बेशर्म सिद्दीकी: झूठ, झूठ और सिर्फ झूठ बोलते हैं नसीमुद्दीन सिद्दीकी

मेरा कोना

: बांदा से बाराबंकी के निन्‍दूरा तक साम्राज्‍य की दास्‍तान :  उसके कंधे तो देखिये, फौज वाले तो दूर से दुत्‍कार देते : झूठ पर झूठ बोलने में माहिर नसीमुद्दीन जैसे लोग राजनीति में कलंक होते हैं : नसीमुद्दीन सिद्दीकी- एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह एक बहादुर, निष्‍ठावान, सत्‍यवान, ईमानदार और इंसानियत का सच्‍चा पुतला है। इस शख्‍स ने बसपा की 35 साल तक पूरी सत्‍यनिष्‍ठा से सेवा की। दलितों और मुसलमानों की कौम को मजबूत करने के लिए उसने अपनी मां और बेटी तक की मौत को भुला दिया। सेना की निस्‍वार्थ सेवा की। सेना में कैप्‍टन के पद पर होते-होते गोली चलाने की महारत किसी शब्‍द-बाण से कम नहीं थी। राजनीति के प्रति समर्पित रहा और उस समाज व राष्‍ट्र की सेवा का माध्‍यम माना, पैसा कमाने का धंधा नहीं। संगठन को मजबूत करने के लिए सभी साथियों के शिकवे-गिले भूले और सब को एकजुट करने का संकल्‍प लिये रखा।

यह तो वह बातें हैं जो नसीमुद्दीन सिद्दीकी अपने बारे में सबके सामने कहते हुए अपने कंधे उचका-उचका कर गर्वान्वित महसूस होते हैं। लेकिन यह सब बातें असल में हवा-हवाई ही हैं, जिनका सच से कोई लेना-देना ही नहीं होता। हकीकत तो यह है कि यह नसीमुद्दीन सिद्दीकी नामक शख्‍स एक निहायत झूठा, बेईमान, और किसी को भी धोखा दे पाने में हिचक नहीं महसूस करता। उसकी किसी भी डींग में सच का एक टुकड़ा भी नहीं होता है। दरअसल वह झूठ की चादर बिछाकर अपनी बिसात पर अपने साथियों को मोहरे के तौर पर पेश किया करता है। चाहे वह उसकी मां हो, अथवा उसकी बेटी।

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बसपा

सच तो यह है कि बसपा का गठन ही सन-84 में हुआ था और उसके सात साल बाद यानी सन-91 में बसपा के वरिष्‍ठ नेता दद्दू प्रसाद ने हर एक के जूते चमकाने की अप्रतिम प्रतिभा को पहचान कर नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बसपा का सदस्‍यता दिलायी थी। लेकिन आज सिद्दीकी का दावा है कि उसने 35 साल तक बसपा की सेवा की है। इतना ही नहीं, जब मायावती ने पाया कि उनकी सैंडिल को चमकाने वाला यह शख्‍स उनके खांसी-खंखार तक को पूरी निष्‍ठा के साथ अपनी अंजुरी में लेने में तत्‍पर होता है, तब उन्‍होंने नसीमुद्दीन को अपनी किचन-कैबिनेट में शामिल किया।

आप कभी गौर से देखिये नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कंधों को। कोई भी शख्‍स उसकी बेतरह बिगड़ी पीठ पर हंस पड़ेगा। गजब कूबड़ जैसा माहौल दिखता है। ऐसी हालत में भारतीय फौज में उसकी भर्ती की बात केवल निरा मजाक से कम नहीं है। वह भी कैप्‍टन के पद पर, लाहौल बिला कूवत। अचूक गोली चलाना और कप्‍तान बनने की बात पर चर्चा करने से पहले आप सिद्दीकी का शैक्षिक प्रमाणपत्र मांग लीजिए। मात्र कक्षा आठ तक ही पढ़ाई की है सिद्दीकी ने। उसके बावजूद अगर ऐसे आदमी को सेना अपना कैप्‍टन बना लेते है, तो समझिये कि भारत में भी ऑस्ट्रिच-बिहैवियर मौजूद है।

आप बांदा के रहने वालों से बातचीत कीजिए, जो नसीमुद्दीन को जानते हों। वे आपको बतायेंगे कि अपनी सिद्दीकी होमगार्ड के भी नीचे के पायदान वाले पीआरडी यानी प्रान्‍तीय रक्षा दल का एक लठैत थे। इनका काम गांवों में चौकीदारी के आसपास ही हुआ करता था, लाठी लेकर। बाद में ब्‍लॉक में ठेकेदारी शुरू की नसीमुद्दीन ने। इसी बीच अपने टाउन एरिया का चुनाव भी बुरी तरह शिकस्‍त हासिल कर राजनीति को चखा। सपने चकनाचूर हो गये, लेकिन तब दद्दू प्रसाद किसी भगवान के तौर पर अवतरित हुए। इस पूरी कहानी में न अचूक गोलीबारी का अध्‍याय है और न ही सेना का शौर्य। ऐसी हालत में आठ पास व्‍यक्ति को सेना में कैप्‍टन करार देने केवल मजाक ही तो है। अब चूंकि सिद्दीकी अपने चेलों-चापड़ों के बीच इस बारे में डींग हांकते थे, तो उनकी सचाई का आइना उन्‍हें कौन दिखाता। (क्रमश:)

नसीमुद्दीन सिद्दीकी के उत्‍कर्ष और उनके मिट्टी में मिल जाने तक की कहानी अब प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम में छपनी शुरू हो रही है। यह कहानी श्रंखलाबद्ध छपेगी। इसके अगले अंकों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

नसीमुद्दीन सिद्दीकी

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