: हिमाचल प्रदेश की 53 तहसीलों में तबाही फैला रखा है शैतान बंदरों ने : नसबन्दी अभियान के बाद से ज्यादा खतरनाक हो गये हिमाचल के बंदर : अब तक सवा लाख बंदरों की नसबंदी पूरी, खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ा : पूर्वोत्तर राज्यों में बंदरों की जान का खतरा, शायद मेनका गांधी कुछ बोलें :
कुमार सौवीर
नई दिल्ली : जो लोग नगालैंड और उसके आसपास के राज्यों से वाकिफ हैं, वे खूब जानते हैं कि इन राज्यों के रहने वालों की थाली में कुत्ता एक खास व्यंजन माना जाता है। नगालैंड में तो इंसान छोड कर कुछ भी खाया जाना पवित्र है, चाहे वह जलचर हों, थलचर हों या फिर आकाश में चरने-उड़ने वाले परिंदे अथवा टिड्डे तक जीव। अगर विशालतम हाथी से लेकर कीड़े-मकौड़े तक को पचा सकते हैं इस राज्य के लोग, तो इसमें अचरज किस बात का। लेकिन चर्चा तब भड़क सकती है, जब बाकी देश में जिस बंदर को बजरंगबली, पवनसुत और हनुमान की तरह पूजा जाता है, उसी बंदर की जान अब खतरे में हैं। खबर है कि हिमाचल की खेती-किसानी को सालाना पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने वाले उत्पाती बंदरों के नार्थ-ईस्ट के राज्यों में भेजे जाने का रास्ता साफ होने लगा है। उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम ने हिमाचल के बंदरों को अपने यहां बसाने की प्राथमिक सहमति जताई है। हिमाचल सरकार के वन विभाग ने सितंबर महीने में इस आशय का एक प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा था। लेकिन इन उपरोक्त राज्यों ने केवल इसी शर्त पर यह प्रस्ताव स्वीकार किया है कि इन राज्यों तक इन बंदरों को पहचाने का खर्चा और प्रबंध हिमाचल प्रदेश खुद करे।
लेकिन इस कवायद पर काले-घनेरे बादल घिरने लग रहे हैं। खास तौर पर तब केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का वह प्रस्ताव, जो उन्होंने पूर्वोत्तर प्रदेश राज्यों के मंत्री को लिखा था। इस पत्र में मेनका गांधी ने इस बात पर ऐतराज किया था कि पूर्वोत्तर के नगालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों के लोगों की थाली में डॉग-मीट यानी कुत्ता की बोटियों को परोसने की परम्परा पर ऐतराज जताया था। मेनका ने लिखा है कि इन राज्यों में भोजन के लिए कुत्तों को नृशंसता के साथ मारा जाता है इसलिए यहां कुत्तों की तरह हत्या पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
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बुद्धिहीन तनु जानि कै सुमिरौ पवन कुमार
मेनका गांधी का यह तर्क उनके पशु-प्रेमी छवि के चलते है। लेकिन समस्या है कि हिमाचल प्रदेश से पकड़ कर करीब ढाई लाख बंदरों को पूर्वोत्तर प्रदेशों तक पहुंचाना भी तो पशु-विरोधी कृत्य माना जाएगा। इतना ही नहीं, केवल मेनका ही नहीं, बल्कि इस मामले में भाजपा में भी विवाद खड़ा हो सकता है। वजह यह कि कट्टरवादी हिन्दू समुदाय के लोगों में बंदरों और लंगूरों को साक्षात हनुमान की तरह सम्मान दिया जाता है। ऐसी हालातों में इन पवनसुत-पुत्रों को हिमाचल प्रदेश से पकड़ कर उन्हें इन राज्यों में भेजने के प्रस्ताव के मार्ग में धार्मिक अड़चनें भी आ सकती हैं। फिलहाल तो गनीमत है कि इस मामले में मेनका गांधी ने कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया है।
मिली खबरों के मुताबिक वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी के अनुसार बंदरों को हिमाचल से नार्थ-ईस्ट भेजने के हिमाचल के प्रस्ताव के सकारात्मक संकेत आए हैं। केंद्र और नार्थ-ईस्ट के राज्यों में इस मसले पर चर्चा के बाद प्राथमिक सहमति बनी है कि कुछ राज्य हिमाचल के बंदरों को अपने यहां बसाएंगे। प्रस्ताव के अनुसार इसका एक कारण यह भी है कि उत्तर-पूर्व राज्यों के सघन जंगल व वातावरण हिमाचल के बंदरों के लिए भोजन व अन्य पहलुओं से मुफीद है। इससे दो लाभ होंगे। हिमाचल को उत्पाती बंदरों की बढ़ती संख्या से छुटकारा मिलेगा और उत्तर-पूर्व के राज्यों में ये बंदर प्राकृतिक वातावरण में संतुलन कायम करेंगे।
मिली जानकारियों के अनुसार हिमाचल सरकार ने बंदरों के आतंक से निजात पाने के लिए कई उपाय किए। इनमें बंदरों को पकड़ कर उनकी नसबंदी करना शामिल है। सरकार ने बंदरों को पकड़ने के लिए 3.22 करोड़ रुपए की रकम खर्च की है। फिर भी बंदरों का कहर जारी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने हिमाचल सरकार के अनुरोध पर प्रदेश की 53 तहसीलों में बंदरों को खेती व इंसानों के लिए खतरनाक घोषित कर उन्हें मारने की इजाजत दी है। ये बात अलग है कि इजाजत मिलने के बावजूद कोई भी एजेंसी बंदरों को मारने के लिए आगे नहीं आ रही है।
हिमाचल में नौ साल पहले शुरू हुआ था बंदरों की नसबंदी का अभियान हिमाचल प्रदेश में नौ साल पूर्व यानी वर्ष 2007 में बंदरों की नसबंदी की शुरूआत की गई। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार वन विभाग ने अब तक 1.10 लाख बंदरों की नसबंदी की है। हिमाचल में बंदरों की संख्या का आंकड़ा भी विवादों में रहा है। पिछले साल वन्य प्राणी विशेषज्ञों की देखरेख में बंदरों की गणना की गई थी। तब इनकी संख्या 2.07 लाख पाई गई। वहीं, इससे दो साल पहले यानी वर्ष 2013 में बंदरों की संख्या 2.66 लाख थी। किसान संगठनों का दावा है कि बंदरों की संख्या बढ़ रही है और वन विभाग कहता है कि इनकी संख्या कम हो रही है। फिलहाल संख्या अधिक हो या कम, लेकिन बंदरों के आतंक में कोई कमी नहीं आई है।
बंदरों को पकड़ने पर खर्च किए थे 3.22 करोड़ हिमाचल सरकार ने नसबंदी अभियान पर कुल 3.22 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। हरियाणा के बद्दरूदीन नामक शख्स ने राज्य के तीन वन सर्किल में बंदर पकड़ कर 38 लाख रुपए कमा लिए थे। हिमाचल के ऊना जिला के पीतांबर दत्त को 28 लाख रुपए बंदर पकड़ने के एवज में भुगतान किया गया था। बाद में खुलासा हुआ कि बंदर नसबंदी के बाद अधिक हिंसक हो गए। फसलों व फलों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही वे लोगों को भी काटने लगे।
सरकार ने बंदरों की समस्या से निपटने के लिए वन वाटिकाएं बनाने का फैसला भी किया। ये फैसला भी सिरे नहीं चढ़ा। फिर बंदरों को मारने के लिए तीन सौ रुपए प्रति बंदर देने का ऐलान किया गया। ये अलग बात है कि विशेषज्ञ बंदरों की समस्या से निपटने के लिए साइंटिफिक कलिंग (सीयूएलएलआईएनजी) के तौर पर समाधान बताते हैं। दुनिया के कई देश इस वैज्ञानिक विधि का इस्तेमाल करते हैं। साइंटिफिक कलिंग से मुराद बंदरों को वैज्ञानिक तरीके से मारने से है। फिलहाल अब नई पहल के तहत बंदरों को नार्थ-ईस्ट राज्यों में भेजने की कवायद है। हिमाचल के बंदर अब मिजोरम, नागालैंड व अरुणाचल के जंगलो को अपना घर बनाएंगे। तीनों राज्यों ने प्रदेश के बंदरो को अपने जंगलो में छोड़ने को लेकर हामी भर दी है।
प्रदेश सरकार ने इससे पहले भी बंदरो की समस्या के समाधान के लिए कई योजनाएं चलाई थीं जो विफल रही हैं। सूत्रो के अनुसार उत्तर-पूर्व में स्थित तीनों राज्यों के जंगलो में बंदरो के लिए भरपूर भोजन और उचित वातावरण है। मिजोरम, नागालैंड व अरुणाचल की ओर से प्रदेश के बंदरो को मांगा गया है लेकिन शर्त भी रखी है कि इन बंदरो को हिमाचल खुद उनके जंगलो तक छोड़ेगा। अब प्रदेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बंदरो को उनके जंगलो तक पहुंचाना है। इसके लिए प्रदेश सरकार योजना तैयार करने मे जुट गई है।
प्रदेश सरकार बंदरो को मिजोरम, नागालैंड व अरुणाचल के जंगलों तक छोड़ने के लिए आने वाले खर्च का आंकलन कर रही है। वन्य जीव विभाग के पास अभी तक खूंखार बंदरो का न तो कोई आंकड़ा है और न इनकी कोई पहचान की गई है। ऐसे में सबसे पहले प्रदेश सरकार को खूंखार बंदरो की पहचान करवाने के लिए कार्य शुरू करना होगा। प्रदेश सरकार ने बंदरो से निजात दिलाने के लिए बंदरो की नसबदी से लेकर वानर वाटिका, बदर पकड़ो ईनामी योजना और वर्मिन घोषित कर उन्हें मारने तक की योजना चलाई थी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने करोड़ों रुपये भी खर्च किए थे लेकिन बंदरो की समस्या जस की तस रही है।
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