: बीवी से करता है, कि पोल न खुल जाए : पूरी ज़िंदगी पोशीदा ही पोशीदा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आम तौर पर यह सवाल अक्सर उठ जाता है कि नाकाम इश्क़ और मुकम्मल इश्क़ में क्या फर्क होता है?
लीजिए जनाब ! हाजिर है जवाब…
नाकाम-इश्क:-
नाकाम-इश्क में जिंदा-इश्क करता है, हमेशा बेहतरीन लेकिन उल्टी-पलटी कविता-ग़ज़ल लिखता और गाता रहता है, लांग-ड्राइव करता है, पहाड़ों में घूमता है, वक्त-बेवक्त नीट शराब पीता रहता है, लेकिन चिखना में नमक अभिन्न हिस्सा बन जाता है। सिगरेट से छल्ला बनाता रहता है, अपने सीने में अपनी हुस्न की फोटो चिपकाए रखता है। हां, बात-बात पर टेसुए भी बहाता रहता है। जो कुछ भी करता है, खुल्लम-खुल्ला।
मुकम्मल-इश्क:-
जबकि मुकम्मल-इश्क में लिथड़ा इंसान हमेशा इसी फिराक में रहता है कि इधर-उधर मुंह मारता रहता है, पड़ोसन से लेकर दफ्तर तक में सिटियाबाजी करता है, हराम की कमाई के चक्कर में रहता है, कोशिश यही करता है कि ठेलेवाले से सब्ज़ी के साथ मुफ्त में धनिया कैसे मिले, दफ्तर से लौटते वक्त कुछ न कुछ खाने-पीने की चीजें भी लेता है, साथ में स्कॉच की बोतल और काजू-सलाद भी। घर सजाने के लिए पर्स खोल देता है, मजदूर बुला कर घर के पंखा-जाला साफ़ करने की फिराक में अपना दम तोड़ देता है। लेकिन जेब में क्या-क्या है, उसे छिपाने की जो-तोड़ कोशिश अपनी बीवी से करता है, कि पोल न खुल जाए। पूरी ज़िंदगी पोशीदा ही पोशीदा।