पत्रकारिता: हमले की शुरूआत तो 4पीएम वाले संजय शर्मा के लोगों ने की थी

मेरा कोना

: ऐसी पत्रकार-एकता का क्‍या मतलब, जिसमें निर्दोषों को फंसाया जा रहा हो : बधाई हो, पत्रकारिता के चोले में हिंसा और ब्‍लैकमेलिंग का खुला आगाज हुआ लखनऊ से : देखिये यह वीडियो, और फिर बताइये कि किस पत्रकारीय मुद्दे पर खतरा बता कर हल्‍ला किया जा रहा है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ऐसी पत्रकार-एकता का क्‍या मतलब, जिसमें निर्दोषों को फंसाया जा रहा हो। जरा इस वीडियो को देखिये। फिर आपको पता चल पायेगा कि दरअसल जिस पत्रकारीय मूल्‍यों को संकट खड़ा करने का नाटक करते हुए कल से एनेक्‍सी समेत सचिवालय परिसरों में पत्रकारों का भव्‍य नाटक चल रहा है, उसकी शुरूआत खुद उन्‍हीं पत्रकारों ने है, जो कल से हल्‍ला मचा रहे हैं। खुद को पत्रकार बताते हुए अपनी कलम को अपराधियों द्वारा भोथरा करने का बवाल कर रहे हैं, दरअसल उसके लिए वे खुद जिम्‍मेदार हैं।

इस वीडियो में साफ दर्ज हो चुका है कि 4पीएम नामक अखबार को लेकर जो हंगामा चल रहा है, उसे उस अखबार के कर्मचारियों ने ही उसकी शुरूआत की थी। इन्‍हीं कर्मचारियों ने पड़ोस के कैमिस्‍ट्री-कैफे के बाहर कैफे के पार्टनर को हल्‍के से विवाद पर पीट दिया था। लेकिन बाद में सड़कछाप मवालियों की हरकत करने वाले लोगों के पक्ष में पत्रकार, अभिव्‍यक्ति और अखबार की स्‍वतंत्रता का ढिंढोरा मचाया जाने लगा। इतने पर भी जब इन लोगों का मन नहीं भरा, तो इन लोगों ने कल मुख्‍य सचिव से भेंट कर “पत्रकारों और अभिव्‍यक्ति की आजादी” हड़पने वाले अपराधियों को तत्‍काल गिरफ्तार करने की मांग कर ली।

4पीएम अखबार में हुए तथाकथित अभिव्‍यक्ति पर हमले का असली नजरा देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कर इस वीडियो को निहारिये:-

असलियत तो देखिये जरा

इस वीडियो में साफ दर्ज है कि कैमिस्‍ट्री कैफे के बाहर कुछ लोग एक एक्टिवा पर निहायत अभद्र शैली में बैठे हैं। सूत्रों के अनुसार यह एक्टिवा इस कैफै के पार्टनर की है, और इस वीडियो में एक मिनट 55 सेकेंड में से ही उस पार्टनर को थप्‍पड़ दे थप्‍पड़ की बारिश शुरू हो जाती है। बताया गया है कि यह हमला संजय शर्मा के प्रेस के ही कर्मचारी हैं, जिनका मकसद किसी भी तरह इस कैफे को अराजकता का अड्डा में तब्‍दील करना है।

इसके बावजूद संजय शर्मा ऐंड कम्‍पनी ने झूठ बोला, और मुख्‍य सचिव व गृह प्रमुख सचिव व सूचना प्रमुख सचिव के पास एक प्रतिनिधिमंडल लेकर विस्‍तृत झूठ की गंदी चादर बिछा डाली। हैरत की बात है कि सच जानने के बावजूद प्रतिनिधि मंडल में शामिल पत्रकारों ने संजय शर्मा के झूठ की पैरवी की, और ऐसा समां बांध लिया ताकि निर्दोष लोगों को जेल भेजा जा सके।

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पत्रकार पत्रकारिता

सच और खरी बात कहूं तो, इसीलिए मैं उन अभियानों और नारों का सख्‍त विरोध करता हूं, जिस मुखौटे के भीतर कपट, बेईमानी, ब्‍लैकमेलिंग और अनाचार छिपा होता है। मेरा साफ मानना होता है कि अगर इन प्रवृत्तियों को पाला-पोसा जाता रहा, तो अब तक संकट में आ चुका पत्रकारीय आस्‍था, विश्‍वास और ईमानदारी का धरातल हमेशा-हमेशा के लिए खत्‍म हो जाएगा। सर्वनाश के स्‍तर तक पर। और मैं खुलेआम ऐलान कर रहा हूं कि कम से कम इस तरह की तबाही करने वाले गिरहकट-पत्रकारों के गिरोहों का सक्रिय सदस्‍य बनने को हर्गिज तैयार नहीं।

मेरी बिटिया डॉट कॉम की नजर में यह मामला खासा संवेदनशील और अराजकतापूर्ण पत्रकारिता से जुड़ा हुआ है। हम इससे जुड़ी खबरें लगातार आप तक पहुंचाते रहेंगे। इस मसले से जुड़ी खबरों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

झुलसती पत्रकारिता का धुंआ

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