को तरसेंगे और मां का दूध उनकी ही आँखों के सामने बिकने विदेश जा रहा होगा. सवाल मां की ममता का है. सवाल मां की गरिमा का है. रोक सको तो रोक लो.

लेखक कृष्‍ण कुमार द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता वि‍श्‍वविद्यालय, भोपाल के छात्र हैं.

 

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