: तब रोजमर्रा की बात थी कचेहरी में कंडोलेंस की घोषणा : मैंने इस साजिश नुमा घटिया परम्परा पर प्रहार किया, तो वकील समुदाय नाराज हो गया : आखिरकार बार ने तय किया कि हर मृत्यु सूचना पर दो साथी वकील अनिवार्य तौर पर पुष्टि करेंगे :
कुमार सौवीर
जौनपुर : दीवानी बार एसोसियेशन के मंत्री कॉमरेड जय प्रकाश के तर्क अपनी जगह हैं, लेकिन हकीकत का दूसरा पहलू भी है। और यह भी सच है कि यह दूसरा पहलू भी कम मजबूत नहीं है। बल्कि यह पहलू ही इस मसले पर पहले पहलू को धूल चटाते दिखता है। जहां, न्यायपालिका और प्रशासन की एक-जुट हरकतें कई शर्मनाक कांड निपटा चुकी हैं।
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मुझे याद है, बमुश्किलन तीन महीना ही हुआ होगा, जब मैं दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में ब्यूरो प्रमुख के तौर पर जौनपुर आया। बस इन तीन महीनों में ही पांच बार दीवानी कचेहरी का कामधाम ठप हो गया। मैंने बस यूं ही जिज्ञासा में कुछ लोगों से पूछ लिया कि माजरा क्या है। जवाब मिला कि दीवानी बार एसोसियेशन के एक सदस्य की मृत्यु हो गयी है। मैंने तय किया मृत वकील के शोकाकुल परिजन और वहां जुटे लोगों से भेंट करने का यह मौका अच्छा होगा, मैं अपने एक सहयोगी के साथ उस वकील के घर का पता पूछ कर वहां पहुंच गया। हालांकि, किसी भी वकील की सहज मृत्यु पर शंका करना कोई अच्छी बात नहीं होती, लेकिन मैंने केवल इसी लिए यह किया कि इसी बहाने लोगों से बातचीत हो जाएगी।
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करीब तीन बजे के करीब जब मैं उस वकील के घर पहुंचा, तो वहां सन्नाटा ही था। सूरज की किरणें काफी कमजोर हो चुकी थीं। बारामदे में दो महिलाएं अनाज बीन रही थीं, जबकि एक महिला दूसरी महिला के सिर से जूं निकाल रही थी। उन चारों में हल्का-फुल्का हंसी-मजाक भी चल रहा था, जो मेरे जाते ही खामोश हो गया। कुछ बच्चे उछल-कूद जरूर कर रहे थे। यह सब देख कर मैं हैरत में आ गया। होता भी क्यों नहीं। आखिर जिसके घर मृत्यु हो गयी हो, उसका घर बिलकुल सहज हो, यह बात हजम नहीं हो पाती है। मैंने एक महिला से पूछ लिया कि वकील साहब कहां हैं। जवाब सुनते ही मेरे कदमों के तले जमीन ही सरक गयी। एक महिला ने जवाब दिया था कि वकील साहब बिलकुल अभी-अभी खेत की देखभाल करने गये हैं।
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खोजबीन करते-करते मैंने आसपास के कुछ वकीलों को खोज ही लिया। उन सभी ने भी कुबूल किया कि जिनको लेकर अदालत में कंडोलेंस हुई है, वह वकील साहब जिन्दा हैं। पूछताछ आगे बढ़ी तो सबने बता दिया कि यह तो रोजमर्रा का मामला है। कभी किसी पक्ष को गवाही नहीं करनी होती है तो वह कंडोलेंस करा देता है, तो कभी दूसरा पक्ष कंडोलेंस करा देता है। डेट लेने-देने का झंझट ही खत्म। अभी इस बारे में बातचीत हो ही रही थी कि वही वकील साहब नमूदार हो गये जिनकी मृत्यु पर कंडोलेंस हुई थी। बातचीत करने पर वकील साहब थोड़ा शर्मिंदा तो हुए, लेकिन बाद में पूरी बेशर्मी से कुबूला भी कि यह तो रोजमर्रा की बात है, कोई अनोखी बात तो है नहीं।
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हमारा अखबार अगले सुबह इसी पर केंद्रित था। हंगामा खड़ा हो गया। कई वकील इस बात पर खफा थे कि उनकी दुनिया में पत्रकारिता ने कैसे दखलंदाजी कर डाली। जमकर बवाल हुआ, लेकिन दोपहर बात तक अधिकांश वकील इस बात पर सहमत हो गये कि कंडोलेंस का यह तरीका बेहद आपत्तिजनक है और इससे वकील समुदाय शर्मसार हो जाएगा। नतीजा यह हुआ कि बार एसोसियेशन ने तय कर लिया कि भविष्य में किसी भी वकील की मृत्यु-सूचना पर बार की ओर से कम से कम तीन वकील साथी मौके पर तस्दीक करने जाएंगे, और उसके बाद ही कंडोलेंस की घोषणा की जाएगी। (क्रमश: )
बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्पष्ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।
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